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Thursday, January 29, 2009

धर्म और राजेन्द्र बाबू

सभी जानते हैं की दा। राजेन्द्र प्रसाद निष्ठावान हिन्दू थे। मगर अन्य धर्मों के प्रति उनके मन में भी उतना ही आदर-भाव था। उनका इस बाबत कहना था, " भारत इमं अनेक धर्म प्रचलित हैं। अतीतकाल से यहाँ विचार की पूरी आजादी मिली है। हमारे संविधान में सबको अपने धर्म को मानने की पूरी आजादी दी गई है। तो सवाल इतना ही रह जाता है की संविधान की इन शर्तों को पूरी तरह से अमल में कैसे लाया जाए?"

राजेन्द्र बाबू की आरंभिक शिक्षा मौलवी साहब के हाथों हुई, जिनसे वे उर्दू-फारसी पढ़ते थे। दशाहेरे के समय मौलवी साहब उर्दू में भगवान रामचंद्र पर कविता लिखा कर बच्चों को सिखाते, उनसे गवाते। इसी प्रकार मुहर्रम पर हिन्दू लडके पैक बनाकर जुलूस में चलते थे। खान-पान में पूरा बर्ताव होने के बावजूद पारस्परिक प्रेम भावना आज से कहीं अधिक थी। एक दूसरे पर पूरा भरोसा था।

वकालत की परीक्षा पास कराने पर राजेन्द्र बाबू ने दो साल तक खान बहादुर सैयद शमाशुला हुडा के यहाँ काम किया। उनके साथ उंके सम्बन्ध बड़े मधुर रहे। वकालत के प्रशिक्षण के बाद जब राजेन्द्र बाबू ने अपनी वकालत शुरू की तो उनके मुंशी थे मौलवी शराफत हुसैन। उनके लिए सामिष भोजन की पूरी छूट थी। यह सब आज अजूबा लग रहा होगा, क्योंकि आज धर्म और राजनीति में ऊंची-नीची जाती आदि का महत्त्व इतना बढ़ गया है की सामाजिक सम्बन्ध टूट से गए हें और जातिवाद और स्वार्थ ने समबन्धों में बिखराव ला दिया है। लेकिन राजेन्द्र बाबू की प्रकृति इसके उलटी रही और वे अपने मुसलमान दोस्तों के साथ भी उतने ही प्रेम भाव के साथ रहे, जैसे की वे निकट के रिश्तेदार हों।

2 comments:

समयचक्र said...

बहुत बढ़िया विचारणीय पोस्ट. लिखती रहिये . धन्यवाद.

Bahadur Patel said...

bahut badhiya. badhai.