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Monday, January 9, 2017

सीमा व ओम

6 जनवरी की सुबह। फॉलो अप के लिए मैं अजय को अस्पताल लेकर जा रही थी। रस्ते में नेट खोला। व्हाट्सएप पर एक मेसेज आया- ओम पुरी का निधन। मैं सकते में आ गयी। अभी कल ही दोपहर में उनकी पत्नी सीमा कपूर से बात हुई थी। सीमा और मैं पिछले कई सालों से दोस्ती के तार में बंधे हुए हैं। नहीं मिलते हैं तो नहीं मिलते हैं। मिलते हैं तो 3-4 घंटे से कम में हमारा कुछ होता-हवाता नहीं। 5 की दोपहर में भी हमारी काफी बातें हुईं। सीमा का सदाबहार चहकता स्वर-"हां जी।"
6 को फिर उनसे बात होनी थी और मैंने दोपहर का समय तय किया हुआ था कि अचानक....! मैंने उन्हें तुरंत फोन लगाया। मोबाईल व्यस्त था। लैंड लाइन लगाया। किसी और की आवाज थी। सीमा को उन्होंने फोन दिया और .....सीमा की आवाज सबकुछ बयां कर रही थी। मैं आवाज की उस कमजोरी को नकारना चाह रही थी। इसलिए तस्दीक की-"जो सुना, सच है क्या?" वे कमजोर आवाज में बोलीं-"हां। सच है।" अब बारी मेरे हाथ-पैर ठंढे पड़ने की थी।
ओम पुरी जी से मेरा कोई सीधा सम्बन्ध नही रहा। उतना ही,जितना किसी प्रशंसक का एक कलाकार के प्रति रहता है। कुल जमा मैं उनसे दो बार मिली थी- पहली बार जब अजय को इन्डियन एक्सप्रेस का अवार्ड मिला था। अजय के लेख को ओम  पुरी जी ने ही प्रस्तुत किया था। एक तो उम्दा लेख और उस पर से उनकी उतनी ही दमदार आवाज़।
दूसरी बार मिली, तकरीबन 6-7 साल पहले, जब सीमा ने उनके जन्मदिन की पार्टी रखी थी। दो-तीन दफे फोन पर सीमा के माध्यम से बातेँ हुईं। उनकी आवाज अपने लिए सुनना और विभा जी का सम्बोधन!
सीमा के माध्यम से ओम जी के बारे में इतनी बातें होती थीं कि ओम जी अब इतने बड़े कलाकार नहीं, अपने जीजा सरीखे लगने लगे थे। सीमा जब उनकी बातें बतातीं, उनके संग साथ हम भी खिलखिला पड़ते।
टूटकर किसी से प्यार कैसे किया जाता है, यह कोई सीमा से पूछे। हिम्मत करके कल गयी। सूनी आँखों से एक ही शब्द बोली- "खत्म" । सीमा के घर में एक बड़ा सा फ्रेम है, जिसमे सभी की तस्वीरें हैं। ओम जी के साथ की भी। ओम जी की सिंगल भी। मैं उस फ्रेम को देख रही थी। सीमा धीरे धीरे खुलती गईं- "अब किससे रूठूंगी?" आँखों में नमी आती गयी, टिशु भीगते गए।
1979 से सीमा ने ओम जी से प्यार किया। वे अक्सर कहतीं- "सब मुझसे यही पूछते कि क्या देखकर मैंने उनसे प्यार किया?" उम्र में बड़े। न पैसा,न नौकरी।" अब मैं क्या कहती! प्यार ये सब देखकर तो किया जाता नहीं।
1990 में सीमा की शादी ओम जी से हुई। सीमा की सादगी और मासूमियत उनके ब्याह की तस्वीर में भी दिख रही थी।
कल उनके घर पर पहुंची, ओम जी की तस्वीर लगी हुई थी। फूल चढ़े हुए थे। धूप अगरबत्ती जल रही थी। सीमा के घर पर हमेशा एक पेट रहती है। पेट से मेरा डर सीमा की पेट "सखी" से ही दूर हुआ। सखी तो अब नहीं रही। दूसरी है। घर के माहौल से गुमसुम वह मेरे घुसते ही मेरे पैरों से लिपट गयी। लग रहा था, सीमा की तरह ही उसे भी सांत्वना के दो बोल चाहिए। उसने मेरे पैरों को चाटा। मैं उसे देर तक सहलाती रही। फिर वह मेरे पैरों से लिपटकर सो गयी।
सीमा अपनी मासूमियत के साथ ही अपने निश्चय की दृढ हैं। अपने दम ख़म पर अपना कैरियर बनाया है। ओम जी के साथ को वह अपने सुकून का बैन मानती रही हैं। जब जब विवादों में वे घिरे, इन्होंने कभी आगे बढ़ कर उसमे पलीता नहीं लगाया। ऐसे समय में वे प्रेस और मीडिया से अलग रही। आज भी कई मीडिया वालों के फोन आए। वे सभी को पूरी शालीनता से मना करती गईं। सीमा इसी में खुश और मस्त थीं कि पुरी साब उनके साथ हैं। उन्हें वे शुरू से "पुरी साब" ही कहकर बुलाती रहीं।
 ओम जी अपने बेटे से बहुत गहरे से जुड़े हुए थे। सीमा बताती हैं कि एक माँ की तरह उन्होंने उसकी परवरिश की है। वे अक्सर पूछते थे, "आप मेरे बेटे से प्यार करेंगी न!" सीमा कहतीं -"मैं तो एक पक्षी से भी प्यार करती हूँ। फ़िर यह तो आपका बेटा है पुरी साब।"
वाकई, मैंने देखा है सीमा को पशु पक्षियों को जान से प्यार करते हुए। एक बार उनके यहाँ कबूतर का एक बच्चा घायल होकर आ गिरा। सीमा ने उसे कई दिनों तक कलेजे से सटाकर रखा। उसकी तीमारदारी की। उसके लिए खिचड़ी बनती। अपने हाथों से उसकी चोंच खोलकर खिलाती। जब वह ठीक हो गया तब एक दिन सीमा ने उसे उड़ा दिया। उसके बाद वे भूल गयी। एक दिन,सीमा बताती हैं कि वह अपनी बिल्डिंग में नीचे उतरी तो देखा कबूतरों का एक दल वहां दाना चुग रहा है। उस कबूतर के बच्चे ने उसे देखा और वहीँ से उसे देख कर जैसे आँखें मटकाता और गर्दन हिलाता रहा।" सीमा ने कहा, ये ही है मेरी पहचान। बिल्डिंग में कोई भी जानवर या पक्षी घायल हो जाए, बच्चे भी उसे उठाकर मेरे पास ले आते हैं।
ओम जी पिछले कई सालों से फिर से सीमा के साथ रहने लगे थे। मैंने देखा था, जितनी देर हम साथ रहते थे, उतनी देर में कई दफे उनके फोन आ जाते थे। फोन खत्म करने के बाद वे खिलखिला पड़तीं। कहतीं - "पता नहीं, ये मेरे बगैर इतने दिन कैसे रह लिए?"
अब सीमा कह रही हैं -"कैसे रहूंगी अब? किससे रूठूंगी? मेरे न खाने पर कौन मुझे डांटकर खिलाएगा?" आज भी जब मैं गयी तब वे कुछ भी नहीं खा रही थीं। उनके छोटे भाई नोनी ने कहा-"दीदी, खा लीजिये, वरना पुरी साब हमें डाँटेंगे।"
जीवन में कभी किसी की भरपाई नहीं हो पाती- न कलाकार की। न इंसान की। ओम पुरी एक कलाकार के रूप में अद्वितीय थे। अपने बाद के दिनों में सीमा के साथ प्यार की सभी सीमाएं तोड़ चले थे। मुझे याद है,एक शाम हमारा सीमा से मिलना तय हुआ। उसके तुरंत बाद शायद पुरी साब सीमा से मॉल चलने के लिए कहने लगे। सीमा ने शायद कहा हो कि मैं आनेवाली हूँ। थोड़ी देर बाद फिर से सीमा का फोन आया। मैने आदतन अपनी रो में कहा -"हाँ जी। रास्ते में हूँ। बस, 10 मिनट में पहुँच रही हूँ।" कि उधर से आवाज आई- "विभा जी। मैं ओम पुरी बोल रहा हूँ। सीमा बता रही हैं कि आप अभी उनके पास आनेवाली हैं। लेकिन, मैं इन्हें अभी मॉल ले जाना चाहता हूँ, अगर आपकी इजाजत हो तो...!"
भला बताइये, मैं कैसे दोनों के बीच में दीवार बनती! । ओम जी कहते रहे,आप एक दिन आइये। हम सब बैठकर खूब बातें करेंगे।
मगर हमारी अपनी बेकार की व्यस्तता। दिन निकलते चले गए और अब तो वे ही चले गए। हमारी मिलने की, बातें करने की ख्वाहिशें ख़्वाब बनकर रह गईं। फिर भी, मुझे मालूम है, पुरी साब कि आप सीमा के दिल में हैं। इसलिए, हमारे भी पास हैं। सीमा के माध्यम से हम मिलते रहेंगे ओम जी। बस, थोड़ा अपना ध्यान धर लेते। थोड़ा और ख्याल कर लेते हमारी सीमा का तो आज हम आपसे हंसी मजाक करते रहते और सुनाते रहते अपने गाली गीत-
"एही मोरा ओम जी के बड़े बड़े आँख रे,
ओही आँखे देखलन सीमा हमर रे,
मारू आँख फोड़ू उनके ईहाँ से भगाऊ रे.....!"
यह प्यार भरा, दुलार भरा, हंसी-मजाक से भरा गीत गाते हुए आपको टीज करना था ओम जी। मुझे यकीं है,आप सीमा की ओर प्यार भरी नज़रों से देखते हुए मुस्कुराते रहते और मैं गाती रहती और उकसाती सीमा को भी कि वे भी गाएं। सीमा बहुत बढ़िया गाती हैं। ज़रूर सीमा गाती-
"हमसफ़र मेरे हमसफ़र,
पंख तुम, परवाज हम,
जिन्दगी का गीत हो तुम,
गीत की आवाज तुम।"###