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छम्मकछल्लो की दुनिया में आप भी आइए.

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Wednesday, January 12, 2011

सपने में शास्त्री जी.

छम्मकछल्लो बहुत दिन से लिख नहीं पा रही है. क्यों के बहुत से बहाने हैं. इस बहाने को तोडने के लिए कल रात उसके सपने में शास्त्री जी आ गए. लीजिए, आप भी पूछ रहे हैं, कौन शास्त्री जी? कभी आपने पूछा, कौन गांधी जी, कौन नेता जी, कौन लोकनायक जी? बडके लोगन की बारात में छोटके लोगन छुप जाते हैं. छोटके लोगन आजकल ऊ नहीं हैं, जो कर्म से छोटे होते हैं. छोटके लोगन ऊ हैं, जो आज की ज़ुबान में अपनी मार्केटिंग करना नहीं जानते. या फिर छोटके लोग ऊ हैं, जो इस लोकशाही में राजतंत्र लेकर नहीं आए, या छोटका लोगन ऊ है, जो कभी घूस नहीं खाया, बेईमानी नहीं किया. इसी सबके कारण अपने शास्त्री जी छोटे रह गए, इतने कि किसी को यादो नहीं रहता है कि कब ऊ जन्मे आ कब सिधार गए? ले बलैया के, अभीयो नहीं बूझे? अरे, अपने भारत के सबसे सीधे, सच्चे प्रधान मंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी. एक तो उनके जन्म दिन पर गांधी बाबा कब्ज़ा बोल गए. बडे के आगे छोटे को कौन याद रखता है? खैर, जनम की तारीख पर किसी का अधिकार नहीं, मगर दो बडे नेता हों तो दोनों को उतना ही सम्मान देना हमारे अधिकार में तो है. मगर हमको याद दिलाना पडता है कि 2 अक्तूबर को हमारे शास्त्री जी का भी जनम दिन है.
अब हमको यह भी याद दिलाना पडता है कि आज उनकी पुण्यतिथि है. सच पूछिए तो छम्मकछल्लो को भी याद नहीं था. याद दिलाने के लिए शास्त्री जी को रात उसके सपने में आना पडा. छम्मकछल्लो से पूछे- “का जी, हम तुम सबको याद हैं?”
छम्मकछल्लो को लगा कि धरती फट जाए और वह उसमें सीता मैया की तरह समा जाए. भला कहिए तो, अभी न तो इतनी उमिर बीती है और न स्मृति पर ऐसा आक्रमण हुआ है और न ही वह किसी बडे लोग की गर्दुमशुमारी में जा पहुंची है.
छम्मकछल्लो ने हाथ जोडे- “शास्त्री जी, शर्मिंदा मत कीजिए. आपसे सम्बंधित हमें बहुत सी बातें याद हैं.”
“जैसे?” शास्त्री जी जैसे छम्मकछल्लो की परीक्षा लेने लग गए.
छम्मकछल्लो के सामने बचपन रील की तरह खुलने लगा- “शात्री जी, हमको याद है, आप जब प्रधान मंत्री बने थे, तब हमारा स्कूल और उस स्कूल में पढानेवाली मेरी मां सहित हमारे छोटे से शहर के लोग बडे ही खुश हुए थे. सबको आपकी सादगी इतनी भाई थी कि पूछिए मत. भारत-पाकिस्तान युद्ध के समय आपने जितना कडा रुख लिया था, हमको उसकी धुंधली याद अभी भी है. अमेरिका से गेहूं आयात की बात हो रही थी. आपने कहा था कि अगर हम सभी एक शाम भोजन ना करें तो उस एक शाम के खाने की बचत से इतना गेहूं बचेगा कि देश को गेहूं निर्यात करने की ज़रूरत ही नहीं पडेगी. आपने सोमवार की शाम इसके लिए मुकर्रर किया था. तब सभी शाम में अमूमन रोटी ही खाते थे. मुझे याद है शास्त्री जी कि आपकी इस बात को हमारे शहर ने एक आंदोलन की तरह लिया था. मेरी मां ने स्कूल के सभी बच्चों से कहा था कि वे सोमवार की शाम खानाना खाए. मां ने भी नहीं खाया था और हम सबने भी नहीं. दूसरे दिन मां ने सभी बच्चों से पूछा था. एक बच्ची रो पडी. सुबकते हुए उसने बताया कि उसकी तबीयत ठीक नहीं थी, इसलिए उसकी मां ने उसे जबरन खाना खिला दिया था.
आपने जय जवान, जय किसान का नारा दिया था. हम मनोज कुमार की फिल्म “उपकार” देख रहे थे. उनके एक गीत में आपकी तस्वीर आते ही हमें रोमांच आ गया था. आज तक आता है. हमने अपने अंग्रेजी की किताब में आप पर एक लेख पढा था- नन्हे, द लिटिल ग्रेट मैन”. मां से इसका मतलब पूछा था. मां ने बताया था कि आपका शारीरिक कद बहुत छोटा था, इसलिए. लेकिन आपका मानसिक कद कितना बडा था शास्त्री जी!
शास्त्री जी हंसे, फिर तनिक स्नेह से छम्मकछल्लो के सिर पर हाथ फिराया. छम्मकछल्लो ने कहा, “शास्त्रीजी, हमारे घर काम करनेवाली दाई थी-चनिया. 11 जनवरी की हाड कंपाती सुबह थी. पांचेक बज रहे होंगे. हम सब रजाई में घुसे थे. वह बाहर से ही छाती पीतते हुए मां को पुकार रही थी- “दीदीजी यै दीदी जी, शास्त्री जी मरि गेलखिन्ह.” वह चौक के रास्ते से आ रही थी, जहां पर रेडियो और लोग थे. रेडियो पर समाचार था और सभी लोग खामोश.
मां एकदम से चौंक उठी थी, संग में हम सब. मां ने दरवाजा खोला और चनिया एकदम से मां से लिपटा कर ऐसे भोकासी पारकर रोने लगी, जैसे उसके घर का अपना कोई गुजर गया हो. हां शास्त्रीजी, आपको कोई भी पराया नहीं मानता था.
“तब आज क्या हो गया है कि लोग हमें भूल गए हैं? मैं इसी देश का हूं भाई. अपने देश से आज भी वैसे ही लगाव और प्यार है मुझे.”
“आज शास्त्री जी, देश लोकतांत्रिक राजतंत्र हो गया है. इसमें सभी अपनों को याद रखते हैं, अपने परिवार की बंशवेल बढा रहे हैं. हम सब अनाथ की तरह घूम रहे हैं. फिर से जनम लीजिए शास्त्री जी, फिर से आइये, देश को आपकी बहुत ज़रूरत है. और लीजिए, कि शास्त्री जी भी हमारे संग रोने लगे.

Friday, October 2, 2009

बापू के नाम की यह चिट्ठी

बरसों पहले एक फिल्म आई थी- "बालक." उस फिल्म के लिए यह गीत सम्भवत: पं. प्रदीप ने लिखा था. लोग कहते हैं, सब कुछ बदल गया है, बहुत कुछ बदल गया है. गीता में जो कहा गया, आज तक नहीं बदला, कबीर ने जो कहा, आज तक वही हालात हैं. शहीद भगत सिंह जो बयान कर गये, देश के सामाजिक हाल अब भी वहीं के वहीं हैं. बापू भी जो कह गये, क्या उस पर हमारा ध्यान है? बापू के नाम यह पत्र आज भी हमारे हालात के बयान क ज़िन्दा दस्तावेज़ है.
सुन ले बापू ये पैग़ाम, मेरी चिट्ठी तेरे नाम
चिट्ठी में सबसे पहले, लिखता तुझको राम- राम,
लिखता तुझको राम
काला धन, काला व्योपार, रिश्वत का है गरम बाज़ार
सत्य अहिंसा करे पुकार, टूट गया चरखे का तार
तेरे अनशन सत्याग्रह के बदल गये असली बर्ताव
एक नई विद्या उपजी है, जिसको कहते हैं घेराव
तेरी कठिन तपस्या का ये निकला है कैसा अंजाम
चिट्ठी में सबसे पहले, लिखता तुझको राम- राम
प्रांत प्रांत से टकराता है, भाषा से भाषा की लात
मैं पंजाबी, तू बंगाली, कौन करे भारत की बात
तेरी हिन्दी के पैरों में अंग्रेजी ने बान्धी डोर,
तेरी लकडी ठगों ने ठग ली, तेरी बकरी ले गये चोर,
साबरमती सिसकती तेरी, तडप रहा है सेवाग्राम
चिट्ठी में सबसे पहले, लिखता तुझको राम- राम
राम-राज्य की तेरी कल्पना, उडी हवा में बन के कपूर
बच्चों ने पढ-लिखना छोडा, तोड-फोड में हैं मगरूर
नेता हो गये दल-बदलू, देश की पगडी रहे उछाल,
तेरे पूत बिगड गए बापू, दारुबन्दी हुई हलाल
तेरे राजघाट पर फिर भी, फूल चढाते सुबहो-शाम
चिट्ठी में सबसे पहले, लिखता तुझको राम- राम
हां, आज हमारे भूतपूर्व प्रधान मंत्री लाल बहादुर शास्त्री का भी जन्म दिन है, जिन्होंने देश के कठिन समय में देशवासियों से अपील की थी कि आप सब सप्ताह में एक शाम का भोजन ना करें, इससे देश में अनाज की जो बचत होगी, उससे अनाज के आयात का संकट टाला जा स्कता है. और मुझे याद है, क्योंकि मैने भी तब एक शाम नहीं खाया था, लोगों ने स्वेच्छा से सप्ताह में एक शाम का खाना छोडा था. स्कूलों तक में इसका प्रचार लिया गय था. टीकरों ने बच्चों को समझाया था. मुझे भी टीचर के मार्फत ही यह सन्देश मिला था. शास्त्री जी की सादगी और देश के प्रति निष्ठा लोगों के दिलों तक पहुंची थी. मुझे अभी भी याद है कि उनकी मृत्यु पर हमारे घर काम करनेवाली चनिया दाई भी फूट-फूट कर रो पडी थी. दर असल उसी ने सुबह-सुबह काम पर आते समय मोहल्ले के चौक पर बज रहे रेडियो और उस पर आये समाचार से खलबली मच गये मोहल्ले की भी जानकारी दी थी. शहर में जैसे मातम छा गया था. लोगों ने उस दिन खाना नहीं खाया था और ताशकन्द शब्द लोगों के दिल-दिमाग में खुभ गए थे. स्कूलों- कॉलेजों के अलावा गृहणियों ने भी उनकी पत्नी श्रीमती ललिता शास्त्री को सम्वेदना भरे पत्र लिखे थे और उन सबके लिए बहुत बडा सुकून और संतोष का बायस बना ललिता जी की तरफ से आय आभार-पत्र. "जय जवान, जय किसान" का नारा लोग अंग्रेजो, भारत छोडो जैसे नारे की तर्ह उचारते थे. अच्छा है कि छुटपन में ही सही, इनलोगों के समय में हम थे और इनसे जुडे चन्द लम्हे अपने जीवन की भी थाती हैं.