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छम्मकछल्लो की दुनिया में आप भी आइए.

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Wednesday, September 26, 2007

फिन्लंद यात्रा

छाम्मक्छाल्लो आजकल फिन्लंद मे है। यह उसका सपना था कि वह बाहर घूमे, फायर, लोगो से मिले जुले। एक संयोग बना। ने कहा कि यहं छः महीने दिन और छः महीने रात होती है। मेरे मेजबान राजीव आचार्य ने बताया कि सर्दियों मे यहं २२ घंटे अँधेरा होता है। अँधेरा मतलब रात। सीधी सदी ज़बान में। भारत से समय में ढाई घंटे का फर्क है। मुंबई से लगभग ह घंटे मे हम यहाँ पहुंचे। आते ही तयशुदा कार्यक्रम के अनुसार हम एक स्कूल पहुंचे। यहाँ मायम बच्चों के लिए थिएटर वर्कशाप के साथ साथ अवितोको द्वारा समय समय पर जेल बंदियों के लिए आयोजित आर्ट वर्कशाप में उनके द्वारा बनाई पेंत्न्न्ग्स, ग्रीटिंग कार्ड्स आदि की प्रदर्शनी और अपने एक नाटक के शो के साथ आई हूँ। मुझे पता है, यह बड़ा मुश्किल काम है। मगर मुश्किल काम का पाना मज़ा भी है। ताने का प्रयास करेगी। बस अप अपनी राय भी देते रहें।
छाम्मक्छाल्लो को बचपन की एक बट याद आ रही है। उसके घर में एक ज्योतिषी आते थे। नाम था, वीर चन्द। बडे पहुंचे हुए। जो हुछ कहा, आजतक देखा कि लगभग सबकुछ सच निकला। मुझसे बड़ी बहन रीता के बारे में कहा था कि यह शादी के बाद भी पढेगी। सच तो यह था कि उसका पढने में मन ज़रा भी नहीं लगता था। हम सभी, यहाँ तक कि वह भी, ख़ूब हँसी थी। मुझे कहा कि यह सेहत से तनिक कमजोर रहेगी, आज तक हू। बडे भाई के बारे में कहा था कि इनका जीवन अस्थिर रहेगा। आजतक है। ज्योतिष में कोई विश्वास न होने के बावजूद उनकी बताई सारी बातें सच होने से कभी कभी लगता है कि कुछ है क्या इसमे? किसी ने कहा, इसमें बहुत लगन, मेहनत चाहिए। तोता धर्मी भविष्यवक्ता नहीं, जिनके खुद के भविष्य का पता नही। वीर चन्द जी ने कहते हैं कि अपनी एक आंख भगवती को सौंप दी थी इसे सीखने के ऐवज में। इसके लिए भी लोग कहते थे कि वे देवी के मंदिर में बैठ गाए और एक आंख देने का संकल्प किया और उस आंख की ज्योति अपने आप चली गई।
छाम्मक्छाल्लो यहा सब आपको इसलिए बता रही है कि उसे भी उनहोंने कहा था कि यह शादी के बाद पढ़ नहीं पाएगी। रीता ने तो शादी के बाद पता नहीं, कितनी डिग्रियाँ बटोरीं, मगर मैं एक पीएचडी तक नही कर सकी, शादी के बाद। उनहोंने यह भी कहा कि मैं अपने पति के बल पर विदेश जाऊंगी। साथ ही साथ, अपने बल पर भी। पति के बल पर तो चीन, हांगकांग हो ई, अब अपने बल पर फिनलैंड में हू। वीर चन्द जी आज नही हैं, मगर न चाहते हुए भी उनकी बतूं पर यकीन कराने को जी कराने लगता है। हाँ, एक बात उनहोंने और भी कही थी, लगन की, मेहनत की, परिश्रम की। रीता दी ने भी मेहनत की, उसे फल भी मिला। शायद मुझे भी। और मुझे लगता है आप सबको भी मिलता ही होगा।
फिनलैंड की बातें दूसरे दिन।

Monday, September 10, 2007

निज भाषा उन्नति

सितंबर का महीना सरकारी दफ्तरों के लिए खास महीना है, क्योंकी १४ सितंबर १९४९ में संसद ने केंद्र सरकार की राजभाषा के रूप में हिंदी को मान्यता दी थी.तब से १४ सितंबर हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है.तम्मं दफ्तर नाना आयोजनों से भर उठाते हैं-आज नहीं तो फिर नहीं की तरह.लेकिन सभी कार्यक्रम मनोरंजन प्रधान.किसी ने छाम्मक्छ्ल्लो से एक बार कहा था कि विचार अन्ग्रेज़ी में और मनोरंजन हिंदी में अच्छे लगते हैं, जैसे गाली वजनदार हिंदी में ही लगती है.इन आयोजनों से हिंदी का कितना भला होता है, यह तो नहीं पता, मगर सभी को अपनी पीठ थपथपाने का मौका मिल जाता है कि हिंदी के नाम पर हमने ये किया, वो किया।
छाम्मक्छ्ल्लो यह खबर पढकर अचरज में भर गई कि ब्रिटेन के प्रधान मंत्री गोल्डन ब्राउन उन्हीं को काम के लिए अपने यहाँ आने देंगे, जिन्हें अन्ग्रेज़ी का घ्यान है. छाम्मक्छ्ल्लो कहिस कि अपने देसी भाई तो इस न्यूज से बडे खुश हैं। अब वे तमाम हिंदी या एनी भारतीय भाषाओं के प्रेमियों को टाल थोक कर कह सकेंगे कि देखा लो, अगर अभी भी भविष्य सुधारना चाहते हो तो अपनी भाषा का चक्कर-वक्कर छोडो.कितना अच्छा फैसला ब्रिटेन के प्रधान मंत्री ने लिया है।
छाम्मक्छ्ल्लो सोच रही है कि आज जब अन्ग्रेज़ी अंतर्राष्ट्रीय भाषा के रूप में अपना दर्ज़ा हासिल कर चुकी है और दिन प्रतिदिन इसका उपयोग बढ़ ही रहा है, ऐसे में अपनी भाषा के प्रति चिंता क्यों? असल में यह चिंता केवल भाषा की नहीं, बल्कि अपनी संस्कृति की है.प्रध्हन मंत्री कहते हैं कि यहाँ आ कर काम करनेवालों को अँगरेज़ी का ज्ञान उन्हें हमारे संस्कारों और संस्कृति से जोडेगा.दूसरे हिस्से से आये लोग हमारी साझा राष्ट्रीय संस्कृति का हिस्सा बनेंगे।
छाम्मक्छ्ल्लो इस बात से प्रसन्न है. छाम्मक्छ्ल्लो कहिस कि अपने देश में भी अब ऐसा होगा.हम तभी आगे बध्हते हैं, जब हम किसी को आगे बढ़ता देखते हैं.भारत को योग अमरीका से आकर योगा बन जाता है तो आदरनीय हो जाता है.फिर भी वह आभिजात्य वर्ग तक ही रह पाटा है.वह तो गनीमत है बाबा रामदेव का कि उनहोंने इसे आम जन तक पहुंचा दिया.गोल्डन ब्राउन की तरह क्या हमारा देश यह सोचेगा कि अपनी भाषा की उन्नति से अपने संस्कार की उन्नति होती है, अपने मूल्यों की रक्षा होती है,अपना आत्मबल बढ़ता है. छाम्मक्छ्ल्लो किसी भी भाषा के खिलाफ नहीं।.वह बस अपनी भाषा की उन्नति चाहती है और चाहती है कि अंग्रेजीदां देश जब अपनी भाषा के माध्यामसे अपनी संस्कृति की बात करते हैं तो क्या हम नहीं कर सकते? आखिर कबतक हम अपनी ही हर चीज़ को ओछी नज़रोंसे देखते रहेंगे. छाम्मक्छ्ल्लो कहिस कि अब समय आ गया है भारतेंदु हरिश्चन्द्र के सपने को साकार कराने का कि
निज भाषा उन्नति अहई, सब उन्नति को मूल
बिनु निज भाषा घ्यान के, मितात न हिय को सूल.

Saturday, September 8, 2007

शिक्षक दिवस पर शिक्षा

अभी अभी हम सभी ने ५ सितंबर को शिक्षक दिवस मनाया है.छाम्मक्छाल्लो को याद है कि अपने बचपन में उसके स्कूल में यह दिवस बडे आदर और सम्मान के साथ मनाया जाता था.तब एक टिकट २५ पैसे का जारी होता था.सभी बच्चों के लिए उसे खरीदना अनिवार्य होता.एक से अधिक भी टिकट खरीदे जा सकते थे.टिकट से मिले पैसों से आर्थिक रूप से कमजोर शिक्षा या उनके परिवार की मदद की जाती थी। छाम्मक्छाल्लो खुद शिक्षक परिवार से है, इसलिए उसे पता है कि तब के शिक्षक आर्थिक रूप से कितने कमजोर होते थे। मगर उनकी इज़्ज़त बहुत थी।
छाम्मक्छाल्लो को याद है कि भारत पाकिस्तान के युद्ध के समय उस समय के प्रधान मंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने आवाहन किया था कि लोग हर सोमवार को एक शाम अनाज न खाएं.उस बचत से देश क जवानों की मदद हो सकती है, देश के आर्थिक विकास में मदद मिल सकती है.स्कूलों को यह काम दिया गया था।छाम्मक्छाल्लोapanii माँ से कहिस कि ऐसा होगा क्या? माँ ने कहा कि शास्त्री जी ने कहा है, तो ज़रूर होगा.स्कूल की सभी शिख्सिकाएं इस काम में जुटीं और छाम्मक्छाल्लो ने देखा कि उसके शहर के सभी बच्चे तक भी सोमवार की शाम उपवास पर रह गए.बच्चे तो शिक्षक की बात पर ही भूखे रह गए।
देश तो आज भी न जाने कितने संकटों से गुज़र रहा हां.क्या कोई शिक्साह इस तरह से आवाहन कर सकता है और बच्चे उनके आवाहन पर ध्यान देंगे और बच्चों के माता-पिटा भी बच्चों को इसके लिए प्रोत्साहित करेंगे?देश के दूसरे राष्ट्रपति एस राधाकृष्णन के जनमदिन पर मनाया जानेवाला शिक्षक दिवस कितने लोगों को अपने शिक्षक के बारे में सोचने पर मज़बूर करता है। कबीर ने भी गुरू के स्थान को ईश्वर से भी महान बताते हुए कहा है-
गुरू गोविन्द दोनों खडे, काको लागे पानी
बलिहारी गुरो आपने जिन गोविन्द दिए बताय।
गुरू की महिमा अपरम्पार है और हर व्यक्ति किसी न किसी से कुछ न कुछ सीखता है। न सीखने की कोई तय उम्र होती है, न सिखानेवाले की।छाम्मक्छाल्लो कहिस कि ऐसा मान लें तो गुरू का ज्ञान व घ्यान की विनम्रता अपने आप लोगों के पास आ जाती है.छाम्मक्छाल्लो ने अपनी माँ को ऐसा ही देखा और पाया.

Thursday, September 6, 2007

क्या करे vah

छाम्मक्छाल्लो को थिएटर से बहुत प्यार है.उसका मन करता है कि वह सारे दिन्बस थिएटर ही करती राहे।छाम्मक्छाल्लो जब पांचवी कक्षा में थी, तब अपने स्कूल में उसने एक नाटक में भाग लिया था। उस नाटक में उसका बस एक दृश्य था.वह सिपाही बना था और दूसरे पुलिस से स्वतंत्रता सेनानी को बचाने के लिए उसे कहा था कि वह भाग जाए.मगर आइन वक़्त पर वह इतनी घब्दायी कि अपना इकलौता संवाद ही भूल गयी। छाम्मक्छाल्लोkii माँ उस स्कूल की हेड मिस्ट्रेस थी। संभी छाम्मक्छाल्लो को भूल गाए और माँ को याद कराने लगे कि इन्हीं की बेटी नाटक में बोलना भूल गयी थी।छाम्मक्छाल्लो की माँ को इसतरह की दूसरी बातें भी सुननी पडती थीं, जैसे उनकी एक और बेटी मेरी गो राउंड में बैठाकर ऊपर से दर के मारे चिल्ला पडी थी। तब भी सभी ने उन्हें ही कहा। सभी उन्ही से पूछते- आपकी ही बेटी चिल्लाई थी?
छाम्मक्छाल्लो कहिस कि हमारी आदत है कि हम एकदम से अपने को अपने से मज़बूत के साथ जोड़ देते हैं.अब नाटक की ही बात करें तो छाम्मक्छाल्लो की माँ को उसकी वज़ह से सुनाना पडा था.तब छाम्मक्छाल्लो बरी लजाई थी कि उसके कारण उसकी माँ को सुनाना पडा.अब वह लजा रही है कि काश उस समय उसे बोलना आता तो वह कहती कि मुझे कहो, डायलाग मैं भूली थी.लेकिन इस बात से छाम्मक्छाल्लो ko itanaa फ़ायदा ज़रूर हुआ कि अब उसे बहुत सी बातें याद रहने लगी हैं और वह यह कहने भी लगी है कि भाई मेरे, जिसकी बात हो, उसे कहो, वरना चुप रहना ज़्यादा अच्छा है।छाम्मक्छाल्लो कहिस किअब उसका दूसरा नाटक तैयार है, जिसे याद करने में वह महीने भर से जुटी हुई है.इसके लिए उसे डांस भी सीखना है.इसके पहले वह एक नाटक और कर चुकी है और उसे इस बात का संतोष रहा कि वह अपने संवाद नहीं भूली.काश कि माँ होती और वे लोग भी.माँ को अच्छा लगता, बाकियों को ...पता नहीं।छाम्मक्छाल्लो कहिस कि बाकियों की परवाह करना हम कब भूलेंगे?

Wednesday, September 5, 2007

छाम्मक्छाल्लो कहिस

छाम्मक्छाल्लो कहने को तो छमकती फिरती है, मगर बिना मतलब नहीं.वह यहाँ वहां की चीजें देख परख रही है। समय समय पर वह आपको अपनी देखी परखी चीजों, बातों, घटनाओं से अवगत कराती रहेगी.इसमें समय है, साहित्य है, दीं है, दुनिया है, मतलब इस जहाँ की हर वह चीज़ है, जिससे उसका वास्ता पङता रहता है और उसे यकीं है कि आप भी इन सबसे दो-चार तो होते ही होंगे.आपकी सहमति- असहमति दोनों ही उसे एक जैसी खुशी देगी.उसे दुख अगर पहुंचेगा तो सिर्फ इस बात से कि आपकी टिप्पणी उस तक नहीं पहुची.