‘वाउ! व्हाट अ
करेज! 30 साल यूके रहकर लौट आना! ऑन नेशन्स कॉल! डॉक्टर मुरुगन, एंडोक्रोनॉलॉजिस्ट।‘
‘देश को मेरी जरूरत है। माई पुअर कंट्री, माई पुअर पीपल।‘
चेन्नै
का सबसे पॉश इलाका नुंगम्बाक्कम खिल जाता है डॉ मुरुगन के क्लिनिक से। क्लिनिक के साथ-साथ कॉर्पोरेट हाउसेज,
कॉलेज इंस्टीच्यूट- कंसलटेंसी-लेक्चर-सेमिनार! बायोडाटा का वजनदार पहलू- 30
साल यूके में काम करने के बाद स्वदेश वापसी! वजह? देशप्रेम, देश सेवा...!
डॉ. मुरुगन गुलदस्ते लेते न थकते, लोग तालियां बजाते ना थकते!
‘आ-मा! येस सार!! चेन्नै, आमारा होम-टाउन।‘ देशप्रेम– पुअर कंट्री,
पुअर पीपल– डॉ. मुरुगन। कई अस्पतालों को चैरिटी सर्विसेज– सप्ताह में एक
दिन – एक घंटा सुबह, एक घंटा शाम।
देश-वापसी भ्रामक शब्द है। लोग देश नहीं, अपने शहर या डीह
लौटते हैं। दिल्ली का आदमी विदेश से लौटकर कोलकाता, जबलपुर, मजफ्फरपुर में नहीं
बसता। चेन्नै के डॉ. मुरुगन चेन्नै ही लौटे।
अपना घर, अपनी भाषा, अपने लोग!
अच्छा लगा ‘मुरुगन इडली’ जाकर! ‘सर्वाना भवन’ से अधिक! आखिर
अपना ही एक हमनाम है न! मुरुगन माने भगवान कार्तिक। घूम आए वडपलनी के प्रसिद्ध
मुरुगन मंदिर, मयलापुर कापालिक मंदिर से साहुकारपेट और
बर्मा बाज़ार। टी नगर और पेरिस कॉर्नर। मरीना और बेसेंट नगर बीच। कोई तुलना नहीं, यूके और चेन्नै की। ऊंहू! तुलना तो है-
यूके-एक विदेशी धरती- चेन्नै- अपनी धरती- यही देशप्रेम है, यही भारतीयता है- भारतीयता का लोकल अध्याय!
गोपालापुरम से पोएस गार्डन तक – भूतपूर्व और वर्तमान
आलाकमान दोनों से मिल आते हैं डॉ मुरुगन, ताज़े गुलदस्ते और नए बिजनेस कार्ड के साथ। लोगों ने कहा कि
भूतपूर्व आलाकमान आयुर्वेद में अधिक यकीन रखते हैं। किसी ने कहा, नई आलाकमान विज्ञान की नई तकनीक और ईजाद की मुरीद हैं। गोपालापुरम में डॉ. मुरुगन समझा आते हैं नाना भस्मों की महत्ता और पोएस गार्डन में इन्सुलिन की – यदि पैंक्रीयास काबू के बाहर चला जाए तो....! असर शरीर के विभिन्न ग्लैंड्स तक- थायरॉयड्स, किडनी और कई बीमारियाँ..!
हेल्थ कांशस लोग, हेल्थ कांशस
संगठन! यूरोपीयन अवधारणा के भारतीय कॉर्पोरेट, कंपनी, इंस्टीट्यूट, दफ्तर...! काम
की अधिकता, काम के तनाव में कर्मचारी
भूल रहे हैं– घर, परिवार,
दोस्त, रिश्ते, रीति-रिवाज, व्रत-त्यौहार!
किसी के पास किसी के लिए समय नहीं – मां-बाप के मरने के
अलावा या अपनी शादी या अपने बच्चे के जन्म के अलावा और किसी के लिए छुट्टी नहीं।
रीसेशन- मुद्रास्फीति, मंहगाई– आमदनी। आदमी चाबीदार खिलौना बनने को अभिशप्त! और कॉर्पोरेट्स जताता है- दे
केयर देयर एम्प्लाईज! कॉर्पोरेट्स नहीं सोचना चाहते कि कार्य पद्धति बदल लेने से
इन लेक्चर्स की जरूरत ही ना पड़े।
स्टडी... पावर प्वायंट
प्रेजेंटेशन – लेक्चर्स – ओपन फोरम – डॉ. मुरुगन खुश
हैं। देश खुश है – चेन्नै खुश है। स्टडी यूरोपियन है तो क्या हुआ? कोई स्टडी
होती है अपने देश में? होती भी होगी तो कोई महत्ता है
यहां? स्थानीय अध्ययन, खोज, शोध हमें नकली, बनावटी, झूठे लगते हैं। यूरोप की छन्नी की तलछट
भी हमारे लिए भगवान शंकर का प्रसाद! यूरोपीयन स्टडीज पर एशियन, खासकर भारतीय बाजार बनाया जाता
है। हम भारतीय बाज़ार बनने के लिए अभिशप्त नहीं, तैयार बैठे हैं- मनुष्य ही मनुष्य! वहाँ चूहे पर
प्रयोग... यहाँ हम पर करो प्रयोग! हमारा करो उपयोग...! यूके का वातावरण – चेन्नै के लोग... ‘करें’ ‘ना करें’ की लिस्ट! ‘खाएं’ ‘ना खाएं’ की फेहरिस्त!
क्लिनिक अब नर्सिंग होम का आकार ले रही है।
अण्णा नगर ईस्ट का भव्य
बंगला– चौड़ी सड़क– दोतरफा घने, छायादार पेड़, शांत
वातावरण... बड़ा
बंगला, बड़ा लॉन, तीन गाडि़यां – स्वयं, बेटी और पत्नी!
मात्र तीन सदस्य! फिर भी घर नहीं जाना चाहते डॉ. मुरुगन!
घर किसी को अच्छा नहीं
लगता– न डॉ. मुरुगन को, न स्टैला को, न मारिया को।
डॉ. मुरुगन के मिजाज और चेन्नै की गर्मी से पागल हैं मारिया और स्टैला। यहां
का ट्रैफिक खौफ नहीं,
वितृष्णा भरता है। स्टैला
भुनभुनाती है- आ’म नॉट ए रेसिस्ट! बट... दीज क्लोज्ड एंड नैरो पीपल!
अनबेयरेबल!’
संसार की हर लड़की बीवी
बनकर केवल बीवी ही रह जाती है।
डॉ. मुरुगन की ज़िद –‘मेरे देश को मेरी
जरूरत है। माई पुअर कंट्री, माई पुअर पीपल।’
‘तो यहां क्यों
आए थे? तीस साल पहले तो और भी पुअर रहा होगा तुम्हारा कंट्री।’
‘इसीलिए तो आ गया।’
‘ताकि अपनी गरीबी
की पैबन्द अपने कोट से निकाल सको?’
‘यस!’
‘तो मेरी लाइफ में
क्यों आए?’
‘हम दोनों
एक-दूसरे की लाइफ में आए। तीस साल मैं वहां रहा – तुम्हारे पास। अब जीवन
के बाकी बचे साल तुम मेरे साथ रहोगी – यहां इंडिया।’
‘नो वेज। दैट ऑल्सो इन चेन्नै? इतनी गर्मी! व्हाट शुड आई डू
हेयर?’
‘तुम्हें बारह
बजे दिन में बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन के लिए ईंट ढोनी है? घर
है, एसी है, नौकर हैं। गो टू क्लब, जिम, पब। बट डोंट थिंक टू गो बैक।’
स्टैला पिनकती है,
मारिया सुबकती है। डॉ. मुरुगन को बिल्कुल अच्छा नहीं लगा, जब स्टैला ने बेटी मीरा को
मारिया बना दिया- ‘वह इस नाम से यहां खुद को कम्फर्टेबल फील करेगी।’
‘और अपने देश में?’
‘यह उसी का तो देश
है। यहां की नागरिक है। यहां का बर्थ रजिस्ट्रेशन, यहां का पासपोर्ट!’
‘पर मैं तो यहां
का नहीं हूं। और वह मेरी बेटी है। उसका देश है इंडिया।’
‘मैं उसकी मां
नहीं? मेरा देश उसका देश नहीं?’
डॉ. मुरुगन उठ गए। स्टैला
सो गई। डॉ. मुरुगन को सबकुछ रेत सा फिसलता लग रहा था– मरीना बीच की रेत।
बीसेंट नगर के टीले, कोएम्बेदु का सीएमबीटी, एगमोर और चेन्नै सेंट्रल स्टेशन– आईआईटी मद्रास का
इलाका... मैलापोर का बाज़ार, टी-नगर का नारद गानसभा, नुंगम्बाक्कम की म्यूजिक
एकेडमी, हर गली-नुक्कड़ पर एक-एक मंदिर,...!
पुल, फ्लाई ओवर, बिजली,
पानी, मल्टीप्लेक्स, मॉल, मल्टीस्टोरी... कितनी बदल गई है चेन्नै... नाम में
नाजुकता – मद्रास से चेन्नै- जैसे भारी भरकम पेड़ के बदले नरम,
नाजुक टहनी।
डॉ. मुरुगन जल्दी ही
धरती के भगवान बन जाते हैं– लॉर्ड मुरुगन! चेन्नै
में हर दूसरा-तीसरा मंदिर मुरुगन का है– शिव के बेटे कार्तिक का! कार्तिक -
सौंदर्य के देवता। भारतीय मिथक में कोई खास योगदान नहीं। फिर क्यों इतने ज्यादा
मंदिर इनके?’
‘सौंदर्य की खोज में! शायद!!’ अपने मजाक पर खुद ही हंस
पड़े डॉ मुरुगन। शायद यही सौंदर्य उन्हें स्टैला तक खींच लाया। तब के मुरुगन पर
रीझी स्टैला अब इडली सी सीझी हुई है।
‘यू इंडियन्स!
हिपोक्रेट्स! अपने लिए बड़े प्रोग्रेसिव! मां के ‘मर जाऊंगी’ की रोनी तान पर
डॉ. मुरुगन ने कह दिया –‘अम्मा! अभी तो मैं तीन
साल पर एक बार आ भी जाता हूं। ऐसे बोलोगी तो कभी इंडिया नहीं आऊंगा।’
‘तो क्यों आए? यू
इडियट?’
‘मारिया के लिए!
उसके अरंगेत्रम के लिए।’
‘अरंगेत्रम के लिए इंडिया
शिफ्ट होना जरूरी है? भरतनाट्यम सीखा यूके में और अरंगेत्रम इंडिया में? इतनी बेअक्ल
हूं मैं? बट, यस!
सचमुच बेवकूफ
हूं। द ग्रेटेस्ट बेवकूफ कि तुमसे शादी की।’
‘मैं तुमसे भी
अधिक मूरख, जो तुमसे शादी कर ली। फिरंगन ही बना दिया मीरा को-
मारिया!... बीफ तक...!’
‘फूड शुड बी अकॉर्डिंग टू टेस्ट
एंड हेल्थ! उसकी जीभ को भाया और सेहत को सूट किया।’
‘हमारा धर्म?
हमारी संस्कृति??’
‘बीफ खाने से, स्कर्ट
पहनने से तुम्हारा धर्म भ्रष्ट हो जाता है, संस्कृति नष्ट हो जाती है? तो मैं जब-जब
यहां आई, साड़ी, बिछुए पहने, कुंकुम-चंदन लगाया, प्योर
वेज खाना खाया– तुम्हारे मुताबिक पूजा की, तो मेरा धर्म भ्रष्ट नहीं हुआ?
मेरी संस्कृति नष्ट नहीं हुई? इतना कमजोर क्यों है तुम्हारा धर्म और संस्कृति? एक फूँक मारो- फुर्र! एक चिंगारी डालो- खाक! या तुमलोग ही कमज़ोर हो?’
होगा चेन्नै का लॉयला
कॉलेज बड़ा हैप- हैप! मारिया को अपना कॉलेज, अपने दोस्त याद आते हैं– साफ-सुथरे भवन
से लेकर साफ-चिकनी सड़क... ओह डैड! ... वह गुस्से में अपने नाखून से अपना ही मुंह
नोच लेती है।
विलियम कहता –‘आई रेस्पेक्ट
योर डैड वेरी मच! एक तो डॉक्टर, एंड एबव ऑल, एन इंडियन! हम
इंडिया जाएंगे। इंडियन तरीके से शादी करेंगे।’
मारिया ने इंडियन कस्टम्स
के बारे में खूब पढ़ा और कन्फ्यूज्ड हो गई – इतने स्टेट्स, इतनी
जातियां! हर राज्य के, हर जाति के ब्याह के अलग-अलग तरीके? बिहार का अलग, गुजरात
का अलग, महाराष्ट्र का अलग, तमिलनाडु का अलग!
‘डैड! क्या कोई
शादी ऐसी है जो पूरे भारत को रिप्रेजेंट करे?’ कान खड़े हो गए डॉ.
मुरुगन के।
‘कौन है विलियम? क्या करता है? परिवार? खानदान?? बाई नेम, ही सीम्स
नॉन-हिन्दू। कैथोलिक? प्रोटेस्टेंट?’
‘ओह डैड! विलियम
इज जस्ट विलियम!?’
‘वह हमारी कम्यूनिटी
का नहीं है।’
‘सो व्हाट? आप और
ममा भी तो... ’
पूरे भारतीय बन गए डॉ.
मुरुगन – मारिया पर हाथ उठाने से लेकर स्टैला पर नाकाबिल मां का
मुलम्मा चढ़ाने और आनन-फानन चेन्नै शिफ्ट हो जाने तक।
मारिया और स्टैला के बीच में खड़े
डॉ. मुरुगन – एक लम्बी तहरीर बनकर!
मूरख है डॉ. मुरुगन! उन्हें
लगता है, जीवन सिनेमा है– हिंदी सिनेमा! पर नहीं!
जीवन सिनेमा ही तो है। सिनेमा की इस स्क्रिप्ट में नेट भी है, मोबाइल भी, फेसबुक
भी, ट्वीटर भी... पढ़ी-लिखी, स्वतंत्र विचारोंवाली स्टैला भी और आंखों में अनन्त
सपने लिए विचर रही मारिया भी।
घर न जानेवाले डॉ. मुरुगन छह माह तक अण्णा नगर के भव्य बंगले
में कैद रहे – तनहा! फोन, नेट, मोबाइल – सबसे दूर! स्टैला का
फोन आता, मारिया के मेसेज आते – ‘डैड! आई लव यू
डैड! आप यहां आइए! हम फिर से साथ रहेंगे! मॉम ने हॉस्पिटल ज्वाइन कर लिया है।
मैं, मॉम, विलियम साथ ही रहते हैं। विलियम की जिद है इंडियन मैरेज की। हम यहीं पर
शादी कर रहे हैं – इंडियन तरीके से।‘
‘कौन सा इंडियन तरीका? किस राज्य का? किस जाति का? किस धर्म
का? हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, सिख! इतने धर्म, इतनी जातियां, इतने राज्य?’
छह महीने बाद पहली बार माथा झटका डॉ. मुरुगन ने - ‘आई लव माई कंट्री! माई पुअर कंट्री! माई पुअर पीपुल!’ बंगले का दरवाजा खुला,
फोन के नंबर डायल हुए, पीपीटी प्रेजेंटेशन रिवाइज़ हुआ, कॉलर माइक ऑन हुआ,
कॉर्पोरेट हाउस में बैनर टंगा ‘डायबिटीज– रूट कॉज,
प्रिकॉशन्स एंड क्योर!’
डॉ. मुरुगन का
परिचय जारी है– ‘एंडोक्रोनॉलॉजिस्ट’, ‘डायबॉलॉजिस्ट’! सीधी जबान में- पेट के डॉक्टर। विशेष जानकारी- 30 साल तक यूके में रहने के बावज़ूद देश नहीं
भूले. आ गए देश और जनता की सेवा के– फॉर गुड!’
तालियां बजती
हैं। डॉ. मुरुगन मुस्कुराते हैं। यूरोपीय अध्ययन आधारित डाटा स्लाइड दर स्लाइड
उभर रहा है। डॉ. मुरुगन को स्लाइड्स के पीछे नजर आती हैं – मारिया! स्टैला!!
वे खुद को संयत कर स्लाइड पर से नजरें हटा लेते हैं। डायबिटीज, पैन्क्रीयाज
बोलते-बोलते वे बोलने लगते हैं– ‘यस! थर्टी इयर्स!
आफ्टर थर्टी इयर्स, आई केम फॉर गुड! फॉर माई
पुअर कंट्री! फॉर माई पुअर पीपुल!!’
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1 comment:
पैजामे के नाड़े जैसी है जातीय व्यवस्था मानने वाले लोगों की सोच, वो अपने हिसाब से ढीला और मजबूत बाँध लेते हैं / आपकी यह कहानी सचमुच भारतीय सोच को आइना दिखाने वाला है / उम्मीद है, आगे भी ऐसा आप जारी रक्खेगी / शुभकामनाये /
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