कोसी की बाढ़ की विभीषिका किसी से छुपी नहीं है। सभी ने अपने-अपने स्तर पर राहत और बचाव के काम किए हैं। यह होना भी चाहिए और ज़रूरी भी है। आज भी कोसी की स्थिति भयावह है और बाढ़ से जूझ रहे इलाकाइयों के लिए आज भी यह एक डरावना स्वप्न लेकर आती है। आज भी विआरापुर, बसंत पुर आदि के लोगों में अफरा-तफरी मच जाती है और लोग अपने-अपने घर (अगर अब भी उनके घर घर कहे जाने लायक हैं) भाग आते हैं, यह हल्ला सुन कर की "पानी आया, पानी आया।"
बिहार जाना हमेशा से सुखद रहा है। इस बार भी बिना किसी तय कार्यक्रम के चली गई। बिहार में हो रहे परिवर्तन को देखकर बहुत सुकून मिलता है। जमालपुर से मुंगेर जाते हुई चिकनी सड़क पर दौड़ती गाडी को दिखाते हुए कवि श्याम दिवाकर कहते हैं- "देखा है बिहार की सड़क इतनी अच्छी इससे पहले?" पटना की सरक पर रिक्शेवाले से पूछने पर वह मुस्कुराते हुए कहता है की अब बहुत अच्छा लग रहा है।" ऑटो रिक्शे पर जींस और टॉप पहने लड़कियां बिंदास आकर किसी भी पुरूष या लडके की बगल में जा बैठती हैं। होटलों, रेस्तराओं में लड़कियां अपने झुंड के साथ बैठी है, और हंस -बोल रही हैं। लग रहा था, पटना, मुम्बई एक हो गया है।
मगर नहीं। एक झटका लगता है पटना रलवे स्टेशन पर उतरत समय। उतरना बहुत मुश्किल हो रहा था। पैर बार-बार किसी चीज़ से टकरा जा रहे थे। सामने अम्बार की तरह बिकहरे हुए थे कपरे- गर्म कपरे, सूती कपडे -ढेर के ढेर। लगा की यह कोसी के राहत कार्य के लिए रखा गया होगा और फ़िर यहीं परा रह गया होगा। मेरी इस बात पर मुहर लगाई कुली ने। बोला- "राहत वाले आए थे लेकर और ले जाने के बदले यहीं छोड़ कर चले गए। मेरी नज़रों के आगे वे सभी पीडित घूम गए, जिनके और जिनके परिवार, बच्चों के पास तन ढंकने के लिए पूरे लपाड़े नहीं होंगे। जिन्होनेने एकत्र कराने का महान काम किया होगा, वे तनिक और आगे बढ़ा कर उन्हें पीडितों तक पहुंचा देते तो जाने कितनो का भला हो गया होता। लोगों ने अपने अपने घरों से कपडे निकाल कर दिए होंगे इस संटाश के साथ की ये सही लोगों तक पहुँच जायेंगे। मगर हुआ क्या? यहाँ सरकार और व्यवस्था को नहीं कहा जा सकता। निष्चुइत रूप से उन उत्साहियों के बारे में कहा जा सकता है की ऐसा क्या हो गया की लोग सामान एकत्र कर के फ़िर उन्हें न पहुचाकर उसे बेकार का सामान बनाकर छोड़ दिया। याहू पर बिहारियों का एक ग्रुप है जो कोसी पीदितोने के लिए कपडे खरीदने की बात कर रहा है। उनसे भी अपील की अगर खरीद रहे हों तो ज़रूर ऐसी व्यवस्था करें की कपडे उन तक पहुंचे, अन्यथा ऐसा ना हो की वे सब भी किसी प्लेत्फौर्म या स्टेशन या बस अड्डे पर परे मिलें।