हे प्रिय राम! हे सखा कृष्ण!! बढिया क्या है? आपका इस युग में ना होना या आपके युग में फेयरनेस फॉर मेन कॉन्सेप्ट का न होना? आपके ही कारण इस देश में यह अवधारणा बनी होगी कि मर्दों की सीरत देखो, सूरत नहीं. शास्त्र में वर्णित धीरोदात्त नायकों की परिकल्पना को भी आपने अपने काले रंग से ध्वस्त कर दिया. कैलेंडरवालों ने काले को नीले में बदल दिया- ब्ल्यू बेबी! बच्चा जब नीले रंग का जनमता है, लोग घबडा जाते हैं. यहां भगवान को ही नीला कर दिया. लगा होगा- काले पर क्या दिखेगा? देवी काली को देखिए- न आंख दिखती है ना नाक! इसलिए नीला! नीलेपन का सौंदर्य भी, कैलेंडर की खूबसूरती भी.
छम्मकछल्लो वारी वारी जाती है- सीता पर भी, शूर्पनखा पर भी. राधा पर भी, गोपियों पर भी. जनक अपने ही धनुष भंग के जाल में फंस गए. धनुर्भंग कर रहे काले राम को देख पता नहीं उन पर क्या बीती होगी? माता सुनैना भी पार्वती की मां की तरह ही जनक से लडी होंगी-
हमु नहिं आज रहब एहि आंगन, जौं कारी होयत जमाय गे माई!
सभी सास लडती हैं अपने पतियों से- काला दामाद पाकर- “अरे आंख थी कि बटन?” सभी लडकियां झमाती हैं, काले पति को पाकर. पुष्पवाटिका में सीता जरूर गोरे लक्ष्मण में राम का तसव्वुर कर बैठी होंगी. धनुर्भंग करते काले राम को देखकर बेहोश होते होते बची होंगी.
धरती पर के काले मर्दों का मनोबल बढाने के लिए राम और कृष्ण के कालेपन की महिमा गाई गई होगी, वरना यह कैसे सम्भव है कि उनके मूल स्वरूप विष्णु तो गोरे हों और ये काले? काले-गोरे की यह लडाई भी उत्तर भारत में है. दक्षिण भारत में हर देवी-देवता काले हैं, इंडोनेशिया के चिपटी नाकवाले राम-सीता की तरह. उत्तर भारत में सुतवां नाक, मछली सी आंख, तिलकोर के फल से ओठ और सोने जैसे रंग की अवधारणा है. छम्मकछल्लो को ‘सोने जैसा रंग है तेरा’ भी नहीं समझ में आता. सोना पीला होता है और चेहरे पर पीलापन हो तो लोग बीमार या पीलिया का मरीज़ समझ लेते हैं.
काले रंग के लोग उत्तर भारत में भी हैं. जरूर उन्हें लडकीवाले छांट देते होंगे. भगवान तर्क से परे हैं. इसलिए राम-कृष्ण काले हो सकते हैं, दूल्हे नहीं. आखिर को उसे मंडप पर चढना है, गांव घर की स्त्रियों के व्यंग्य बाण झेलने हैं, अपनी खूबसूरत पत्नी के बगलगीर होना है. वे चाहे कितने भी काले हों, पत्नी गोरी और सुंदर चाहिए. सीधा तर्क! संतति गोरी होगी, जैसे डॉक्टर ने सर्टीफाई कर दिया हो कि उनकी संतान मां का ही रूप-रंग लेगी.
छम्मकछल्लो रंग के महत्व को देखती-झेलती आ रही है. इस रंग ने कितना बडा रंग हटाऊ बाजार खडा कर दिया! हर कोई एक फेयरनेस क्रीम उठा लाता है. बाजार लडकियों के फेयरनेस क्रीम से भर गया. अब? लडके!! क्योंकि आजकल लडकियां भी बडी डिमांडिंग हो गई हैं, गोया लडकियों के लिए मात्र एक ही क्राइटेरिया हो –लडके का गोरा होना.
जरूर वाल्मीकि या वेदव्यास अवश्य काले रहे होंगे. ज़रूर सौंदर्य प्रसाधन निर्माताओं में से ज़रूर कोई न कोई काला रहा होगा. कालेपन का दंश उन्होंने सहा होगा. ऊपरवाला भी ना! जिस तरह उम्र की छाप छोडता चलता है, उसी तरह एक खास उम्र पर कम से कम सभी को गोरा कर देने का प्रावधान तो रखते.
भगवान की इस गलती को सुधारने का जिम्मा सौंदर्य प्रसाधन निर्माताओं ने लिया और बनाया- फेयरनेस क्रीम फॉर मेन. हे हिंदू हृदय-सम्राटो! राम-कृष्ण की परम्परा को मारो गोली! कौन सा हम उनकी परम्परा और उनकी सीरत को अपना रहे हैं? आप फेयरनेस क्रीम अपनाओ. लडकियों के मां-बाप भी कहते हैं- “लडका मंडवा पर लडका जैसा तो दिखना चाहिए ना!” साफ-साफ कहो ना कि हनुमान नहीं! हालांकि कैलेंडरों में हनुमान का रंग गोरा ही है!
6 comments:
sahi aur samyik......
धन्यवाद मृदुला जी.
विभा, तुम क्या लिखती हो और खूब लिखती हो. "वो खंज़र भी उठाते हैं तो गिला नहीं होता" शायद तुम जैसी ही बिंदास के लिए कहा गया होगा. ऐसे ही लिखती रहना, ये दुआ करती हूँ.
विभा, तुम क्या लिखती हो और खूब लिखती हो. "वो खंज़र भी उठाते हैं तो गिला नहीं होता" शायद तुम जैसी ही बिंदास के लिए कहा गया होगा. ऐसे ही लिखती रहना, ये दुआ करती हूँ.
waaaaaaaaahh Vibha Di.....
:D:D:D
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