छुटपन में एक कहानी पढी थी- करवाचौथ शायद यशपाल की। हमे हरतालिका यानी तीज का तो पता है, क्योंकि बचपन से वही देखते आए थे माँ, बहन, भाभी आदि को करते। करवाचौथ पहली बार जाना और उसके बाद फिल्मों के माध्यम से। हिन्दी फिल्मो पर पंजाबियों का कब्ज़ा रहा है, इसलिए हिन्दी फिल्मो में भी गाँव की गोरी घाघरे में रहती है। पहले एकाध फिल्मों में करवाचौथ आता था। अब हर पारिवारिक फिल्म और सीरियल में यह आने लगा है, जैसे इसके बिना स्त्री का पतिवार्त्य धर्म छोटा हो जाएगा।
मीडिया इसको भुनाने मी भला पीछे क्यों रहे? कल यह व्रत था और जिस तरह से एक चैनल इसका आंखो देखा हाल बता रहा था, लग रहा था, जैसे सूर्य या चन्द्र ग्रहण की कोई गंभीर खगोलीय परिवर्तन की बात हो रही है। महिलाओं से बातचीत, पति के लिए पूछे जा रहे बेमतलब के सवाल। कोई पूछे उनसे की इस मौक़े पर क्या कोई पत्नी अपने पति के लिए ऎसी- वैसी बात बोलेगी? भारतीय स्त्रियाँ तो वैसे भी "भला है, बुरा है, मेरा पति मेरा देवता है" में विश्वास रखती हैं। एक चैनल ने तो करवाचौथ पर एक शो ही रख डाला -गेम शो की तरह का और एंकर महोदय जनाधार करवा रहे हैं की पति द्वारा लाया गया उपहार यदि पत्नी को पसंद नहीं तो क्या उसे यह बात पति से कह देनी चाहिए या उसे उपहार स्वीकार कर लेना चाहिए? आपको क्या लगता है की जनाधार क्या रहेगा? अरे वही, जो आपके मन में है। अब छ्म्माक्छाल्लो बडे चक्कर में है। पतियों की हालत वैसे ही खराब है, जब से हीरेवालों ने हीरे की वकालत प्रेम के सबसे अनमोल उपहार के रुप में की है। बीबियाँ अब सोने के जेवर नहीं, हीरा मांगती हैं।
छ्म्म्क्छ्ल्लो यह भी कहती है की करवाचौथ एक भारतीय मानस के प्रेम, समर्पण का व्रत है, इसे हांक-हांक कर मीडिया उडाए लिए चला जा रहा है। लोगों को लग सकता है की इससे हमारी संस्कृति फल-फूल रही है।
एक चैनल ऐश्वर्या राय के पीछे पडा हुआ था की उनका यह पहला करवाचौथ है। अब उनकी शादी की ही तरह इस करवाचौथ के भी फुटेज तो मिले नहीं, तो लिहाजा उनके विदेश से देश आगमन, पति व ससुर द्वारा उनके स्वागत से लेकर उनकी फिल्मों के फुटेज ही दिखाते रहे।
छाम्माक्छ्ल्लो कहिस की देश में बहुत सी चीजों का बाजारीकरण होता रहा है। यह बाज़ार है और बाज़ार में हर चीज़ बिकती है। अब आप ही बताएं की आपकी भावनाओं का बाजारीकरण हो, आपको बाज़ार में बिकने के लिए खडा कर दिया जाए तो आपको कैसा लगेगा? करवाचौथ या इस तरह की भावनाएं बिकाऊ नहीं हो सकतीं। ताकतवर से आप लड़ नहीं सकते तो उसकी बातों से परहेज़ तो कीजिए। ज़रूरी नहीं की मीडिया के हर परोसे गए व्यंजन को हम चखें ही।
मीडिया इसको भुनाने मी भला पीछे क्यों रहे? कल यह व्रत था और जिस तरह से एक चैनल इसका आंखो देखा हाल बता रहा था, लग रहा था, जैसे सूर्य या चन्द्र ग्रहण की कोई गंभीर खगोलीय परिवर्तन की बात हो रही है। महिलाओं से बातचीत, पति के लिए पूछे जा रहे बेमतलब के सवाल। कोई पूछे उनसे की इस मौक़े पर क्या कोई पत्नी अपने पति के लिए ऎसी- वैसी बात बोलेगी? भारतीय स्त्रियाँ तो वैसे भी "भला है, बुरा है, मेरा पति मेरा देवता है" में विश्वास रखती हैं। एक चैनल ने तो करवाचौथ पर एक शो ही रख डाला -गेम शो की तरह का और एंकर महोदय जनाधार करवा रहे हैं की पति द्वारा लाया गया उपहार यदि पत्नी को पसंद नहीं तो क्या उसे यह बात पति से कह देनी चाहिए या उसे उपहार स्वीकार कर लेना चाहिए? आपको क्या लगता है की जनाधार क्या रहेगा? अरे वही, जो आपके मन में है। अब छ्म्माक्छाल्लो बडे चक्कर में है। पतियों की हालत वैसे ही खराब है, जब से हीरेवालों ने हीरे की वकालत प्रेम के सबसे अनमोल उपहार के रुप में की है। बीबियाँ अब सोने के जेवर नहीं, हीरा मांगती हैं।
छ्म्म्क्छ्ल्लो यह भी कहती है की करवाचौथ एक भारतीय मानस के प्रेम, समर्पण का व्रत है, इसे हांक-हांक कर मीडिया उडाए लिए चला जा रहा है। लोगों को लग सकता है की इससे हमारी संस्कृति फल-फूल रही है।
एक चैनल ऐश्वर्या राय के पीछे पडा हुआ था की उनका यह पहला करवाचौथ है। अब उनकी शादी की ही तरह इस करवाचौथ के भी फुटेज तो मिले नहीं, तो लिहाजा उनके विदेश से देश आगमन, पति व ससुर द्वारा उनके स्वागत से लेकर उनकी फिल्मों के फुटेज ही दिखाते रहे।
छाम्माक्छ्ल्लो कहिस की देश में बहुत सी चीजों का बाजारीकरण होता रहा है। यह बाज़ार है और बाज़ार में हर चीज़ बिकती है। अब आप ही बताएं की आपकी भावनाओं का बाजारीकरण हो, आपको बाज़ार में बिकने के लिए खडा कर दिया जाए तो आपको कैसा लगेगा? करवाचौथ या इस तरह की भावनाएं बिकाऊ नहीं हो सकतीं। ताकतवर से आप लड़ नहीं सकते तो उसकी बातों से परहेज़ तो कीजिए। ज़रूरी नहीं की मीडिया के हर परोसे गए व्यंजन को हम चखें ही।