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Tuesday, August 5, 2008

एक चमत्कार फ़िर से हो जाए!

छाम्माक्छाल्लो आज बड़े उधेड़बुन में है। वह मुंबई की निकिता पटेल के मामले का हश्र देख अचंभित है। ३१ वर्षीया निकिता पटेल पहली बार माँ बन तही है। किसी भी स्त्री के लिए माँ बनना उसका सबसे बड़ा सपना होता है। निस्संदेह निकिता भी इस सपने में डूबी रही होगी की २४ सप्ताह के गर्भ धारण के बाद उसे पता चला की भावी शिशु का दिल पूरी तरह से ब्लाक है। वह अदालत का दरवाजा खटखटने गई इस उम्मीद के साथ की उसे उस शिशु को नष्ट कराने की इजाज़त मिल जाए। मगर ३-हफ्ते तक मामला लटकने के बाद कोर्ट उसे इसकी इजाज़त नही देता। डॉक्टरों की आशंका है की जन्म से ही बच्चे को पेसमेकर लगाना होगा। यह तकलीफ़देह, खर्चीला दोनों ही है।
छाम्माकछाल्लो गर्भपात के समर्थन में नहीं है। "अभिमन्यु की भ्रूण ह्त्या" उसकीबेहद चर्चित कहानियो में से एक है। अभी इसका रेडियो नाट्य रूपांतर भी हुआ है। मगर ऐसे मामले में, जब बच्चे की स्वस्थ जिंदगी और माँ-बाप की खुशाली का सवाल है, मेरे मत से निकिता को इसकी इजाज़त मिलनी चाहिए। कोई भी माँ अपने बच्चे की मृत्यु कामना नहीं करती। मगर शिशु के आगमन के बदले पहले से ही उस शिशु के दुःख दर्द का अंदाजा जिस माँ को है, इस माँ की ममता और विकलता को बचाने के लिए कोर्ट क्या कुछ भी नहीं कर सकती? निकिता की इमानदारी रही की वह अदालत चली गई। देश में न जाने कितने केस होंगे, जो बिना किसी लिखा पढ़त के समाप्त हो जाते हैं। बालिका भ्रूण ह्त्या तमाम निषेधों और कोर्ट आदेश के बावजूद देश में जारी है। निकिता का यह केस नहीं है।
छाम्माक्छाल्लो सोच रही है की कल जब निकिता उस बच्चे को जन्म देगी, तभी से उस मासूम की निरंतर शल्य क्रिया, पलमें तोला, पल में माशा होती जाती उसकी तबीयत को शारीरिक, मानसकी, आर्थिक स्तर पर झेलने के लिए विवश होगी। और खुदा न खास्ता, जन्म के बाद बच्चे को कुछ हो जाता है तो देखे गए, जन्म दिए गए बच्चे से बिछुड़ने की पीर कोई माँ ही समझ सकती है।
छाम्मालाछाल्लो बस प्रार्थना कर रही है की निकिता का यह भावी शिशु एक बार डाक्टर की रिपोर्ट झुठला कर स्वस्थ रूप में सामने आए। दुनिया में बहुत तरह के चमत्कार होते हैं, आइये, मनाएं की एक चमत्कार यह भी हो जाए।

6 comments:

vipinkizindagi said...

he bhagwan chamatkar ho jaye bas....

Anonymous said...

भारत में ईमानदारी दिखाना बेवकूफी ही है

सुनीता शानू said...

अदालत का ऎसा फ़ैसला और लोगों को यह कहने के लिये मजबूर करता है कि ईमानदारी दिखाना सचमुच बेवकूफ़ी है,अदालत अगर हाँ कहती तो निकिता एक दिन ही रोती,मगर अब उसे हर दिन रोकर गुजारना होगा जो ज्यादा कष्टदायक है.

राज भाटिय़ा said...

इस विषय पर कोई भी टिपण्णी देने से पहले हम्र काफ़ी सोचने की जरुरत हे, क्योकि इस के बाद क्न्या भुर्ण हत्या करने ओर कराने वालो को भी तो एक बहाना मिल सकता हे?ओर आये दिन इसी केस का बहाना बन कर लाखो कन्या पेदा होने से पहले ही ....

Vibha Rani said...

bahane to kai hote rahate hain. galat karnevale ke liye kuchh bhi asambhav nahi hai. magar galat ko rokane le kiye sahi ki bali chadhana kaha tak jayaj hai?

हर्ष प्रसाद said...

Aap logon ne shaayad judgement padha nahin. Court ne kahaa hai ki qaanoon iski ijaazat nahin deta hai aur qaanoon badalnaa court ke bas mein nahin. Court ne saaf saaf ye kahaa hai ki iski ijaazat samvidhaan se maangiye. Aap log jo itna samay blog par sahanubhuti darshaate hue bita rahe hain, kyon nahin samvidhaan ko khatkhataate?