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Sunday, February 20, 2011

पचासे में पैदा करो, बुढारी मे छेडखानी नहीं होगी!


छम्मकछल्लो बहुते खुश है. उमिर के इस पडाव पर. उमिर की वसंत की मार झेल आई बहुत पहिले. उस नई उमिर में सपना क्या देखती, सपना भरमानेवाले सबसे देह बचाती रही. अपने देश मे त देहे पर दुनिया टिका है ना. सब पाप मन से करते रहिए, देह एकदम शुद्ध रहना चाहिए. सो, चलती सडक पर तो नज़र झुका के, देह निहुरा के, बोली बानी बचा के चलती थी,  तैयो टोकारा पडिए जाता था, देह छुआइये जाता था, टिहकारी-पिहकारी पडिए जाता था. देह देखाइये जाता था. मनचलवा सब कुकुर लेखा भोंकबे करता था, आन्हर लेखा टो टो के देखने का कोशिश करता था. बुढबा लोक पोल खोलने पर बाप बन जाता था और जवान लोग भाई. भले केसव बाबा कह गए अपना उमिर के बुढियाने पर कि
      केसव असि करी का कहुं, असि करी कह्यो न जाई
      चंद्र बदन मृगलोचनी बाबा कहि कहि जाए.
ई सभ जवान, बुढबा सबका दुख है. सबको लगता है कि जवानी का उमिर जवानी का खेल खेलने के लिए है. ईहे एगो जनम मिला है, खेल लो भाई लोगिन. सो लोग खेलते हैं. अब उससे छम्मकछल्लो सहित सभी लडकी औरत डेराई डेराई रहती हैं, असुरक्षित रहती हैं तो रहें. हम उसका ठेका लिए हैं? बल्कि बढिये है, हमारा धौंस बना रहेगा. अरे, अपना आतमा देखें, अपना मनोरंजन देखें कि सबको बहीने, भौजी कहते रहें?
लडकी सभ बहुते पिरीसान रहती है. छम्मकछल्लो भी जब उस उमिर मे थी, बहुते पिरीसान रही. बादो मे शंका संदेह जोंक लेखा चिपका ही रहा- किसी से बतिया लिए तो आफत, मुस्कुरा लिए तो मुसीबत, डीयर डार्लिंग बोल के पुकार लिए तब तो सांसत में सांसत. कोई गंगा में पैसके भी दावा करे कि उसके संगे कोनो बदसलूकीनहीं हुआ है, छम्मकछल्लो नहीं पतियाएगी.
लडकी माल मसाला शुरुए से रही है. अंग्रेजी बोलने से कोई बहुत बडका आ आधुनिक थोडे न हो जाता है. लोक कहते हैं कि जबतक भाव नहीं रहता, शब्द नहीं बनते. राक्षस की अंग्रेजी मिल जाती है, मगर कोई तनिक ब्रह्मराक्षस की अंग्रेजी बता कर बतावे. अंग्रेजी में जनी जात के लिए ऑर्गैज्म है, पर कोई तनिक हिंदी में बतावे. भाव है त शब्द है, इसलिए टिहकारी-पिहकारी से ले के छेडखानी तक बहुते पर्यायवाची शब्द है. अंग्रेजीयो मे है ईव टीजिंग’. तो जब अंग्रेजीयो पढ के ईवे टीजिंग करेंगे त काहे के आधुनिक हुए भाई?
छम्मकछल्लो खुश है कि अब उसके संगे ई सब नहीं है. 50 के पार की छम्मकछल्लो या उस जैसी उमिर की मेहरारू, जनी जात छेड छाड से बच जाती है. मेहरारू सभ भी न! उमिर बढ जाता है त सबको बेटवा, बचवा कहने लगती है. त कहिए, कोनो कैसे कुछो औरो बोले. जनी जात सभ बाबा केसव तो है नहीं कि अपनी उमिर का धक्का खा के सोग मनाए आउर हाय हाय करे. उल्टा ऊ त लोग सबको समझाने बुझाने लग जाती है, दवाई बीरो करने लग जाती है, चिंता से माथा सहलाने लग जाती है.
जनी जात की बढती उमिर का ईहे एगो फायदा है. ए बहिनी लोगिन. इसका सुख उठाइए. छम्मकछल्लो तो ईहो दरयाफ्त करती है ऊपरवाले से कि ऊ हम औरत लोग को सीधे 50 की उमिर में ही पैदा करे. बच्चे से छेडखानी, बलात्कार, संदेह, ताने सबसे बच तो जाएंगे ना.    

2 comments:

pratima sinha said...

बहुत खूब विभा दी, जवाब नहीं...आखिर वाला सजेशन विचारणीय है :)
वैसे मुझे कुछ और भी याद आ रहा है , कहाँ पढी थी ये भूल गयी,लेकिन बात याद रह गयी-
" ... औरत को सोलह की पैदा होना चाहिये और तीस की होकर मर जाना चाहिये "

Vibha Rani said...

प्रतिमा,यह कथन उन लोगों का है, जो औरत को एक वस्तु के रूप में देखते हैं, हम औरतों का नहीं हो सकता जो वस्तु नहीं बनना चाहतीं. हमारे लिए तो है कि पचासे में पैदा करो. बहुत बातों से बच जाएंगे.