बहुत जगह यह जोक चल रहा है। हँसने हंसाने के आवाहन के साथ। जैसा कि हमेशा करती हूँ, पति के बदले पत्नी कर दिया है। हंसिए। बताइयेगा कि कितना हंसे/हंसीं।
एक शादीशुदा की दुखी कलम से योग दिवस ।
योग दिवस को मैं , कुछ इस तरह से मना रहा हूँ,
रात को उसके पैर दबाए थे अब पोंछा लगा रहा हूँ।
धो रहा हूँ बर्तन और बना रहा हूँ चपाती,
मेरे ख्याल से यही होती है कपालभाति।
एक हाथ से पैसे देकर, दूजे हाथ में सामान ला रहा हूँ मैं,
और इस प्रक्रिया को अनुलोम विलोम बता रहा हूँ मैं।
सुबह से ही मैं , घर के सारे काम कर रहा हूँ,
बस इसी तरह से यारों प्राणायाम कर रहा हूँ।
मेरी सारी गलतियों की जालिम ऐसी सजा देती हैं,
योगो का महायोग अर्थात मुर्गा बना देती हैं।
हे योग देव अगर आप गृहस्थी बसाते,
तो हम योग दिवस नहीं पत्नी दिवस मनाते।
एक शादीशुदा की 'दुखी' कलम से योग दिवस की मासूम सी योग गाथा ।
हँसते रहिये , हँसाते रहिये ।
एक शादीशुदा की दुखी कलम से योग दिवस ।
योग दिवस को मैं , कुछ इस तरह से मना रही हूँ,
रात को उसके पैर दबाए थे अब पोंछा लगा रही हूँ।
धो रही हूँ बर्तन और बना रही हूँ चपाती,
मेरे ख्याल से यही होती है कपालभाति।
एक हाथ से पैसे देकर, दूजे हाथ में सामान ला रही हूँ मैं,
और इस प्रक्रिया को अनुलोम विलोम बता रही हूँ मैं।
सुबह से ही मैं , घर के सारे काम कर रही हूँ,
बस इसी तरह से दोस्तों प्राणायाम कर रही हूँ।
मेरी सारी गलतियों की जालिम ऐसी सजा देते हैं,
योगो का महायोग अर्थात मुर्गा बना देते हैं।
हे योग देव, अगर आप गृहस्थी बसाते,
तो हम योग दिवस नहीं, पति दिवस मनाते।
एक शादीशुदा की 'दुखी' कलम से योग दिवस की मासूम सी योग गाथा ।
हँसते रहिये , हँसाते रहिये ।
एक शादीशुदा की दुखी कलम से योग दिवस ।
योग दिवस को मैं , कुछ इस तरह से मना रहा हूँ,
रात को उसके पैर दबाए थे अब पोंछा लगा रहा हूँ।
धो रहा हूँ बर्तन और बना रहा हूँ चपाती,
मेरे ख्याल से यही होती है कपालभाति।
एक हाथ से पैसे देकर, दूजे हाथ में सामान ला रहा हूँ मैं,
और इस प्रक्रिया को अनुलोम विलोम बता रहा हूँ मैं।
सुबह से ही मैं , घर के सारे काम कर रहा हूँ,
बस इसी तरह से यारों प्राणायाम कर रहा हूँ।
मेरी सारी गलतियों की जालिम ऐसी सजा देती हैं,
योगो का महायोग अर्थात मुर्गा बना देती हैं।
हे योग देव अगर आप गृहस्थी बसाते,
तो हम योग दिवस नहीं पत्नी दिवस मनाते।
एक शादीशुदा की 'दुखी' कलम से योग दिवस की मासूम सी योग गाथा ।
हँसते रहिये , हँसाते रहिये ।
एक शादीशुदा की दुखी कलम से योग दिवस ।
योग दिवस को मैं , कुछ इस तरह से मना रही हूँ,
रात को उसके पैर दबाए थे अब पोंछा लगा रही हूँ।
धो रही हूँ बर्तन और बना रही हूँ चपाती,
मेरे ख्याल से यही होती है कपालभाति।
एक हाथ से पैसे देकर, दूजे हाथ में सामान ला रही हूँ मैं,
और इस प्रक्रिया को अनुलोम विलोम बता रही हूँ मैं।
सुबह से ही मैं , घर के सारे काम कर रही हूँ,
बस इसी तरह से दोस्तों प्राणायाम कर रही हूँ।
मेरी सारी गलतियों की जालिम ऐसी सजा देते हैं,
योगो का महायोग अर्थात मुर्गा बना देते हैं।
हे योग देव, अगर आप गृहस्थी बसाते,
तो हम योग दिवस नहीं, पति दिवस मनाते।
एक शादीशुदा की 'दुखी' कलम से योग दिवस की मासूम सी योग गाथा ।
हँसते रहिये , हँसाते रहिये ।
No comments:
Post a Comment