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Sunday, February 26, 2012

भिखारिन: एक बार फिर मची धूम एकल प्रस्तुति की.


रंगमंच को आम तौर पर समूह की कृति के रूप में माना जाता है. यह सामूहिक प्रयास है भी. परंतु इस समूह की भीड में एकल प्रस्तुति कहीं खो सी गई थी. छिटपुट रूप में एकल प्रस्तुतियां होती रही हैं, परंतु ठोस रूप में एकपात्रीय नाटकों पर काम बहुत कम हुआ है. अभी भी एकपात्रीय नाटकों के मंचन के लिए आयोजक हिचकते हैं. हिंदी और मैथिली की लेखक विभा रानी ने एकल नाटक की सारी कठिनताओं को चुनौती के रूप में लेते हुए एकपात्रीय नाटकों का एक आंदोलन खडा किया है. 2007 से वे लगातार एकल प्रस्तुति में व्यस्त हैं. देश और विदेश (फिनलैंड, आबूधाबी, दुबई) में अबतक वे छह एकपात्रीय नाटक कर चुकी हैं. इसी की अगली कडी है- एकपात्रीय नाटक भिखारिन’. यह रवींद्र नाथ टैगोर को श्रद्धा सुमन है, जिनकी 150वीं जयंती देश भर में मनाई जा रही है. इस एकपात्रीय नाटक की प्रस्तुति और उससे बंधे दर्शकों ने एक बार फिर सिद्ध कर दिया कि एकपात्रीय नाटकों की ओर दर्शकों की रुझान बढी है. विभा पिछले चार सालों से काला घोडा आर्ट फेस्टिवल में एकपात्रीय प्रस्तुति करती आ रही हैं.
काला घोडा आर्ट फेस्टिवल, 2012 में 10 फरवरी 2012 को हुईभिखारिन की पहली प्रस्तुति दर्शकों को मुग्ध कर गया.  टैगोर लिखित कहानी का नाट्य रूपांतर भिखारिन एक अंधी भिखारिन और उसके भाव भरे मातृत्व की अनोखी कहानी कहता है. नाटक सेठ के हृदय परिवर्तन और धन पर भावना और मनुष्यता की विजय की गाथा है.
विभा ने इस नाटक में अनेकानेक प्रयोग किए हैं. मुख्य पात्र अंधी और सेठ के अलावा छोटे बच्चे के अभिनय और उसके भावों को व्यक्त करने में उन्होंने जान डाल दी. सधे अभिनय द्वारा वे अंधी, सेठ और बच्चे के अलावा नाटक में आए अन्य किरदारों को भी साकार करती रहीं. आवाज की कुशलता से अंधी और सेठ दोनों के भाव प्रकाशित करती रहीं. भाषा के स्तर पर भी विभा ने अभिनव प्रयोग किया है. सेठ की शुद्ध हिंदी और अंधी की बांग्ला टोन में हिंदी और बांग्ला लोक गीत के साथ साथ रोबींद्रो संगीत के द्वारा नाटक के कथ्य को सम्प्रेषित करने में अद्भुत कलाकारी दिखी.
नाटक में अभिषेक नारायण की प्रकाश व्यवस्था अत्यंत प्रायोगिक रही. सेठ और अंधी के बीच के सम्वाद प्रकाश के इस तरह से दिखाए गए कि प्रकाशभी एक चरित्रके रूप में आ गया. दर्शक यह समझ पाने में सफल रहे कि कौन पात्र बोल रहा है. पीर, दरगाह ओझा जैसे सूक्ष्म पात्रों को भी दर्शाने के लिए प्रकाश योजना का सहारा लिया गया. अंधी और सेठ के घर के साथ साथ नाटक के सभी स्थलों (लोकेल) का निर्वाह भली-भांति किया गया.
संगीत-संयोजन में बांसुरी के साथ साथ मन्दिर की ध्वनि और बांग्ला धुन का मनोहारी प्रयोग किया गया. कृष्णा अग्रवाल ने नाटक की गति के साथ संगीत का संचालन बहुत कुशल तरीके से किया. नाटक की सबसे बडी विशेषता रही- चेन्नै में इस नाटक का प्रोडक्शन और तमिलभाषी बॉम्बे कण्णन द्वारा इसका निर्देशन. हिंदी और बांग्ला जानते हुए भी थिएटर की भाषा में काम करते हुए बॉम्बे कण्णन नाटक के हर भाव और हर किरदार को इस तरह से प्रस्तुत किया कि सभी भाव अपने आप स्पष्ट होते चले गए.

भिखारिन(एकपात्रीय नाटक)
कहानी: रवींद्र नाथ टैगोर
नाट्य रूपांतर अभिनय: विभा रानी
निर्देशन परिकल्पना: बॉम्बे कण्णन
प्रकाश: अभिषेक नारायण
संगीत: कृष्ण अग्रवाल
बैक स्टेज: धनराज चंद्रकांत राकेश जायसवाल
कार्यक्रम संयोजन: संजय कुमार
प्रथम प्रस्तुति: काला घोडा आर्ट फेस्टिवल, मुंबई में 10/2/2012 को









शो के लिए सम्पर्क करें. 

3 comments:

mridula pradhan said...

aapki itni badi safalta ke bare men jankar bahut khushi hui......kabhi delhi men ho to batayega.......

Vibha Rani said...

मृदुला जी, दिल्ली मे या काही भी अप जैसे सहरदयों और थिएटरप्रेमियों के सहयोग से नाटक हो रहे हैं। जब भी, जहां भी नाटक होते हैं, फेसबुक के जरिये या मेल आदि के जरिये खबर करती हूँ। अप मेरा नाटक देखने आएंगी, मेरे लिए खुशी का विषय होगा।

Vibha Rani said...

मृदुला जी, दिल्ली मे या काही भी अप जैसे सहरदयों और थिएटरप्रेमियों के सहयोग से नाटक हो रहे हैं। जब भी, जहां भी नाटक होते हैं, फेसबुक के जरिये या मेल आदि के जरिये खबर करती हूँ। अप मेरा नाटक देखने आएंगी, मेरे लिए खुशी का विषय होगा।