सौ में बहुत बडा दम है भैया. शताब्दी, सदी, सेनेटेनरी और पता नहीं क्या क्या! देव लोक में तो सुनते हैं, लोग मरते ही नहीं. अपनी माइथोलॉजी में भी लोग हज़ारो-लाखो साल जीते हैं. पर, आज कलियुग है, सौ भी खेप लिए तो बहुत बडी बात! बडे बुजुर्ग कहते हैं कि पहले खान पान, आबोहवा सब बढिया था, सो लोग जीते थे. हर पीढी को अपना समय हमेशा अच्छा लगता है, इसमें अजगुत क्या? आज की रिपोर्ट कहती है, आज औसत आयु जीने की बढ गई है.
तब लोग सौ की उम्र तक जीने की सोचते थे. अब नहीं सोचते. इतनी मंहगाई है, जितनी जल्दी टें बोलोगे, घरवालों को मंहगाई से उतनी जल्दी राहत दिलाओगे.
दुनिया पहले भी क्षणभंगुर थी, आज भी है. पहिले लोग एक चीज खरीदते थे और पीढी दर पीढी उसका इस्तेमाल करती थी. अब जमाना बदल गया है. पुरानी चीज़ों से मोह पुरातनपंथी की निशानी है. आज इंस्टैंट युग का समय है, यूज एंड थ्रो का ज़माना है, इसलिए लोग अब पुराना कुछ भी नहीं रखते, न मां-बाप, ना सरो सामान.
फिर भी सौ की महिमा बडी न्यारी है भैया. इस सौ के आंकडे पर शून्य पर शून्य बिठाते जाइए और मर्ज़ी के रईस बनते रहिए. पहिले का समय था कि सिनेमा सिनेमाघरों में हफ्ते के हिसाब से चलता था, 25 तो रजत जयंती, पचास तो स्वर्ण, साठ तो हीरक और सौ तो शतक. अब वह दिनों में चलता है. सौ दिन चल गया सिनेमाघरों में तो ट्रेड मार्केट की बडी खबर बन जाती है. क्रिकेट में भी शतक की बडी महिमा थी. अब तो खेल ही 10 ओवर तक हैं. सरकार भले पांच साल के लिए बनती है, लेकिन 100 दिन चलने पर भर भर पन्ने के समाचार छपते हैं. हनुमान चालीसा है- यह सतबार पाठ कर जोई, छूटही बंदी महासुख होई. हनुमान जी के लिए भी सौ का पहाडा बन गया. इसलिए हनुमान भक्तों के लिए भी सौ बार का पाठ है.छम्मकछल्लो को लगता है कि अब दिन में नहीं, घंटे और मिनट और सेकेंड मे सौ का हिसाब होना चाहिए. सौ मिनट की नौकरी, सौ सेकेंड का राज्य.
आप भी सौ का पाठ कीजिए, धन से हनुमान तक, जमीन से आसमान तक, सत्ता से सम्मान तक, सौ की उम्र या सौ की गिनती तक पहुंचकर छम्मकछल्लो को बताइयेगा शतबार की महिमा.
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"दुनिया पहले भी क्षणभंगुर थी, आज भी है. पहिले लोग एक चीज खरीदते थे और पीढी दर पीढी उसका इस्तेमाल करती थी. अब जमाना बदल गया है. पुरानी चीज़ों से मोह पुरातनपंथी की निशानी है. आज इंस्टैंट युग का समय है, यूज एंड थ्रो का ज़माना है, इसलिए लोग अब पुराना कुछ भी नहीं रखते, न मां-बाप, ना सरो सामान." क्या खूब लिखा विभा जी, बहुत बढ़िया 1
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