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Monday, April 9, 2012

महात्मा गांधी राष्ट्रपिता कब बने?

      हे हमारे महात्मा गांधी! अच्छा हुआ जो आप इस नश्वर जगत से विदा हो लिए। जीवित होते तो जो भोग भोगते, उससे तंग आकार या तो आप मर जाते या ख़ुदकुशी कर लेते।
      अच्छा हुआ बापू, जो आपके कई नाम हैं- गांधी जी, महात्मा जी, बापू, राष्ट्रपिता! इतने सारे नामों के होने का एक फायदा यह है कि निबंध लिखते समय बहुत से पर्यायवाची शब्द मिल जाते हैं। नुकसान यह कि इन नामों के कारण लोग असली नाम ही भूल जाते हैं। सर्वे करा लें बापू कि कितने लोगों को आपका असली नाम पूरा याद है? देश भी न। आपके नाम पर हर शहर में रास्ते बना दिए- महात्मा गांधी मार्ग! एम जी रोड!! मगर कोई बता दे छम्मकछल्लो को कि किसी रास्ते का नाम मोहनदास करमचंद गांधी है?
      एक फायदा भ्रम का भी है। छम्मकछल्लो एक नाटक शोभायात्रा देख रही थी। नेता जी, गांधी जी, झांसी की रानी आदि का किरदार निभा रहे सभी कलाकारों को चाय की तलब लगती है। चायवाले छोकरे से एक किरदार गांधी जी को दिखाकर कहता है, ‘जा, चाय बापू को दे आ। छोकरा कनफ्यूज्ड है, क्योंकि कई लोग तबतक उन्हे महात्मा जी कहकर संबोधित कर चुके हैं। वह चारो ओर देखता है। फिर गांधी जी को दिखाकर वह पात्र से पूछता है-
ये महात्मा है?’
हाँ।
और ये?
नेता जी (सुभाष चंद्र बोस)
तो बापू कौन है?’
      गांधी जी कब महात्मा बने? कब बापू? कब राष्ट्रपिता? कोई दस्तावेज़ है अपने पास? कोई हवाला?? कोई संदर्भ??? आजकल के बच्चे। सनकी! इंटरनेट और इन्फोर्मेशन टेक्नॉलॉजी के मारे सब! लखनऊ की बारह वर्षीया ऐश्वर्या पारसर! गांधी जी को राष्ट्र पिता यानी फादर ऑफ नेशन कब कहा गया, इसे जानने की सनक चढ़ गई। पूछ लिया माँ-बाप से लेकर टीचर तक से। छान मारा नेट-इंटरनेट का संजाल। जवाब नदारद! तो लो जी। आजकल के बच्चे भी ना। इसे ही कहते हैं, युग में छेद करना। उसने भी ले लिया आरटीआई का सहारा और पूछ बैठी प्रधान मंत्री कार्यालय से कि बताइये सर कि महात्मा गांधी राष्ट्रपिता कब बने? सुना कि प्रधान मंत्री कार्यालय ने गृह मंत्रालय को लिख भेजा और गृह मंत्रालय ने नैशनल आर्काइव्स ऑफ इंडिया को। वहाँ से जवाब आया- ऐसी कोई जानकारी दर्ज़ नहीं है।उसने तो यह भी कहा बारह वर्षीया ऐश्वर्या पारसर से कि ऐ इस देश की नाड़ा बच्ची, हमारे पास और कोई काम नहीं है क्या? तुझे इतनी गरज पड़ी है तो आ और छान मार ले सारा रेकॉर्ड!   
      छम्मकछल्लो का दिल खुशी से भर आया- अपनी परंपरा के शिद्दत से पालन पर। यह दूसरी बात है कि उस पालन- अनुपालन में कभी गांधी जी का चश्मा गायब हो जाता है तो कभी घड़ी नीलाम हो जाती है। देश उसे बरामद नहीं कर पाता, खरीद नहीं पाता। उनको गाली देने का रिवाज तो हमने भोर की कुल्ली की तरह बना लिया है। गांधी जी राष्ट्रपिता कब बने कि नेहरू जी को सबसे पहले चाचा नेहरू किसने कहा कि सरदार वल्लभ भाई पटेल को लौह पुरुष की संज्ञा किसने सबसे पहले दी कि जय प्रकाश नारायण सबसे पहले लोक नायक का और किसके द्वारा कहलाए, हमें इससे क्या!
      हमें वैसे भी दूसरों के चूल्हे पर अपनी रोटी सेंकने की आदत है। अंग्रेज़ी उनकी, गौरव हमारा, औद्योगीकरण उनका, आत्मबल हमारा! कंप्यूटरीकरण उनका, उसपर अपनी दुकान खोलने में आगे हम!!
      छम्मकछल्लो ऐश्वर्या पारसर को सलाह देना चाहती है कि वह अपने लोगों से उम्मीद छोड़ दे। दस्तावेजीकरण की फुर्सत किसको है भला! वह दक्षिण अफ्रीका को लिखे या इंग्लैंड को। उसे संदर्भ जरूर मिलेगा। हमें अपनी परंपरा पर गाल बजाने आता है, उन्हें अपने साथ- साथ हमारी जानकारियों का भी दस्तावेजीकरण आता है। क्यों बापू? आप क्या कहते हैं? ###

3 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

बापू ने क्या कहना है जी...वो तो जीते जी ही इन पिछल्गुओं से परेशान हो गये थे...:))

dr.mahendrag said...

Gandhiji to bechare waise hi pareshan the, ab aur bhi pareshan hae.Ek party ne to unhe apna brand hi bana liya hae, yadi doosra Gandhiji ke adarshon ki koe bat kahta hae to use apne adhikar ka hanan hota lagta hae.
Gandhi us din mare nahin the, yeh to ab rojana unki hatya ki jati hae.GANDHI KE IN SWATVADHIKARI PARTY KE NETAON SE POOCH KAR AUR DEKH LO KI KYA UNHE PATA HAE?
DIGGI RAJA,KO POOCH LO UNHE PATA HOGA.

Vinay Malviya, Indore. said...

इतने आवश्यक कार्यों में इन व्यर्थ कार्यों के लिए किसी के पास समय होता है भला? समय होता भी होगा तो कम पगार के बारे में सोच-सोच कर छाती नहीं चलती होगी, छाती चलती भी होगी तो अपने वरिष्ठ अधिकारियों की अभद्र भाषा हाथ को रोक लेती होगी, और इन सब समस्याओं से परे भी आलस्य मेरा महान कानों में गूंजने लगता होगा।

इन सब के ऊपर भी सरकार की मंशा दस्तावेजीकरण पर क्या है यह ज्यादा माईने रखता है।

अब चूँकि यह किस्सा तो पुराना है, लेकिन सरकार इस वाकिये से सीख भी लेले इसमें भी मुझे शक है।

और फिर होगा यह की आने वाले समय में फिर कोई ऐश्वर्या आर.टी.आई. के तहत यह पूछेगी की हमारे पूजनीय ससुरजी को 'Angry Young Man' का खिताब किसने और कब दिया था।

सुधर जाओ सरकार!