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Thursday, April 5, 2012

किल्लत

आज एक कविता आप सबके लिए।

किल्लत

हर काम में लगता है समय!
और यह है कि है ही नहीं!
कुछ तो हो उपाय
कर्ज़ा लें या उधार!
इंवेस्टमेंट इन शेयर या कुछ फिक्स्ड डिपॉज़िट
या कुछ कहीं कोई इंश्योरेंस!
कि मिल सके सूद में ही सही, एक टुकडा समय का
नहीं हो समय बैंक या साहूकार के चक्कर काटने का
या उनके प्रतिनिधियों की बात भी सुनने का
तो कर दें बंद थोडे से समय को
घर के टिन या स्टील के बक्से में
या आलमारी के लॉकर में
नहीं मिले सूद, नहीं मिले मियाद
पर अपना समय रहेगा तो बना हुआ अपना
जिसे जब चाहें, कर सकें खर्च!
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3 comments:

mridula pradhan said...

कि मिल सके सूद में ही सही, एक टुकडा समय का
wah.......kya baat hai.

परमजीत सिहँ बाली said...

बस समय ही नही रखा जा सकता.बचा के भविष्य के लिये....बढिया प्रस्तुति।

M VERMA said...

समय संजोने की कला यदि इजाद हो सके तो सूचित करें ...
बहुत सुन्दर रचना