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Wednesday, October 6, 2010

संजीवनी देता मधुबनी का “हार्ट हॉस्पिटल”







पिछले दिनों मधुबनी जाना हुआ. पता चला कि मधुबनी के नवरतन गांव में एक “हार्ट हॉस्पिटल” खुला है, जो स्थानीय लोगों के लिए संजीवनी का काम कर रहा है. हम अपनी उत्सुकता नहीं रोक पाए और पहुंच गए “हार्ट हॉस्पिटल”. वहां जानकारी मिली कि पटना के मशहूर हार्ट स्पेशलिस्ट डॉ. ए के ठाकुर ने यह अस्पताल बनवाया है. इसके पीछे भी एक कहानी कही जाती है. डॉ. ठाकुर की मां हृदय रोग से पीडित हैं. वे मधुबनी में ही रहती हैं. इलाज के लिए उन्हें बार-बार पटना जाना पडता था. इस बार बार के आने जाने से परेशान हो कर उन्होंने अपने बेटे डॉ. ए के ठाकुर से कहा कि वे क्यों नहीं हार्ट का एक अस्पताल ही मधुबनी में बनवा देते हैं? वे बार बार पटना जाने के चक्कर से बच जाएंगी. माता के प्रति पुत्र का यह प्रेम कहें या डॉ. ए के ठाकुर के अपने विचार कि यदि ऐसा होता है तो जाने कितने लोगों को इससे मदद मिलेगी, ने इस अस्पताल को यहां जन्म दिया.

एक बीघे में इस अस्पताल का निर्माण हुआ है. प्रशासनिक व अन्य व्यवस्था दरभंगा मेडिकल कॉलेज के सेवा निवृत्त प्रोफेसर डॉ. जी सी ठाकुर कर रहे हैं. अस्पताल में हृदय जांच की सभी आरम्भिक सुविधाएं हैं. एक्स-रे, ईसीजी, आईसीयू, ऑपरेशन थिएटर से लेकर सभी कुछ की. मरीजों के लिए विशेष वार्ड भी हैं और जेनरल वार्ड भी. सबसे बडी बात है कि खुद डॉ. ए के ठाकुर सप्ताह में तीन दिन यहां आकर मरीजों को देखते हैं. इससे इस अस्पताल के प्रति लोगों का विश्वास बढा है. दूसरी और सबसे व्यावहारिक खासियत है इसकी फीस. मात्र 100/- की फीस में आप अपनी जांच करवा सकते हैं, 125/- रुपए देकर एम्बुलेंस की सुविधा ले सकते हैं. पटना की फीस का लगभग 25 से 30 %तक ही यहां लिया जाता है. डॉ. जी सी ठाकुर बताते हैं कि इस अस्पताल का उद्देश्य पैसा कमाना नहीं, यहां के रोगियों की जान बचाना और उनकी मदद करना है. इसलिए नो प्रॉफिट नो लॉस के आधार पर यह अस्पताल चलाया जा रहा है. सूचना मैथिली में भी है और हिंदी में भी.

अबतक इससे कई सौ लोगों की जान बचाई जा चुकी है. अपनी भौगोलिक दूरी से मधुबनी से पटना जाने में ही लगभग सात घंटे लग जाते हैं. अगर आप गांव में हैं तो समय और लगेगा मधुबनी तक ही पहुंचने में. हृदय रोग इतना समय नहीं देता. नतीज़ा यह होता था कि पटना पहुंचने के पहले ही कई मरीज़ दूसरी दुनिया में पहुंच जाते थे. इस अस्पताल से अब यह होने लगा है कि बीमारी की आरम्भिक रोकथाम हो जाती है. अगर मरीज को एंजियोग्राफी, एंजियोप्लास्ट या बाईपास या अन्य इलाज की आवश्यकता है, तभी वह पटना जाए. उसके पहले की स्थिति तक के लिए यह अस्पताल तैयार है. अस्पताल में ही डॉक्टरों और नर्सों के रहने की व्यवस्था है. कैंटीन व्यवस्था भी यहां है.

लोग कहते हैं, यह सब प्रशासन में सुधार और व्यवस्था में सुरक्षा के कारण ऐसा हो सका है. लोगों के पास पैसे हैं, सेवा करने के भाव भी हैं, मगर भय ऐसा करने से रोक रहा था. अब वह भय खत्म हुआ है. लोग सेवा भाव से आगे बढ रहे हैं, जैसे कि यह अस्पताल. अब ज़रूरत है इस अस्पताल को युवा डॉक्टरों, सहृदयों और स्थानीय लोगों के सहयोग की. जीवन की आस का जो पौधा डॉ. ए के ठाकुर ने रोपा है, उसे परवान चढाने का.

3 comments:

प्रशान्त said...

ऐसे सारे प्रयास सराहनीय हैं, नहीं तो पैसे वाले बहुत हैं मगर Bill Gates बन जाने से पहले पर्मार्थ की नहीं सोचते हैं.
विभा जी, पहले para में मातृ-प्रेम का जिक्र कटाक्ष तो नहीं ?

बीहार का भवीष्य उज्जव्ल है बस लालू जी बख्श दें.

Vibha Rani said...

नहीं भाई. मातृ प्रेम कटाक्ष नहीं है. ऐसा हमें बताया गया कि माट्र प्रेम के वशीभूत हो डॉ' ठाकुर ने इस अस्पताल को बनवाया ताकि मां को बार बार पटना आने जाने का कष्ट ना हो और बाकी मरीजों को भी राहत मिले.

pratima sinha said...

सुन्दर अनुकरणीय प्रयास !