बहुत दिन बाद मुखातिब हो रही हूँ। "बिंदिया" के जून 9, 2013 के अंक में छापे व्यंग्य के साथ। देखें और विचार दें। लिंक और लेख है- http://bindiya.net.in/story/95/8
विज्ञापन बड़ा जानदार, शानदार, वजनदार, दमदार होता है और मददगार भी। नेता लोग विज्ञापन करते हैं, जीत जाते हैं। अभिनेता लोग जिसका विज्ञापन करते हैं, लोग उसी का इस्तेमाल करने लगते हैं। चाहे साबुन हो कि बनियान, पोलियो ड्रॉप हो कि आधार कार्ड, विज्ञापन की मदद और विज्ञापन के मददगार। मान गए ना हमारे गुलफाम। पर दुनिया ऐसी हरजाई है कि सभी लोग विज्ञापन की सभी बातें नहीं मानते। वे तुरंत कहते हैं - मेरे लिए सोचने वाले आप कौन? इसलिए टैक्स भरने, धूम्रपान न करने, सड़क को शौचालय न समझने जैसे समझदार विज्ञापन पर सभी अपनी-अपनी समझदारी दिखाते हुए उसे अपने दिल-दिमाग से चलता कर देते हैं। मतवारी नार मस्त-मस्त हुई जाती है अपनों की ऐसी अपनत्व भरी समझदारी पर। सही है, हमारे पास अपना दिमाग है कि नहीं?
अभी कुछ दिनों से विज्ञापन चल रहा है- ‘जो तेरा है वो मेरा है, जो मेरा है वो तेरा है’। नई उम्र के बच्चे- नाचते-गाते-झूमते। दुनिया और दुनियादारी की चिंताओं से बेफिक्र- इतने कि मतवारी नार का भी जी लपलपाने लगता है- ‘ना पैसों की चिंता, ना फिकर है चावल-दाल की।’ (विज्ञापनवाले बच्चे खाते-पीते घर के हैं ना!) सच पूछिए तो मतवारी नार खो जाती है इनमें। इतना कि उसके मन में उठ रहे सवालों के बगूले भी बगुले बनकर उड़ जाते हैं- दूर गगन की छांव में- पइयां-पइयां करते, गाड़ी में नाचते, एक-दूसरे को चिढ़ाते! मतवारी नार की मूढ़मति में नहीं आता कि देश भले ‘वसुधैवकुटुंबकम’ वाला हो, पर इस देश में ‘जो तेरा है वो मेरा है’ कैसे हो सकता है भाई, पागल हो गए हैं क्या सब? नहीं समझे? मतवारी नार भी तो नहीं समझ पा रही है इस गूढ़ प्रश्न को। इसलिए वह ‘जो तेरा है वो मेरा है’ पर अपनी लिस्ट बनाकर आपसे मदद मांग रही है- ‘आप हां या ना की टिक लगाते जाएं।’
♦ये सारे कपड़े, गहने, जूते-चप्पल और अपने साजो सामान, जो बड़ी पसंद से तूने खरीदे हैं, मेरे हुए ना यार!
♦ ये तेरे सन-ग्लासेस, आई पॉड, नया मोबाइल, लैपटॉप, ब्ला-ब्ला-ब्ला- सारे गैजेट्स - आज से तेरे नहीं, अभी से ये मेरे हुए। है ना?
♦ यह घर तेरा है, इसलिए मेरा है। सो लिख अपना घर- मेरे नाम!
♦ तेरी मां- मेरी मां! ठीक? तो बोल इस मां से कि अपने प्यार भरे ममता का सारा जेब-खर्च मेरे हवाले कर दे।
♦ तेरा बाप- मेरा बाप! ठीक? तो बोल इस बाप से कि मेरी पढ़ाई का बोझ उठा ले- सारा का सारा।
♦तेरी बहन- मेरी बहन! ठीक? तो बोल बहन से कि मेरे पर भी तेरे जित्ता ही प्यार का स्वेटर बनाए।
♦ तेरा भाई- मेरा भाई! ठीक? तो बोल ना भाई से कि अपनी संपत्ति में से मुझे भी हिस्सा दे दे यार!
♦ तेरे बच्चे- मेरे बच्चे! ठीक? तो बोल उनसे कि मुझे भी वह अंकल-आंटी के बदले मम्मी-पापा बुलाएं।
♦ तेरी बीबी- मेरी बीबी! ठीक? तो बोल कि मुझे भी वह अपना स्वामी मान मुझ पर अपनी जान निछावर करे।
♦ तेरा मियां- मेरा मियां! ठीक? तो बोल कि ‘हमें तुमसे प्यार कितना’- सुनाए। वैसे गारंटी है कि तुझे भी नहीं सुनाया होगा।
आईला! वो देखो! खिंच गई तलवार! हो गए सब धार-धार! बह रहा है उसमें ‘जो तेरा है वो मेरा है’ का भावनात्मक ज्वार! मतवारी नार के पास ये सब कुछ नहीं है। उसके पास तो एक ही चीज है, बड़ी धांसू सी - वही वह देगी आपको, जब आप उससे कहेंगे- ‘जो तेरा है वो मेरा है।’ वह चीज है - इंकार! इंकार!! इंकार!!! आइला! यकीन नहीं हुआ? जरा मांग के तो देख! बड़ा आया बोलनेवाला- ‘जो तेरा है वो मेरा है।’
जो तेरा है वो मेरा है
अभी कुछ दिनों से विज्ञापन चल रहा है- ‘जो तेरा है वो मेरा है, जो मेरा है वो तेरा है’। नई उम्र के बच्चे- नाचते-गाते-झूमते। दुनिया और दुनियादारी की चिंताओं से बेफिक्र- इतने कि मतवारी नार का भी जी लपलपाने लगता है- ‘ना पैसों की चिंता, ना फिकर है चावल-दाल की।’ (विज्ञापनवाले बच्चे खाते-पीते घर के हैं ना!) सच पूछिए तो मतवारी नार खो जाती है इनमें। इतना कि उसके मन में उठ रहे सवालों के बगूले भी बगुले बनकर उड़ जाते हैं- दूर गगन की छांव में- पइयां-पइयां करते, गाड़ी में नाचते, एक-दूसरे को चिढ़ाते! मतवारी नार की मूढ़मति में नहीं आता कि देश भले ‘वसुधैवकुटुंबकम’ वाला हो, पर इस देश में ‘जो तेरा है वो मेरा है’ कैसे हो सकता है भाई, पागल हो गए हैं क्या सब? नहीं समझे? मतवारी नार भी तो नहीं समझ पा रही है इस गूढ़ प्रश्न को। इसलिए वह ‘जो तेरा है वो मेरा है’ पर अपनी लिस्ट बनाकर आपसे मदद मांग रही है- ‘आप हां या ना की टिक लगाते जाएं।’
♦ये सारे कपड़े, गहने, जूते-चप्पल और अपने साजो सामान, जो बड़ी पसंद से तूने खरीदे हैं, मेरे हुए ना यार!
♦ ये तेरे सन-ग्लासेस, आई पॉड, नया मोबाइल, लैपटॉप, ब्ला-ब्ला-ब्ला- सारे गैजेट्स - आज से तेरे नहीं, अभी से ये मेरे हुए। है ना?
♦ यह घर तेरा है, इसलिए मेरा है। सो लिख अपना घर- मेरे नाम!
♦ तेरी मां- मेरी मां! ठीक? तो बोल इस मां से कि अपने प्यार भरे ममता का सारा जेब-खर्च मेरे हवाले कर दे।
♦ तेरा बाप- मेरा बाप! ठीक? तो बोल इस बाप से कि मेरी पढ़ाई का बोझ उठा ले- सारा का सारा।
♦तेरी बहन- मेरी बहन! ठीक? तो बोल बहन से कि मेरे पर भी तेरे जित्ता ही प्यार का स्वेटर बनाए।
♦ तेरा भाई- मेरा भाई! ठीक? तो बोल ना भाई से कि अपनी संपत्ति में से मुझे भी हिस्सा दे दे यार!
♦ तेरे बच्चे- मेरे बच्चे! ठीक? तो बोल उनसे कि मुझे भी वह अंकल-आंटी के बदले मम्मी-पापा बुलाएं।
♦ तेरी बीबी- मेरी बीबी! ठीक? तो बोल कि मुझे भी वह अपना स्वामी मान मुझ पर अपनी जान निछावर करे।
♦ तेरा मियां- मेरा मियां! ठीक? तो बोल कि ‘हमें तुमसे प्यार कितना’- सुनाए। वैसे गारंटी है कि तुझे भी नहीं सुनाया होगा।
आईला! वो देखो! खिंच गई तलवार! हो गए सब धार-धार! बह रहा है उसमें ‘जो तेरा है वो मेरा है’ का भावनात्मक ज्वार! मतवारी नार के पास ये सब कुछ नहीं है। उसके पास तो एक ही चीज है, बड़ी धांसू सी - वही वह देगी आपको, जब आप उससे कहेंगे- ‘जो तेरा है वो मेरा है।’ वह चीज है - इंकार! इंकार!! इंकार!!! आइला! यकीन नहीं हुआ? जरा मांग के तो देख! बड़ा आया बोलनेवाला- ‘जो तेरा है वो मेरा है।’
1 comment:
धन्यवाद ब्लॉग बुलेटिन.
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