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Saturday, October 25, 2025

 भौजी!

सांचे कहे तोरे आवन से हमरे, अंगना मे आएल बहार भौजी...!
#भौजी, एक ऐसा नाम, जो दिल में गुदगुदी जगा दे। पहले की भौजाइयों का मतलब होता था चटख रंगों वाली प्रिंटेड साड़ी, बड़ी टिकुली यानी बिंदी, भर हाथ चूड़ियां, कान में झुमके, बाली या टॉप्स, नाक में छक, गले में चेन, हाथ की उंगलियों में अंगूठियां, पैर में पायल और बिछुए। मांग में सुंदर की लंबी लाली।
मेरी रुनुकी, झुनुकी लाडो खेले गुड़िया
बाबा ऐसा वर खोजिए बी ए पास किए हो,
वरों की कोई गारंटी नहीं होती थी लेकिन भौजी के लिए पूरी गारंटी का पिटारा साथ होता था, सुंदर, सुशील, मोहक, कम बोलनेवाली, बड़ों के साथ साथ बच्चों, यहां तक कि गोद के बच्चों के नाम में भी "जी" लगाकर बोलनेवाली! को भी
बचपन में पूरा मोहल्ला ही जैसे परिवार था। जाने कितनी भौजाइयां यादों के बक्से में लाल पीले झालर लगाकर मौजूद हैं। कोई कोई कहानी का पात्र बन जाती हैं। लेकिन, उस एक पात्र में हाड़ मांस की एक ही भौजी थोड़े न होती है,
निदा फ़ाज़ली साब ने मां के लिए लिखा है
थोड़ा थोड़ा माथा, आंखें, जाने देकर किधर गई.....
उत्सव ही तो होता था किसी भौजी का आना। बाकियों के लिए वह कनिया यानी दुल्हन थी। हमारे लिए भौजी! पालकी केवल फिल्मों में ही थी। हमारे मोहल्ले में भौजी रिक्शे, गाड़ी या बस, जो बाराती के लिए गई होती थी, उससे आती। ट्रेन से आना होता तो रिक्शे से या किसी से कार मांग ली। तब कार भी इक्के दुक्के के पास होती थी, एंबेसडर। उसी में भौजी आती थी। तब भाभी शब्द का चलन ज़्यादा नफासतवालों के यहां था। हम भी नफ़ासती होना चाहते, मगर लाज आती भौजी के बदले भाभी कहने में। तब सोचते, हमारे भैया की शादी होगी तब उनको भाभी कहूंगी।
पूरा मोहल्ला अपने रिश्ते के हिसाब से दुल्हन को भौजी कहता था। दुल्हन है भौजी तो इतनी जल्दी किसी से बातचीत तो करेगी नहीं। और जिस दिन नई नवेली भौजी एकाध लाइन बोल दे, तब तो खुशी की किलकारी जैसे पूरे शहर में गूंज जाती थी, फलानी भौजी आज हमसे बात की।
भौजी सब जिस गांव या शहर से आई हो, उस नाम के साथ उनकी पहचान हो जाती थी। मसलन, साहेबगंज वाली भौजी, मुजफ्फरपुर वाली भौजी, आरा वाली, मांझी वाली, फुलपरास वाली, जनकपुर वाली भौजी!
जाने क्यों लोग शहरों से भौजी की लियाकत जोड़ देते थे। एक भौजी थीं मुजफ्फरपुर से। हम सभी उनको मुजफ्फरपुर वाली भौजी के नाम से पुकारते थे। हर
भौजी की अपनी खासियत थी, अपना व्यक्तित्व था। एक बार जाने कौन सी बयार चली थी कि सभी की सभी भौजाइयां अचानक उल्टे पल्ले करने लगीं, जिन्हें उस समय बंगला पल्लू कहा जाता था। अचानक से इस बदलाव से सभी हैरान। फिल्मों का कोई असर था नहीं, क्योंकि लगभग सभी फिल्मों में हीरोइन और हीरो या हीरोइन की मां उल्टे पल्ले की ही साड़ियां पहनती थीं। यह रहस्य आजतक समझ नहीं आया, क्योंकि अचानक से वे सब की सब फिर से सीधे पल्ले में कनवर्ट हो गईं।
मांझी वाली भौजी के यहां मखाने का बिजनेस था। जब मखाना आता, हम उनके घर में लगे मखाने के बोरे पर कूदते रहते, बोरे में उंगली घुसा घुसकर छेद करते और मखाने निकलकर खाते रहते। वे डांटने के बदले उल्टा कहतीं, खा लो। तुम लोगों के दस मखाने खाने से बोरी कम थोड़े न हो जाएगी। एक एक टोकरी, मौनी मखाना हमसब के हवाले कर देती थीं। वे बड़ी भौजी थीं। उनकी देवरानी गंभीर किस्म की थीं। गंभीर मुख वालों से मुझे वैसे भी बड़ा डर लगता रहता है। सो उनसे कभी बात नहीं हुई। एक थीं मुजफ्फरपुर वाली भौजी। उनका कमरा पहली मंजिल पर था। अपने स्वभाव में वे कुछ ऐसी थीं कि केवल दोपहर और रात के खाने के समय ही नीचे उतरती थीं या फिर हर दूसरे साल के प्रसव के समय प्रसूति गृह के लिए। मोहल्ले की हमारी चाची यानी कि उनकी सास बहुत भली मानस थीं, जिसका फायदा वे उठाती रहीं। लेकिन, इससे यह प्रचलन में आ गया कहने का कि मुजफ्फरपुर में बेटी तो ब्याह दो, बेटी लेकर न आओ। आज मुझे लगता है कि मधुबनी से बड़ा शहर मुजफ्फरपुर है तो शायद लड़कियों के दिमाग में बड़े शहर की ठसक रहती होगी। लेकिन ऐसा थोड़े न होता है कि आप बेटी ब्याहेंगे वहां और वहां से बेटी को बहू बनाकर नहीं लाएंगे।। एक दो बहुओं के बाद की बहुझाइयों ने इस मिथक को तोड़ा।
साहेबगंज वाली भौजी को हमने होश संभालने पर गोद में एक बच्चे के साथ ही देखा। स्वभाव की बड़ी मीठी। चेहरे पर सदाबहार मुस्कान। बारह वर्ष बाद बेटी हुई जिसे हम बहनों ने पाला। तब मोहल्ले का एक बच्चा पूरे मोहल्ले का होता था। भौजी अकेली थीं। लिहाज़ा सुबह बच्ची को तेल लगाकर दूध पिलाकर हमारे पास भेज देती थीं। हम उनकी सुसु पॉटी भी कराते थे, अधपके दाल भात का पानी भी पिलाते थे। इस बार जब उनसे मधुबनी में मुलाकात हुई तो दमे से ग्रस्त, सांस लेने में भयंकर तकलीफ में देख बहुत दुख हुआ। हर नई सब्जी बनने पर वे एक कटोरी सब्जी भेजतीं हमें। मेरी बहन की शादी होने पर उसे साड़ी गहने दिए रिवाज के मुताबिक।
जनकपुर वाली भौजी लंबी, धाकड़ थीं। उनसे हम अपनी चोटियां बनवाया करते। तब बाल बनाने के चलन में था, तेल लगाने के बाद बाल में पानी लगाकर उसे चिकना कर लिया जाता था। बारीक दांतोवाली कंघी से बीचवाली मांग निकली जाती थी। दोनों तरफ के बालों को खूब ऊंचा सीट कर कंघी की जाती थी। फिर किसी रिबन के सहारे बालों को जड़ से खूब कसकर बांधा जाता था। उसके बाद उसकी चोटी, जिसमें रिबन या परांदे लगा कर बंधा जाता । फिर जूड़ा बनाया जाता। मान्यता थी कि इससे बाल लंबे, काले, घने रहते हैं। हम भी इसी लौ की ललक लिए चोटियां बनवाते थे जनकपुर वाली भौजी से। वे इतना कसकर जड़ बांधती थी कि आंखें खिंच जाती थीं।
अपनी भाभियों के आने तक नज़ारा बदल चुका था। अब भाभी का संबोधन तो था, भौजी वाली मिठास नहीं। भौजी को महसूस करने के लिए खुद भी भौजी बनना पड़ता है। हम भर मांग सिंदूर, भर हाथ चूड़ी न पहनकर भी भौजी बने रहे। बेशक भौजी की जगह भाभी कहलाते रहे हैं अपने सत्रह देवरों और ननदों के बल बूते।

Thursday, October 16, 2025

 अब "आप रूपी भोजन और आप रूपी सिंगार" ! यही है राइट चॉयस बेब! 


हर परिधान, गेट अप, मेक अप से लुक बदलता है। खुद को अच्छा लगना चाहिए। मुझे अपने लुक में चेंज करते रहना बहुत अच्छा लगता है, चाहे वह मेकअप से हो या परिधान से।

पहले स्त्रियों के लिए कहा जाता था, "आप रूपी भोजन, पर रूपी सिंगार"! मतलब भोजन आप अपनी रुचि का करें और श्रृंगार दूसरों की रुचि का।
सबसे पहली बात तो यह थी कि तब के जमाने में स्त्रियों को कभी भी अपनी रुचि का भोजन नहीं मिलता था। सामान्य मान्यता थी कि पहले घर के पुरुष खाएंगे, फिर बड़ी स्त्रियां, जैसे सास, जेठानियां आदि। फिर अगर बच गया तो बहुओं को मिला। कभी भात पर दाल नहीं तो कभी सब्जी नहीं। उदार घरवाले कहते थे कि खत्म हो हो गया तो बना लो अपने लिए। लेकिन खाना खिलाते हुए दुपहर बीतने को आ जाती थी। भूख से आंतें मरोड़ उठती थी। किसमें इतनी हिम्मत और उत्साह कि खुद के लिए बनाएं! तो भात के साथ नमक, तेल, प्याज, मिर्च, अचार आदि बहनापा निभाते।
उसी तरह पर रूपी सिंगार के साथ है। जाहिर है, पति और उसके बाद घर परिवार की तथाकथित मान्यता के बाद स्त्रियों के लिए अपनी पसंद के पहनावे का सवाल ही कहां रह जाता था! मेरे मुहल्ले की एक भाभी को बड़ी बिंदी लगाना पसंद था लेकिन उनके पति को छोटी बिंदी। मैंने कभी उनके ललाट पर बड़ी बिंदी नहीं देखी। सोचिए, देह आपकी, भोजन और पहरावा तक उनका।
इसलिए, अपनी रुचि से अपना खान पान, कपड़े, जूते, मेकअप तय कीजिए। हर पल रिफ्रेश होते रहिए। किसी दिन डांगड़ बनकर भी रहे तो भी क्या! अपनी पसंद का है यह लद्धड़पन!
इसलिए अब "आप रूपी भोजन और आप रूपी सिंगार" ! यही है राइट चॉयस बेब! 

#Makeup #getup #appeareance #choice #yourbody_yourchoice #facebook 

Tuesday, June 2, 2020

आखिर, प्रोब्लेम क्या है इंटर कास्ट मैरेज़ में?

शादी पर बात करना बड़ा अजीब सा लगता रहता अहै। हमेशा लगता है, नौ दिन चले अढ़ाई कोस। जो हमारे समय की समस्या, वही आज के समय की दिक्कत! कब निकलेंगे हम सब इन निरर्थक सोच से, ताकि दे सकें बच्चों और समाज को कुछ अच्छा! आखिर, प्रोब्लेम क्या है इंटर कास्ट मैरेज़ में? एक बार सोचिए और ताबतक देखिये #बोलेविभा 77 

Dear Parents! Inter cast Marriage mein Problem Kya Hai! Be rational. After all, they are your children. Fill their hearts with your immense love and support! They will be yours. Forever! Believe me! And second thing! Marriage is not the biggest issue of the world! Let be them on their own!
Watch me in #BoleVibha77 on #YouTube
https://www.youtube.com/watch?v=GptsNKtJvic&t=142s


Monday, June 1, 2020

भिडु, बोले तो खाली पीली भांकस नई करने का! ...यज्ञ शर्मा अंकल आएला है।

यज्ञ शर्मा- देश और मुंबई का मस्त व्यंग्य लेखक। आज वो भाई ये दुनिया में नई, पण आज उस भाई का जन्मदिन है। उसकू जन्मदिन मुबारक और आप सबका सामने भाई का लिखा एक satire आपका वास्ते।
आज व्यंग्य का बहुत सारा डॉन भरेला है हिन्दी में। फेसबुक पर भाई का बारे में व्यंग्य का हमारा दूसरा डॉन भाई प्रेम जनमेजय लिखता है-
"आज यज्ञ शर्मा बहुत याद आ रहे हैं। आज उनका जन्मदिन है।
हिंदी व्यंग्य का यह एकांत यात्री अपनी शालीनता में बरसों बरस साहित्यिक दुनिया मे एकांतवास को जीता रहा। धर्मयुग के पन्नो और नवभारत टाइम्स के खाली पीली स्तम्भ को समृद्ध करने वाले इस रचनाकार ने कभी अपने समृद्ध साहित्य का ढिंढोरा नहीं पीटा।व्हाट्सएप एवं फेसबुक के युग मे जहां सुबह 5 बजे से रात ग्यारह बजे तक अपनी रचनाओं का न केवल थोक वितरण करते है अपितु आत्ममुग्ध शैली में सूचनाओं का अंबार रचते हैं, यज्ञ शर्मा इससे निस्पृह थे।
व्यंग्य यात्रा ने उनपर विशेषांक प्रकाशित किया था जो बाद में दिल्ली पुस्तक सदन ने पुस्तकाकार प्रकाशित किया।
वैसे तो साहित्य की दुनिया की स्मृति बहुत क्षीण है, पर उनके मुंबई ही नही देश विदेश में फैले इसे क्षीण नहीं होने देंगे।
आज विभा रानी ,अपने यू ट्यूब चैनल में, बोले विभा के अंतर्गत, यज्ञ शर्मा की रचनाएं प्रस्तुत कर रही हैं।
प्रेम भाई भोत प्रेमिल है। हमारा बारे में भी लिख दिया। अपुन बहुत खुश है आज। इस खुशी में ये चैनल सभी को फ्री में। प्रेम भाई लिखता है- जी!अपने अंदाज में आपने यज्ञ शर्मा का अंदाज़ याद दिला दिया। हिंदी साहित्य में अग्रजों के लिए उड़ाए गए शाल कैसे समस्या बनते हैं, यज्ञ शर्मा के रोचक व्यंग्य को आपने बढ़िया पढ़ा। यज्ञ जी की यह बात की भाषा संवाद का मध्य की आपने बेहतरीन तरह से रेखाकित किया
एक और डॉन भाई लालित्य ललित लिखता है- "अद्भुत व्यक्ति थे,जब उनके फोन आते थे, लम्बी बातें करते थे।उनकी समझ व्यंग्य के प्रति निष्कपट टाइप थी।आजकी राजनीति को भी वे जानते समझते थे, पर राजनीति को दूर रखकर अपने काम में लगें रहते थे।उनकी स्मृति को सादर नमन। " लालित्य भाई अपुन का भी तारीफ किएला है। उनाकू भी जादू वाला झप्पी। 
प्रेम भाई का पोस्ट देखेने का। उसपर भोत सारा लोग लिखेला है। Rajendra Sehgal भाई लिखता है- यज्ञ शर्मा का लेखन विपुल और गुणवत्ता से परिपूर्ण है । एक व्यंग्यकार के व्यक्तित्व में जो विशेषताएं उसके लेखन को तीखा बनाने में सहायक होती हैं उनमें बडी हद तक मौजूद रहीं हैं । उम्मीद है उनके व्यक्तितव कृतित्व पर लिखा मेरा लेख भी शामिल किया गया होगा ।उनकी स्मृति को नमन ।

अभी हम जास्ती नहीं लिखेंगा। आप ये वीडियो देखो। 
सुनना, लाइक करना, subscribe, शेयर, कमेन्ट करना मांगता। समझा भिडू! ये रहा लिंक- https://www.youtube.com/watch?v=kTYJkmGs_2c
#यज्ञशर्मा #YagyaSharma #Satire #Hindi #HindiWriter

Monday, May 18, 2020

18 मई- World AIDS Vaccine Day/ HIV vaccine Awareness Day

आज एक बहुत ही महत्वपूर्ण दिवस है। आज हम संकट एक बड़े समय से गुजर रहे हैं। हर बड़ी बीमारी बहुत सारा बलिदान ले जाती है। एड्स ने भी हजारों को हमसे छीना। लेकिन, जीवन चलता रहता है। कैंसर में भी चलता रहता है। आज कोरोना में भी चल रहा अहै। चलता रहेगा। खोज, शोध, टीके, इलाज इन्हीं चलते रहने और इंसान को बचाते रहने का दूसरा नाम है।
18 मई World AIDS Vaccine Day/ HIV vaccine Awareness Day के रूप में मनाया जाता है।
एड्स/एचआईवी पर मैंने कुछेक कहानियाँ लिखी थीं। आज उन्हीं में से एक कहानी आपके लिए लेकर आई हूँ इस अवसर पर- "हैलो डॉ पारेख!"
आपकी राय, टिप्पणियों की प्रतीक्षा रहेगी। #BoleVibha62 #AIDS #HIV #Corona #COVID19 #Lockdown4
https://www.youtube.com/watch?v=bjtriM8p5fk