आज छम्मकछल्लो आपके लिए अपनी ही बनाई एक छोटी सी फिल्म लेकर आई है।
"संसार केवल महिलाओं, बच्चों या जानवरों के प्रति ही असंवेदनशील नहीं है। वह समाज की सबसे मजबूत कड़ी 'पुरुष' के प्रति भी उतना ही क्रूर है। "मेरा वजूद" एक विचार है, जो दिन-प्रतिदिन मिलनेवाली टिप्पणियों पर आधारित है। यह एक प्रश्न उठाता है कि क्या पुरुषों के भीतर भी संवेदनाएँ होती हैं और उनके अपने ही उनके भावों को समझ पाते हैं? फिल्म देखिये, शेयर कीजिए, अपने विचार दीजिये।
World is not cruel only for women, children or animals. It is equally injustice towards sole power center, that is Male members of our society. "Mera Wajood" is a thought, governed on the basis of day to day comments, made by our near and dear ones. It raises a question whether male fraternity has emotions and are there people to understand them? Watch, share and opine."
2 comments:
बेहतरीन फिल्म बनी है…
उफ़ ये जीवन की आपाधापी... फ़र्क तो पड़ता है।
शुक्रिया मोनिका जी। औरताऊ रोना से हटकर हम इनकी दिक्कतों को भी मुखातिब कर सकें तो समझूंगी, मेरे विचारों के साथ आप हैं। इस पर अपने कमेंट्स दें। इसे शेयर करें।
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