हे लो। फिर हिंदुस्तान के वीर
बहादुर लोग सब अपने देश की महान संस्कृति का पालन करते हुए एगो इज्जत लूट गिया।
फिर एगो इज्जत लुट गिया। फिर एगो जान चला गिया। फिर टीवी अखबार का मौसम आ गिया। फिर
माई-बाप लोग के गरीब के घर आने-जाने का दिन आ गिया। गाँव में मेला लगेगा। ठेला
लगेगा। कुछ ठेलाएंगे, कुछ बिकाएंगे,
कुछ सेरांगे, कुछ गरमाएंगे। फिर ताबतक में कौनों आउर बात आ
जाएगा, फिर सब उसको भुतिया जाएंगे। फिर कोनो एगो माई-बाप
के पच्छ में बोल गिया। फिर कोनो चार गो उसके खिलाफ उगिल गिया।
माई-बाप तो माई-बाप है। लोग
और को सरमो नहीं आता है उसको उछन्नर करते हुए। आपलोग कहियो अपना बूढ़ा गए माय-बाप
को एतना तंग करेंगे? ईहो त’ हमरे
माए-बाप सब है न। एकके गो तो मौका मिलता है अपना माय-बाप भोट दे के अपने से चुनने
का। भगवान तो देता नही है। बस, डिक्टेटर जैसा अपना टेंट में
से माई-बाप निकालता है आ बाल-बच्चा सबको पकड़ा देता है। ले रे अभगवा,
ले!
ई माई-बाप आजकल बहुते - बहुते
रूप मे बदल गिया है। मुनसी, मोकदमा,
लाट, खाप,
बाप। हे, सुने,
एगो बाप कह रहा था- लडिका-लड़िकी का बियाह का ऊमीर कम कर दो। हे,
हे हे हे...! छम्मकछल्लो का तो खुसी से दमे फूल गिया। कम क्या! जनमते ही कर दो।
जनमते ही उसको बता दो, देखो रे बबुआ,
तुम्हारा जनम पढ़ने-लिखने, कुछ करने के लिए नही हुआ है।
उसके लिए देश-बिदेश में बहुत पगला लोग सब बैठा हुआ है। तुम तो जनमते बियाह रचाओ,
आ डूब जाओ रंग-रभस में, जिससे कि तुम्हारे
जीसीम की आग सेराती रहे आ आगे तुम किसी के इज्ज़त लूटने जैसा काम मत करना। जैसे एक
बेर कोनो एगो बाप बोले थे कि गाँव में सबको टीवी दे दो। लोग देर तक टीवी देखेंगे
तो देर से सोएँगे। देर से सोएँगे तो उत्पादन के काम में नहीं लगेंगे। आ देश की जनसंख्या
में इजाफा नही होगा। बिदियार्थी सबको जनसंख्या रोकने में टीवी का महत योगदान जैसा बिसय
देना चाहिए, निबंध लिखने के लिए।
छम्मकछल्लो को तो अभिए से
बियाह का सब गीत मोन पड़ने लगा- बेटा का है तो गाओ- ‘साजहु
हो, बाबा मोर बरियतिया।‘
बेटी का है तो ‘पाया के ओटे गे बेटी, क्यों
गे खड़ी, अपना बाबा के मुंह देखि,
रोने लगी।
बेटी सब का मुंह ऐसे ही
बनरचोथ जैसा होता है। जिसको देखती है, रोने लगती है। बाप को भी आ
बलात्कारी को भी। एक बाप बनकर बोलता है,
लड़की पर सिक्कड़ कस दो। फिलिम में ताला मार दो। छम्मकछल्लो ताला,
सिक्कड़ लेकर हाजिर। हो हमारे बाप-भाई। हम सब तो तुम्हारे ही बाग की चिड़िया हैं।
मार दो, काट दो। तनिको न कुछ बोलेंगे। बेटी जनम मुफ़त
में थोड़े न लिए हैं।
लबरघोघवा सब जीभ लपलपाता कहता
है- लड़की है रे! छम्मकछल्लो हुआं भी कहती है- हाँ रे,
हैं ना। अब जो करना है, कर लो। इज्ज़त लूट लो,
नंगा नचा दो, कसम धरा लो जो हम कुच्छो बोले तो! हम कुच्छो
बोले न तो चाहे जलती चिता में से, चाहे गाड़े गए कबर में से हमरी
लाश निकाल कर उसका फिर से इज्ज़त लूट लेना। कमाल है भाई। ऊ सब बड़का लोग सब होता है।
हम लड़की सबका औकाते कौन जो कुछो बोलें? ऊ लोग का
लूटने का काम- ऊ लोग करे। हमारा लुटने का धंधा- हम करें। मामिला एकदम फरीच्छ! बूझे
कि नहीं? धुर रे बुड़बक। लगता है तू भी किसी का इज्ज़त
उतारिए के आवेगा अभागा नहितन!
एगो बोलता है- साजिश है।
छम्मकछल्लो कहती है, जी माई-बाप,
एकदम है। एगो बोलता है, राजा को गद्दी से उतार दो।
छम्मकछल्लो कहती है, ना माई-बाप। क्या फायदा?
आप गेरन्टी दोगे कि आप राजा बनकर आओगे तो हमारी इज्ज़त हिफाजत से रहेगी। अपने लिए
तो तुलसी बाबा कहिए गए हैं- ‘कोऊ नृप होही,
हमें का हानी, चेरी छांड़ि की होयब रानी?
लेकिन, ई इज्ज़त का भी ग्रेडेसन होता है, छम्मकछल्लो को पता चलता है।
इसलिए, जब –जब इज्ज़त लूटने का बात आता है वो लड़की का बिशेषन
लगाना नाही भूलता- मुसलमान लड़की, दलित लड़की। छम्मकछल्लो को
अककिल तो है नहीं। उसको लगता है, ज़रूर इज्ज़त उतारने का तरीका या
इज्ज़त जाने का तरीका ई सब बिशेषन लगाने से बदल जाता है। औरत का इज्ज़त तो आइयसे
जाता है सो तो जाता अही है, ई सब बिशेषन लगा के और क्या
मिलता है, छम्मकछल्लो यही पूछना चाहती है- इज्ज़त उतारनेवाले से
भी और उस इज्ज़त का चीर-फाड़ करवाले से भी।