chhammakchhallokahis

रफ़्तार

Total Pageviews

छम्मकछल्लो की दुनिया में आप भी आइए.

Pages

www.hamarivani.com
|

Thursday, August 19, 2010

कथा कहो राम!

सब कह्ते हैं तुम्हें मर्यादा पुरुषोत्तम

तुम रहे वंशज बडे बडे सूर्यवंशियों के

देव, गुरु, साधु ऋषि सभी थे तुम्हें मानते

फिर क्यों रहे चुप, जब जब आई तुम पर आंच?

जब जब लोगों ने किये तुम पर प्रहार?

इतना आसान नहीं होता सुख सुविधाओं को छोड देना

तुमने सब त्याग धर लिया मार्ग वन का

इतना आसान नहीं होता अपने ही भाई और भार्या को कष्ट में देखना

तुमने धारी कुटिया और धारे सभी कष्ट

इतना आसान नहीं होता पत्नी पर किसी और द्वारा आरोप लगाना

और उस आरोप को शिरोधार्य करना

शिरोधार्य करके पत्नी को अग्नि में झोंक देना

जन के आरोप पर पत्नी का त्याग

राज काज के लिए अपने हित की तिलांजलि

न भार्या का विचार ना अजन्मी संतान के भविष्य की चिंता

मात्र जनता के लिए, राजकाज के निष्पादन के लिए

कितना कष्टकर होता है राजधर्म का निर्वाह

जब त्यागने पडते हैं अपने समस्त सुख-सम्वेदनाओं के सिंहासन, चन्दोबे

सभी को दिख गई सीता की पीर

सभी ने बहाए सीता के आंसू अपने अपने नयनों से

देखे, समझे लव कुश का बिन पिता का बचपन

समझो ज़रा राम की भी पीर

सहो तनिक उसकी भी सम्वेदना

बहो तनिक उसके भी व्यथा सागर में

बनो तनिक राम

कथा कहो राम

कथा कहो राम की.

3 comments:

समयचक्र said...

जय श्रीराम ....

Vibha Rani said...

महेंद्र जी, श्री राम को इस दृष्टि से भी देखने का यह एक प्रयास है.

दीपशिखा वर्मा / DEEPSHIKHA VERMA said...

उलटी गंगा फिर बहाई आपने ..और हम संग बह चले :)
अच्छा है ..समझी तनिक राम की भी व्यथा !