हे भगवान! छम्मकछल्लो को आप पर बडी दया आ रही है. किस कुघड़ी में आपने हम इंसानों को बनाया. ये निगोडे इंसान! करते सब कुछ हैं खुद और थोप देते हैं भगवान पर.
सोचा था भगवान ने कि बनाकर हम
इंसानों को दिमागदार, हो जाएंगे वे निश्चिंत. मनुष्य भी बनकर (?), ऊंहंह! पैदा होकर इंसान- याद करते रह गए
भगवान-भगवान! अरे, अब छम्मकछल्लो है परेशान! जिसे देखो,
गुहराता रहता है- भगवान-भगवान! कह गए कबीर कि ‘दुख
मे सुमिरन सब करए, सुख मे करे न कोए.’
पर आज देखती है छम्मकछल्लो कि सुख का सारा श्रेय लोग दे देते हैं भगवान को. बच्चा
पास, भगवान की कृपा,
फेल तो बच्चे का नसीब! मरीज ठीक हो गया,
बच गया, भगवान की कृपा,
मर गया- डॉक्टर खराब. आपने किसी की मदद की- भगवान का पुन्न प्रताप. नहीं की- आप
रौरव नरक से भी भयानक और बदबूदार. अपनी मेहनत से आपने सबकुछ हासिल किया,
भगवान की कृपा, खो दिया- नसीब का दोष. क्या भगवान जी आप भी!
कभी कुछ दोष-वोष भी तो ले लिया करो अपने सिर. कभी तो कहो कि मरीज ठीक हुआ डॉक्टर
के कौशल से, बच्चा पास हुआ अपनी लगन से, तुमने
सब हासिल किया- अपनी मेहनत से. मगर नहीं! भगवान ठहरे गहरे गुरु घंटाल! वे क्यों दे
दूसरों को अच्छे काम के सिला का माल! यही तो है उनके मैनेजमेंट का कमाल!
लोगों के मैनेजमेंट की कुशल
कारीगरी भी यहीं से तो होती है आरम्भ. दफ्तर में काम अच्छा- बॉस का कॉलर ऊंचा,
बिगडा तो मातहत की अकुशलता. बच्चा बन-संवर गया,
बाप का सीना चौडा- आखिर बेटा किसका है! नहीं बना तो –कैसी मां हो तुम. बच्चे पर
ध्यान नहीं दे सकती थी! करती क्या हो दिन भर एक खाना बनाने के सिवाय?
मैनेजमेंट की कुशल कारीगरी लोगों ने भगवान से ही सीखी है. वे भी सारा श्रेय खुद
लेते हैं, दोष दूसरों के मत्थे छोड देते हैं. आखिर उसी
की तो प्यारी-दुलारी संतान हैं ना हम! वरना हमें भी जन्मा दिया होता ईश्वर ने जानवरों-चिडियों
की तरह बिन दिमाग के तो हम क्या बिगाड लेते उनका?
लेकिन क्या सचमुच जानवर-चिडिए
होते हैं बिन दिमाग के? हां भई हां,
जभी तो वे बिना भूख के किसी का शिकार नहीं करते,
अपने लिए करोडों की मांद या घोसला नहीं बनाते,
अरबों के जंगल नहीं खरीदते, खरबों का बैंक बैलेंस बरगद
की डाल से लटका कर उसकी जड अगम पाताल तक नहीं टिका देते. खुद को पाक-साफ और दूसरों
को दागदार नहीं बनाते. बेवज़ह दूसरों को मारकर आतंक का भयानक जाल नहीं फैलाते. और
तो और, खुद ईश्वर के ही नाम पर देश,
दुनिया, दिल,
देमाग, देह दरबार का सौदा नहीं करते. मान गई
छम्मकछल्लो आपको! ओ भगवान !! कृपानिधान!!!
3 comments:
विभाजी आपका लेखन बहुत ही दिलचस्प होता है.
धन्यवाद.
भैयादूज पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ।
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