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छम्मकछल्लो की दुनिया में आप भी आइए.

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Monday, January 20, 2014

सिंगल मदर - एक सनसनाता तीर!

आखिर मशहूर अभिनेत्री केट विन्सलेट ने भी कह ही दिया कि अकेली माँ होना कितना मुश्किल है। केवल इसी देश को गरियानेवालों और पश्चिम पर मर मिटनेवालों! सुनो, सुनो इस पश्चिम की भी हकीकत, कि नहीं है समादृत औरत यहाँ भी। केट विन्सलेट के दो पतियों से क्रमश: 12 और 8 साल के दो बच्चे हैं और उनका कहना है कि समाज के जो तौर तरीके हैं, उनमें अकेली माँ यानी सिंगल मदर होकर रहना बहुत ही मुश्किल है। टाइम आउट पत्रिका ने उनका उद्धरण दिया, जिसे छम्मकछल्लो 8/10/2013 के हिंदुस्तान टाइम्स के एंटरटेनमेंट पन्ने से ले उठा आई है- “It does not matter, whether you’ve got money, whether you’re famous or not. You have to carry on.” केट विन्सलेट का कहना है कि ऐसे कई मौके आए, जहां उन्हे कई तरह की अवान्छित स्थितियों का सामना करना पड़ा। वे कहती हैं कि सिंगल मदर के सामने समय बड़े कठिन रूप में आता है। सिंगल मदर के लिए सोसाइटी बड़ी ही जजमेंटल होती है। मैंने कभी नहीं सोचा था कि जीवन में ऐसे भी हालात आएंगे।

छम्मकछल्लो को बड़ा अच्छा लगा। अब समझ में आया कि लोग कहते हैं- बड़े लोगों की बड़ी बात! होती होंगी बड़े लोगों की बड़ी बात, लेकिन वे सब लोग हैं, लोगिन नहीं। समाज और समाज की मान्यता लोगों ने बनाई है- लोगिन ने नहीं। हमारी ही काली व शक्ति-पूजा की तरह वे भी वर्जिन मदर की पूजा करेंगे, लेकिन जीवित वर्जिन मदर या सिंगल मदर की जान सांसत में डाल देंगे। जैसे हम अपने यहाँ करते हैं- मंदिर की देवियों की पूजा करते हैं और जीवित देवियों को नैना साहनी, प्रियदर्शनी मट्टू, निर्भया, रुचिका बना देते हैं। हम राधा-कृष्ण, सीता-राम, पार्वती-शंकर की पूजा करते हैं, लेकिन आज के प्रेम करनेवाले राधा-कृष्ण, सीता-राम, पार्वती-शंकरों पर खाप बिठाते हैं, उनको जान से मार देते हैं। आज भीलड़की किसी की ओर देख ले तो वह वेश्या, छिनाल से भी बदतर हो जाए।

छम्मकछल्लो खुश है कि चलो, कहीं तो हम समान हुए। तलाक़शुदा, विधवा, सिंगल मदर की हालत वहाँ भी खराब तो यहाँ भी। औरत वहाँ भी मादा, यहाँ भी। निदा फाजली की लाइन याद आती है-
            इंसान में हैवान यहाँ भी है, वहाँ भी,
            अल्लाह मेहरबान, यहाँ भी है, वहाँ भी!  

तो क्यों माथापच्ची करें हम सब! मान लेते हैं हम सब आपकी सत्ता! आप हैं भगवान! यहाँ भी, वहाँ भी! आपसे ही है हमारी जान- यहाँ भी, वहाँ भी! चल फकीरन, घर चल। ऐसा घर, जो तेरा हो और जहां तू बेखटके किसी की परवाह किए बिना रह सके।######  

Monday, January 13, 2014

ढो रहे हैं अपने पूर्वजों का रक्‍त और वीर्य

आपके हवाले जानकीपुल में छपा एक लेख . पहले ही देना चाहिए था, मगर जीवन की जद्दो जहद में बहुत कुछ छूटता है. यह लेख आपके मन में कई सवालों को शाय्द जन्म दे. उनके उत्तर ? सोचिए, कौन देगा? लिंक और लेख यहां है. http://www.jankipul.com/2014/01/blog-post_9.html

 औरत की देह से रक्‍त और मर्द की देह से वीर्य ना निकले तो चिकित्‍सा विज्ञान सकते में आ जाए। स्‍वस्‍थ देह और स्‍वस्‍थ मन की निशानी है  इन दोनों का देह में बनना और इन दोनों का ही देह से बाहर निकलना। प्रकृति और सृष्टि रचना का विधान इन्‍हीं दो तत्‍वों पर है।

      देह ना हो तो आत्‍मा को किस होटलगेस्‍ट या फार्म हाउस में ठहराएंगे भाईदेह की दुर्दमनीय दयालु दृष्टि से सभी दग्‍ध हैं। परक्‍योंहम तो अपने पूर्वजों और वरिष्‍ठों से ही सब सीखते हैं। जब भारतीय मिथक मछली के पेट में वीर्य गिराकर मानव-संतान की उत्‍पत्ति करा सकता है और हमारा अनमोल साहित्‍य विपरीत रति से लेकर देह के देह से घर्षणमर्दन तक लिख सकता है तो हम क्‍या करेंउस परंपरा को छोड़कर चलो रे मन गंगा-जमना तीर गाने लगेंनैनन की करि कोठरीपुतरी पलंग बिछायपलकन की चिक राखि कैपिव को लिया रिझाय पर लहालोट होनेवाले हम क्‍या अपने साथ-साथ दूसरों की देह-संघर्ष गाथा भूल जाएंना लिखें कि आजतक हमने देह का चरम सुख नहीं भोगाउस चरम सुख के बाद की चरम शांतिवाली नींद का सुख नहीं जाना?

      समय बदलता हैसमय के साथ नहीं बदलने से कूढमगजी आती है. अपने छीजते जाने काअकेले पड़ते जाने का भय सताने लगता है। अपने समय में बनने-संवरनेवाले अब जब खुद नहीं बन-संवर पाते तो या तो अपनी उम्र का रोना लेकर बैठ जाते हैं या दूसरों को बनते-संवरते देख कुंठित हो जाते हैं. देखिए नबनीता देव सेन को  छिहत्‍तर की उम्र में भी कितनी जांबाज हैं और देखिए शोभा डे को  छियासठ की उम्र में भी उतनी ही कमनीय और आकर्षक!

कैसे कहासमझाया जाए कि भैयाजवानी देह से नहींमन से आती है। लेकिनयह भी है भैया कि मन की जवानी को दिखाने के लिए देह को दिखाना जरूरी है। यह देह साहित्‍य में आता है और अलग-अलग भूचाल लेकर आता है उम्र से जवान! खुद को कितनी बड़ी गाली! माने उम्र चढ़ी तो देह भैया देह है और ढली तो पाप हैनारी ने देह पर लिख दिया तो वह उसी की रस भरी कहानी हो गई. नहीं भी देह पर लिखा तो भी उसका लेखन ही उसे देह के रास्ते लिखवाने का सबब बना गया. और सुन्दर नारी ने लिख दिया तब तो पूछिए ही मत. हिन्दी के लेखकों की यह कौन सी मानसिकता हैजिसमें महुआ माजी का सौन्दर्यसाडी और गाडी उनके लेखन को एक दूसरे पठार पर ले जाकर पछाड खाने को छोड देता है या फिर मैत्रेई पुष्पा भी महिला लेखन को उनके उम्रउनकी नजाकत या सीधे-सीधे शब्दों में कहें तो उनके औरतपन से जोडकर देखने लगती हैं. देह और महिला लेखन के प्रति यह संकुचित मानसिकता और कुंठा हिन्दी में इस तरह से क्यों भरी है कि आज खुद को लेखिका कहलाने में भय होने लगे कि कहीं कोई यह ना पूछ ले कि इस कहानी के बदले क्या और उस कविता या नाटक के बदले किसे क्या दियापति-पत्नी के जीवन पर आधारित मेरे नाटक आओ तनिक प्रेम करें पर किसी ने मुझसे कुछ नहीं पूछा. लेकिन नए सम्बन्धों पर आधारित नाटक दूसरा आदमी दूसरी औरत पर सभी ने पूछा कि क्या यह मेरे जीवन की कहानी हैमाने रस चाहियेरस! रस का यह वीर्य हमारी देह में नहींहमारे दिमाग में इस तरह से भरा है कि महिला का  या औरत का  देखते ही फिसल फिसल कर बाहर आने लगता है. और अपनी देह के छीजते जाने के भय या अपने बीतते जाने के डर से लेखिका भी जब दूसरी लेखिकाओं को कठघरे में खडी करने लगे तब कौन सी राह बच जाती है बाकियों के लिए?  

इन सबकी चर्चा हाल में अपने कुछ कन्नडभाषी लेखक मित्रों से कर रही थी. वे यह सुनकर हैरान-परेशान थे कि क्या सचमुच में महिला लेखकों को उनके लेखन के बदले उनके अन्य तत्वों से तोला जाता हैगोपाल कृष्ण पई मेरे सामने बैठी कन्नड की मशहूर कवि ममता सागर को दिखा कर कहते हैं- इसे तुम यह कहकर देखो ममता कहती हैं- हम तो यह सोच भी नहीं सकते. और तुम्हें क्या लगता है कि हमारे यहां की महिला लेखक खूबसूरत नहीं होतींलेकिन उन्हें उनके लेखन के बल पर दाखिल या खारिज किया जाता हैउनके रूप-रंग या उनकी पारिवारिक या आर्थिक परिस्थिति के कारण नहीं. मैं जब अपने अंग्रेजीभाषी अन्य महिला लेखकों लिंडा अशोकशिखा मालवीयएथेना कश्यपनीलांजना रायफराह गजनवीनिगहत गांधीजर्मन महिला कवि औरेलिया लसाककन्नड कवि ममता सागर आदि को देखती हूं तो सहज सवाल मन में आता है कि अगर ये सब हिन्दी में लिख रही होतीं तो क्या इन सबको भी देह की तराजू पर ही तोला जाताआपसे भी यही सवाल! ####

Thursday, January 9, 2014

अपनी बल-बुद्धि का इस्‍तेमाल करो ओ लड़कियो!

मोहल्लालाइव मे छपा एक लेख. अच्छी प्रतिल्रियाएं मिल रही हैं. आपकी भी राय जानना चाहूंगी. लिंक है-
http://mohallalive.com/2014/01/04/vibha-rani-womens-issue/

और लेख ये रहा:
लड़कियो! इससे पहले कि तुमसे मैं कुछ कहूं, मेरे आस-पास घटी कुछ सच्ची घटनाएं सुन लो।
1) मेरे एक पत्रकार दोस्त की पत्नी ने शादी के तुरंत बाद ही पति से लड़-झगड़ कर उसे उस घर से निकाल दिया, जो उसके पति ने लिया था। पति के समझाने-बुझाने पर उस पर दहेज का इल्जाम लगाकर पुलिस में जाने की धमकी देने लगी। थका-हारा पति जब अपनी जान की हिफाजत के लिए पुलिस में रिपोर्ट कराने पहुंचा, तब पुलिसवाले ने ही कहा कि “साब, आप किसके चक्कर में फंस गये? यह तो बाजारू औरत है। इसकी तो तस्वीर हमारे थाने में है। आप जाइए। यह पुलिस में नहीं आएगी।” फिर भी, वह थाने पहुंची और आजतक वह केस में फंसा हुआ है।
2) मेरी एक दोस्त का भाई किसी लड़की के साथ लिव-इन-रिलेशन में था। तीन साल तक वे साथ-साथ रहे। इस बीच किसी बात पर लड़की की बहस उससे हुई। बात ने विवाद का रूप लिया और लड़की ने उस पर तीन साल से लगातार बलात्कार का आरोप लगाकर उसे जेल भिजवा दिया। जाने कैसे-कैसे वह छूटकर बाहर निकला।
3) मेरी इसी दोस्त के एक पहचानवाले ने अपने बेटे की शादी लाखों रुपये के मेहर की रकम के साथ खूब धूमधाम से की। दुल्हन इस ख्वाब के साथ डोली से उतरी कि यह तो बड़े बिजनेसमैन का घर है, जहां उसके चारों ओर नौकर-चाकरों की फौज रहेगी और अपनी शानो-शौकत से वह दुबई में रह रही अपनी बहन पर रोब गालिब करेगी कि उसका रुतबा उससे किसी दर्जा कम नहीं। लेकिन जब देखा कि घर में नौकर-चाकर और तमाम सुख-सुविधाओं के बावजूद उसकी सास ही खाना बनाती है, तो वह सब छोड़-छाड़ कर मायके लौट गयी, यह कहते हुए कि मेरी सास ने मुझसे आटा सानने को कहा। मैं क्या रोटी पकाने के लिए उस घर गयी थी? ससुराल से पीछा छुड़ाने के लिए उसने उन पर दहेज का आरोप लगा दिया। अंतत: ढेर सारे पैसे और मेहर की रकम लौटाकर ससुरालवालों ने अपना रास्ता अलग किया यह कहते हुए कि हम छोटी जगह में रहते हैं। पुलिस तो तुरंत हमें जेल ले जाएगी और हमारी इज्‍जत और धंधा-पानी सब चौपट हो जाएगा।
4) मेरा एक दोस्त अपनी बेबाक लेखनी और विचारधारा के कारण अपने विरोधियों और मीडिया के नापाक इरादों का शिकार हो असमय ही काल के गाल में चला गया। एक लड़की ने उस पर रेप का आरोप लगा दिया। अब न लड़की सामने आ रही है, न मीडिया न वे लोग, जो उसकी विचारधारा से वाबस्ता न रखते थे और उसे अपनी राह का कांटा समझते थे।
अब आओ, तुम्हारी बात करें। तुम पढ़ रही हो तो पढ़ो। बढ़ रही हो तो बढ़ो। पढ़ाई का हर संभावित क्षेत्र तलाश रही हो तो तलाशो। कैरियर के हर मार्ग को आजमाना चाहती हो तो आजमाओ। यह तुम्‍हारा या तुम्‍हारा ‘ही’ नहीं, तुम्‍हारा ‘भी’ संसार है। इस ‘भी’ पर तनिक ध्‍यान देना ओ लड़कियो। संसार तुम्‍हारा होता तो कोई बात नहीं थी, तुम्‍हारा ही होता, तब तो बल्‍ले-बल्‍ले होता। तुम्‍हारा ‘भी’ है, मतलब तुम बंद दरवाजा ठकठकाकर कह रही हो – “खोलो कि यह विश्‍व तुम्‍हारा भी है।” तुम्‍हारा ‘भी’ जोर-जोर से दस्‍तक दे रहा है – सभी के दिलों के दरवाजे पर। बहुत खलबली मचा रहा है सबके दिमाग पर। बहुत आगे आना चाह रहा है – मतलब सबसे आगे। तुम्‍हारी लड़ाई इसी ‘भी’ के लिए है। इसलिए इस ‘भी’ के साथ आगे बढ़ते हुए अपने वजूद के लिए हर रास्‍ता, कोना, दरो-दीवार, सड़कें, गलियां, आंगन, चौबारा घरती, आकाश तलाशो ओ लड़कियो!
दौड़ने के रास्‍ते बहुत हैं – छोटे भी, संकरे भी, बड़े भी। यह तुम्‍हें तय करना है कि तुम छोटे रास्‍ते पर चलकर झटपट सब हासिल करना या संकरे रास्‍ते पर चलकर वहां के एक-एक कंकड़-पत्‍थर बीनते हुए अपने साथ-साथ दूसरों का भी मार्ग प्रशस्‍त करना या बड़े रास्‍ते पर फर्राटेदार चलना पसंद करोगी? ध्‍यान रहे कि अपने आगे बढ़ने के रास्‍ते पर चलनेवाली तुम कानूनन बालिग हो गयी रहोगी ओ लड़कियो।
तय करते समय खुद ही तय करो कि अपने फायदे या जल्‍दी-जल्‍दी आगे बढ़ने के लिए अपनाये गये छोटे-छोटे रास्‍ते (शॉर्ट कट्स) तुम्‍हें कल किसी बड़ी मुसीबत में न डाल दें। उस समय तुम यह मत कहना कि तुम्‍हारा शोषण हुआ या तुम छली गयी। तीन साल तक तुम किस भ्रम में रही? क्या किसी का बलात्कार लगातार तीन साल तक होता रह सकता है? वह भी तब, जब कि तुम लिव-इन-रिलेशन में रहनेवाली एक आजाद औरत हो?
किसी तरह की साजिश के लिए इस्तेमाल की जाओ तो अपना हश्र भी सोच लेना कि क्या तुम उनके इस्तेमाल के बाद खुद दूध में पड़ी मक्खी की तरह तो नहीं निकाल फेंक दी जाओगी ओ लड़कियो!
अगर तुम जानबूझकर शोषित हो रही हो तो ध्‍यान देना कि इसके पीछे कहीं तुम्‍हारे अपने गणित तो नहीं? चाहे वे मर्जी के हों या मजबूरी के। कार्यस्‍थल पर या काम या कैरियर के बहाने तुम्‍हारा शारीरिक या मानसिक शोषण इसके तहत बड़ी आसानी से आ सकता है। अगर कोई तुम्‍हें लड़की होने के नाते फेवर कर रहा है तो यह खतरे की घंटी है। इसे अगर समझ रही हो तो उस पर अपनी काबिलियत का झूठा कोट मत पहनाओ ओ लड़कियो! हम सबको अपनी लियाकत का पता अच्छी तरह से रहता है।
अगर तुम्‍हें लगता है कि बेवजह तुम्‍हारा शोषण हो रहा है तो अपनी भी व्‍याख्‍या करो और अपने आसपास को भी देखो। क्‍या इस शोषण की तुम्‍हीं एक शिकार हो या अन्‍य भी! अपने सिक्‍स्‍थ सेंस के द्वारा इसे जानना कोई मुश्किल काम नहीं होता।
अपने शोषण के खिलाफ खुद लड़ना सीखो और इसके लिए सोच-समझकर रास्‍ता चुनो। अखबार, मीडिया, सोशल साइट्स यहां-वहां पर सभी तुम्‍हारे खुदाई खिदमतगार मिलेंगे, लेकिन तुम्‍हारे साथ-साथ चलने के लिए शायद ही कोई आए। चाहो तो आजमा भी लेना ओ लड़कियो!
हम तुम्‍हारे खाने-पीने, पहनने-ओढ़ने, घूमने-फिरने की किसी भी आजादी के खिलाफ नहीं। लेकिन कब, कहां और कैसे खाना-पीना, पहनना-ओढ़ना, घूमना-फिरना है, इसे तुम्‍हें ही तय करना होगा, जैसे किसी शोक सभा में हंसते हुए या शादी-ब्‍याह में रोते हुए नहीं जाया जाता।
अपने दिल-दिमाग-देह को कभी किसी के इतना हवाले मत कर दो कि तुम्‍हारा अपना कुछ बचा ही न रह जाए। विश्‍वास करो, अंधविश्‍वास नहीं। भक्ति करो, अंधभक्ति नहीं। प्रेम करो, अंधा प्रेम नहीं। और सबसे महत्‍वपूर्ण कि अपने स्त्रीपन को साजिश का जामा मत पहनाओ – चाहे वह दहेज हो या रेप। ध्‍यान देना! चार जंगली, वहशी मर्द तुम्‍हें जलाएंगे तो चालीस पुरुष तुम्‍हारे साथ खड़े भी होंगे। लेकिन, अपने सत्‍य-असत्‍य की जांच तुम्‍हें खुद करनी होगी। यह तो तुम जानती हो कि अच्छे काम में युग बीत जाते हैं, पर बुरे को बनते, बिगड़ते, फैलते देर नहीं लगती। एक झूठ को बचाने को लिए सौ झूठ बोलने होते हैं और इन झूठों से अपनी सच्‍चाई की परतें उधड़ने लगती है।
मुझे बरसों पहले पढ़ी सुदर्शन की कहानी ‘हार की जीत’ याद आती है, जिसमें डाकू खड़ग सिंह द्वारा अपंग बन कर बाबा भारती का घोड़ा छीन लिये जाने के बाद बाबा भारती डाकू खड़ग सिंह से कहते हैं कि ‘इस घटना की चर्चा किसी से मत करना, वरना लोगों का गरीबों पर से विश्‍वास उठ जाएगा।’
तुम भी अपने जुल्‍म के खिलाफ लड़ो, खूब लड़ो। लेकिन साथ-साथ अपने झूठ-सच की कुंजी अपने पास रखो, उससे किसी और का ताला न खोलो, न अपने ताले को खोलने की इजाजत दो, वरना कल को सचमुच में गरीब, मायूस, मजबूर, हालात की सतायी लड़कियों पर से लोगों का विश्‍वास उठ जाएगा और इसका सारा दोष भी तुम्‍हारे ही मत्‍थे आएगा। वैसे ही, जैसे बड़ी चालाकी से यह आरोपित कर दिया गया है कि ‘औरतें ही औरतों की दुश्‍मन हैं’ या ‘चूड़ि‍यां कायरता की निशानी है।’ इसलिए, अपना इस्‍तेमाल होने देने से पहले अपनी बल-बुद्धि का इस्‍तेमाल करो ओ लड़कियो!