"प्रेम रतन धन पायो"
बहुत दिन बाद, शायद "नदिया के पार" के बाद सिनेमा के स्क्रीन पर राजश्री प्रोडक्शन्स की फ़िल्म देखी-"प्रेम रतन धन पायो।" राजश्री के संस्थापक ताराचंद बड़जात्या को समर्पित। बेहद स्वाभाविक समर्पण।
प्रेम एक रतन है और रतन याने रत्न एक धन। मीराबाई के पद से लिया गया अंश। बेहद प्रचलित पद। भक्तिमय प्रेम की व्याख्या करता।
यहाँ फ़िल्म है। जाहिर है कि इसके लिए कई प्रतिमान ढीले पड़ेंगे। सो
1 राजश्री की परंपरा के उलट सारे कास्ट व क्र्यू के नाम अंग्रेजी में।
2 संवाद तो ऐसी हिंगलिश में कि हिंगलिश की ईजाद करनेवाले भी शर्मा जाएं।
3 फ़िल्म की लंबाई बढ़ने का अर्थ समझ से परे।
4 कहानी की शाही थीम। तो सेट से लेकर सबकुछ शाही। भव्य। अखरने की हद तक भव्यता का शीशमहल।
5 आज के बदले माहौल में दर्शको और आज के दर्शकों को कैसे बटोरा जाए, इसका उलझाव और भटकाव।
6 राजे रजवाड़े की कहानी। आज के समय में आकर्षित नहीं करती। मगर शायद भव्यता लाने के लिए इसे रखा गया हो। बिजनेस टायकून में वह भव्यता नज़र नहीं आती।
बावजूद इनके, फ़िल्म का साफ सुथरापन, अश्लीलता से बचाव, आम जन की ओर शाही घराने की वापसी में जन संवेदना को भावात्मक आधार- ये कुछ बातें हैं जो फ़िल्म आपको बोर होने से बचा देती है। सोनम कपूर के अपने व्यक्तित्व में एक गरिमा की तराश उसे बहुत् अलग और भव्य बनाता है। उन्हें इस फ़िल्म के लिए शाही लुक देता है। सलमान खान आम जन के बीच के नायक हैं- दैवीय भव्यता से परे। हम आप के बीच का कोई एक- थोडा अपना सा भी। थोडा बेगाना सा भी। थोडा हंसोड़ भी। थोडा बेवकूफ भी। यह हम आम जन का अपना कद है जिसमे सलमान फिट होकर हम आप जैसे ही लगने लगते हैं। दीपक डोबरियाल बेहतर अभिनेता हैं। मगर बड़े नामों के सायों के बीच ऐसे कलाकार छुप जाते हैं। बड़े कलाकार थोड़ी दरियादिली दिखाएँ तो ऐसे कलाकारों की प्रतिभा भी खुलकर सामने आ जाए। सुहासिनी मुले दो फ्रेम में ही अपना राजसीपन दिखा जाती हैं। स्वरा भास्कर बहुत अच्छी अभिनेत्री हैं। चहरे के तनाव को थोडा स्वाभाविक रखें तो अभिनय की सहजता में वे बहुत ऊपर जा सकती हैं।
प्रेम को इन सबमे थोड़ा थोडा तलाशिये। पन्द्रह् मिनट के इंटरवल समेत तीन घंटे आप इस रूप में प्रेम रतन धन को पाते हुए रह सकते हैं कि फ़िल्म बहुत सी फुहड़ताओं से बच गई है-भाषाई हिंगलिश के अखरनेवाले रूप को छोड़कर। ####
बहुत दिन बाद, शायद "नदिया के पार" के बाद सिनेमा के स्क्रीन पर राजश्री प्रोडक्शन्स की फ़िल्म देखी-"प्रेम रतन धन पायो।" राजश्री के संस्थापक ताराचंद बड़जात्या को समर्पित। बेहद स्वाभाविक समर्पण।
प्रेम एक रतन है और रतन याने रत्न एक धन। मीराबाई के पद से लिया गया अंश। बेहद प्रचलित पद। भक्तिमय प्रेम की व्याख्या करता।
यहाँ फ़िल्म है। जाहिर है कि इसके लिए कई प्रतिमान ढीले पड़ेंगे। सो
1 राजश्री की परंपरा के उलट सारे कास्ट व क्र्यू के नाम अंग्रेजी में।
2 संवाद तो ऐसी हिंगलिश में कि हिंगलिश की ईजाद करनेवाले भी शर्मा जाएं।
3 फ़िल्म की लंबाई बढ़ने का अर्थ समझ से परे।
4 कहानी की शाही थीम। तो सेट से लेकर सबकुछ शाही। भव्य। अखरने की हद तक भव्यता का शीशमहल।
5 आज के बदले माहौल में दर्शको और आज के दर्शकों को कैसे बटोरा जाए, इसका उलझाव और भटकाव।
6 राजे रजवाड़े की कहानी। आज के समय में आकर्षित नहीं करती। मगर शायद भव्यता लाने के लिए इसे रखा गया हो। बिजनेस टायकून में वह भव्यता नज़र नहीं आती।
बावजूद इनके, फ़िल्म का साफ सुथरापन, अश्लीलता से बचाव, आम जन की ओर शाही घराने की वापसी में जन संवेदना को भावात्मक आधार- ये कुछ बातें हैं जो फ़िल्म आपको बोर होने से बचा देती है। सोनम कपूर के अपने व्यक्तित्व में एक गरिमा की तराश उसे बहुत् अलग और भव्य बनाता है। उन्हें इस फ़िल्म के लिए शाही लुक देता है। सलमान खान आम जन के बीच के नायक हैं- दैवीय भव्यता से परे। हम आप के बीच का कोई एक- थोडा अपना सा भी। थोडा बेगाना सा भी। थोडा हंसोड़ भी। थोडा बेवकूफ भी। यह हम आम जन का अपना कद है जिसमे सलमान फिट होकर हम आप जैसे ही लगने लगते हैं। दीपक डोबरियाल बेहतर अभिनेता हैं। मगर बड़े नामों के सायों के बीच ऐसे कलाकार छुप जाते हैं। बड़े कलाकार थोड़ी दरियादिली दिखाएँ तो ऐसे कलाकारों की प्रतिभा भी खुलकर सामने आ जाए। सुहासिनी मुले दो फ्रेम में ही अपना राजसीपन दिखा जाती हैं। स्वरा भास्कर बहुत अच्छी अभिनेत्री हैं। चहरे के तनाव को थोडा स्वाभाविक रखें तो अभिनय की सहजता में वे बहुत ऊपर जा सकती हैं।
प्रेम को इन सबमे थोड़ा थोडा तलाशिये। पन्द्रह् मिनट के इंटरवल समेत तीन घंटे आप इस रूप में प्रेम रतन धन को पाते हुए रह सकते हैं कि फ़िल्म बहुत सी फुहड़ताओं से बच गई है-भाषाई हिंगलिश के अखरनेवाले रूप को छोड़कर। ####