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Wednesday, August 18, 2010

हम!

धरती की हरियाली पर मन उदास है,

कोई फर्क़ नहीं पडता

कि आपके आसपास कौन है, क्या है?

आप खुश हैं तो जंगल में भी मंगल है

वरना सारा विश्व एक खाली कमंडल है.

इतने दिनों की बात में

जब हम कुछ भी नहीं समझ पाते

कुछ भी नहीं कर पाते,

तब लगता है कि जन्म लिया तो क्या किया?

तभी दिखती है धरती, चिडिया, हवा, चांदनी

और मौन का सन्नाटा कहता है कि

हां, हम हैं, हम हैं, तभी तो है यह जगत!

खुश हो लें कि हम हैं

और जीवित हैं अपनी सम्वेदनाओं के साथ

प्रार्थना करें कि पत्थर नहीं पडे हमारी सम्वेदनाओं पर!

2 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

सुन्दर अभिव्यक्ति ...संवेदनशील बात कही ..

प्रशान्त said...

प्रार्थनारत !

बीच-बीच में कविता का ज्वर, मन-मस्तिष्क में नयी प्रतिरोधी क्षमता पैदा करता है.

लगे रहिये - हम आपके साथ हैं.