छाम्माक्छाल्लो आज इसी बस में दफ्तरअमूमन वह सामान्य बस में आती है। लोकल ट्रेन में भी उसने एक बार दो साल तक १स्त् क्लास में सफर किया था। अपने अनुभव के आधार पर वह कह सकती है कि दिल और दिलवाले मिलते हैं तो बस आम जन के बीच ही। ये तमाम पैसे वाले दिल और भावनाएं क्या जानें, क्या समझें? अगर उअनामें से कोई समझ ले तो समझिए कि आप ने आज सचमुच कोई अच्छा काम किया होगा। पैसे का रुतबा उनके से आगे दस कदम होता है और आगे आगे जा जा कर बोलता है।
इसी बस में लगभग तिगुना किराया लगता है। स्फिर भी सुविधाजनक है। मगर इस सुविधा को भोगते हुए लोगों के उपर एक दंभ, एक अंहकार रहता है, वह देखते ही बनता है। १स्त् क्लास में भी यात्रा करते समय दिल की बेदर्दी बारे करीब से देखी और अचानक एक दिन एहसास हुआ कि छाम्माक्छाल्लो में भी उसके कीटाणु आने लगे हैं तो उसने एक झटके में १स्त् क्लास से जाना चूद दिया।
आज इसी बस में बैठी। क्योंकि देर हो रही थी। पीछे से बस कब आती, पाता नही था। सो...
मेरे बगल में एक युवक बैठा। परेशान सा। पहले तो उसने अपने बैग में से खाने का डब्बा निकाला। बिचारे को इतनी भी फुरसत नही मिल पईई थी कि घर में चार कौर पेट में कुछ दल्ला ले। औरतों के साथ तियो यह महत मामूली, रोजाना का किसा सा है। खैर! पेपर पढ़ते हुए और नसता करते हुए के बीच में एक फोन आया। उसके किसी परिचित का एक्सीडेंट हो गया था। बातचीत से लगा कि दुर्घटनाग्रस्त आदमी या तो साईस था या रेस कोर्स का जॉकी या घोडे की शौकिया सवारी करता होगा। वह घोडे से गिर पडा। काफी चोट आई थी, अंदरूनी। पता नहीं, क्या हो, ऎसी आशंका आई। अफसोस के च च च भी निकले। फ़िर तपाक से पूछा, " उसका तो जो होना था, सो तो हुआ, पर तुम ये तो बताओ कि घोडे को कहीं ज़्यादा लगी तो नहीं?" छाम्माक्छाल्लो का मन किया कि तपाक से पशु प्रेमी संस्थान को फोन करे और बता दे कि देखिए, कितना ख्याल है उसे घोडे का।" आपो भी लगता हो तो बताएं॥ इंसान बहुत सस्ता है, एक मांगो, कई मिल जायेंगे। पर ghoDa, पाता है कितना मंहगा है? लाखों लाख रुपये का एक मिलता है। उसे सहेजना, उसकी देख भाल कितना मुश्किल है? और ऐसे में उसे कुछ हो जाए तो ? " आदमी की चिंता वाजिब थी।
No comments:
Post a Comment