मुझे पता है, आपमें से कई अबतक इस सोलो नाटक "नौरंगी नटनी" को देख नहीं पाए होंगे। संजीव की कहानी पर आधारित और मिथिला के लोक से जगजीयाता यह सोलो आपके लिए- एक बार फिर। देखिये, कमेन्ट कीजिये, शेयर कीजिये और देखते हुए नाटक कई धुन, लय, तान और कथ्य में खो जाइए।
Tensions in life leap our peace. Chhammakchhallo gives a comic relief through its satire, stories, poems and other relevance. Leave your pain somewhere aside and be happy with me, via chhammakchhallokahis.
Tuesday, July 22, 2014
Monday, July 14, 2014
मेरा वजूद - My Existence : विचारों पर एक फिल्म
आज छम्मकछल्लो आपके लिए अपनी ही बनाई एक छोटी सी फिल्म लेकर आई है।
"संसार केवल महिलाओं, बच्चों या जानवरों के प्रति ही असंवेदनशील नहीं है। वह समाज की सबसे मजबूत कड़ी 'पुरुष' के प्रति भी उतना ही क्रूर है। "मेरा वजूद" एक विचार है, जो दिन-प्रतिदिन मिलनेवाली टिप्पणियों पर आधारित है। यह एक प्रश्न उठाता है कि क्या पुरुषों के भीतर भी संवेदनाएँ होती हैं और उनके अपने ही उनके भावों को समझ पाते हैं? फिल्म देखिये, शेयर कीजिए, अपने विचार दीजिये।
World is not cruel only for women, children or animals. It is equally injustice towards sole power center, that is Male members of our society. "Mera Wajood" is a thought, governed on the basis of day to day comments, made by our near and dear ones. It raises a question whether male fraternity has emotions and are there people to understand them? Watch, share and opine."
"संसार केवल महिलाओं, बच्चों या जानवरों के प्रति ही असंवेदनशील नहीं है। वह समाज की सबसे मजबूत कड़ी 'पुरुष' के प्रति भी उतना ही क्रूर है। "मेरा वजूद" एक विचार है, जो दिन-प्रतिदिन मिलनेवाली टिप्पणियों पर आधारित है। यह एक प्रश्न उठाता है कि क्या पुरुषों के भीतर भी संवेदनाएँ होती हैं और उनके अपने ही उनके भावों को समझ पाते हैं? फिल्म देखिये, शेयर कीजिए, अपने विचार दीजिये।
World is not cruel only for women, children or animals. It is equally injustice towards sole power center, that is Male members of our society. "Mera Wajood" is a thought, governed on the basis of day to day comments, made by our near and dear ones. It raises a question whether male fraternity has emotions and are there people to understand them? Watch, share and opine."
Thursday, July 3, 2014
तीन कविताएं!- "सृजनलोक" में।
"सृजनलोक"! संतोष श्रेयान्स के संपादकत्व में आरा, बिहार से प्रकाशित पत्रिका के संयुक्तांक 12-13,2014 के "काव्य कलश" विशेषांक में प्रकाशित तीन कविताएं! देखें। राय दें, विचार दें।
बीज सब
एकांझ!
उसकी आंखों में सपनीला सा दिल था
जिसमें समाई हुई थी
बारिश की बूंदों सा उछलता था
उसका दिल
खेत में पड़ते बीज लगते थे नवजात शिशु
और फसल की बालियां
स्कूल जाते बच्चे!
वह सपनों में जीता था,
जिसमें होते थे
खेत, फसल और बच्चों के कपडों के संग
नाक की मोरपंखी लौंग लेना
घरवाली के लिए
उसे हैरानी होती है,
अपने अपढ़ दिमाग को खंगालते,
माथे को ठोकते पूछता रहता है
बाबा! चाचा!! ताऊ!!!
ये बीज सब एकांझ क्यों हो
गए हैं?
एक ही फसल के बाद खाली हो
जाते हैं?
बाबा, चाचा, ताऊ भी तो उसी
की तरह हैं,
कायदे-कानून का उन्हें कैसे पता?
वह तो हर साल बीज खरीदता है,
धड़कते दिल से बोता है
बाढ़, सूखे से बच गया तो
बाजार से भी बच जाए, ताकि
छोटी हो जाए कर्जे की चादर- तनिक!
(-----)
टक-टक
सा टूटता धागा!
मैंने अपने हाथ-पैरों की
बीसों उंगलियों को
टटोला – एक-एक करके
टक-टक सा टूटता गया
एक-एक धागा बीसों से
मेरे सर से पैर तक लम्बी
खामोश वीरानी
क्या मैं खाली हो गई हूं प्यार से?
प्यार के अहसास से?###
टीस
मारती गांठें!
इतना प्यार?
आज भी जता रहे हो
बिन बोले मन की बात,
बिन खोले मन की गांठ
पहले ही जता देते
तो नहीं उगती तन-मन
मैं गांठें!
गांठे कटे या खुले
बनी तो रह जाती हैं निशानें
कटने या खुलने के
टीस मारती – हौले-हौले
पर – निश्चित निशान! ,
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