chhammakchhallokahis

रफ़्तार

Total Pageviews

छम्मकछल्लो की दुनिया में आप भी आइए.

Pages

www.hamarivani.com
|
Showing posts with label बलात्कार. Show all posts
Showing posts with label बलात्कार. Show all posts

Wednesday, December 19, 2012

देवी और बलात्कार


लड़की,
मत निकलो घर से बाहर।
देवियों की पूजावाला है यह देश।
हम बनाते है बड़ी-बड़ी मूर्तिया, देवी की-
सुंदर मुंह,
बड़े- बड़े वक्ष
मटर के दाने से उनके निप्पल,
भरे-भरे नितंब
जांघों के मध्य सुडौल चिकनाई।
उसके बाद ओढा देते हैं लाल-पीली साड़ी।
गाते हैं भजन- सिर हिला के, देह झूमा के।
लड़की,
तुम भी बड़ी होती हो इनही आकार-प्रकारों के बीच।
दिल्ली हो कि  बे- दिल
तुम हो महज एक मूर्ति।
गढ़ते हुए देखेंगे तुम्हारी एक-एक रेघ
फिर नोचेंगे, खाएँगे,
रोओगी, तुम्ही दागी जाओगी-
क्यों निकली थी बाहर?
क्यों पहने तंग कपड़े?
क्यों रखा मोबाइल?
लड़की!
बनी रहो देवी की मूर्ति भर
मूर्ति कभी आवाज नही करती,
बस होती रहती है दग्ध-विदग्ध!
नहीं कह पाती कि आ रही है उसे शर्म,
हो रही है वह असहज
अपने वक्ष और नितंब पर उनकी उँगलियाँ फिरते-पाते।
सुघड़ता के नाम पर यह कैसा बलात्कार?
लड़की- तुम भी देवी हो-
जीएमटी हो कंचक,
पूजी जाती हो सप्तमी से नवमी तक
लड़की-
कभी बन पाओगी मनुष्य?




Monday, October 8, 2012

ई देस है वीर बलात्कारियों का, इस देश का यारो किया कहेना!


हे लो। फिर हिंदुस्तान के वीर बहादुर लोग सब अपने देश की महान संस्कृति का पालन करते हुए एगो इज्जत लूट गिया। फिर एगो इज्जत लुट गिया। फिर एगो जान चला गिया। फिर टीवी अखबार का मौसम आ गिया। फिर माई-बाप लोग के गरीब के घर आने-जाने का दिन आ गिया। गाँव में मेला लगेगा। ठेला लगेगा। कुछ ठेलाएंगे, कुछ बिकाएंगे, कुछ सेरांगे, कुछ गरमाएंगे। फिर ताबतक में कौनों आउर बात आ जाएगा, फिर सब उसको भुतिया जाएंगे। फिर कोनो एगो माई-बाप के पच्छ में बोल गिया। फिर कोनो चार गो उसके खिलाफ उगिल गिया।
माई-बाप तो माई-बाप है। लोग और को सरमो नहीं आता है उसको उछन्नर करते हुए। आपलोग कहियो अपना बूढ़ा गए माय-बाप को एतना तंग करेंगे? ईहो तहमरे माए-बाप सब है न। एकके गो तो मौका मिलता है अपना माय-बाप भोट दे के अपने से चुनने का। भगवान तो देता नही है। बस, डिक्टेटर जैसा अपना टेंट में से माई-बाप निकालता है आ बाल-बच्चा सबको पकड़ा देता है। ले रे अभगवा, ले!
ई माई-बाप आजकल बहुते - बहुते रूप मे बदल गिया है। मुनसी, मोकदमा, लाट, खाप, बाप। हे, सुने, एगो बाप कह रहा था- लडिका-लड़िकी का बियाह का ऊमीर कम कर दो। हे, हे हे हे...! छम्मकछल्लो का तो खुसी से दमे फूल गिया। कम क्या! जनमते ही कर दो। जनमते ही उसको बता दो, देखो रे बबुआ, तुम्हारा जनम पढ़ने-लिखने, कुछ करने के लिए नही हुआ है। उसके लिए देश-बिदेश में बहुत पगला लोग सब बैठा हुआ है। तुम तो जनमते बियाह रचाओ, आ डूब जाओ रंग-रभस में, जिससे कि तुम्हारे जीसीम की आग सेराती रहे आ आगे तुम किसी के इज्ज़त लूटने जैसा काम मत करना। जैसे एक बेर कोनो एगो बाप बोले थे कि गाँव में सबको टीवी दे दो। लोग देर तक टीवी देखेंगे तो देर से सोएँगे। देर से सोएँगे तो उत्पादन के काम में नहीं लगेंगे। आ देश की जनसंख्या में इजाफा नही होगा। बिदियार्थी सबको जनसंख्या रोकने में टीवी का महत योगदान जैसा बिसय देना चाहिए, निबंध लिखने के लिए।
छम्मकछल्लो को तो अभिए से बियाह का सब गीत मोन पड़ने लगा- बेटा का है तो गाओ- साजहु हो, बाबा मोर बरियतिया। बेटी का है तो पाया के ओटे गे बेटी, क्यों गे खड़ी, अपना बाबा के मुंह देखि, रोने लगी।
बेटी सब का मुंह ऐसे ही बनरचोथ जैसा होता है। जिसको देखती है, रोने लगती है। बाप को भी आ बलात्कारी को भी। एक बाप बनकर बोलता है, लड़की पर सिक्कड़ कस दो। फिलिम में ताला मार दो। छम्मकछल्लो ताला, सिक्कड़ लेकर हाजिर। हो हमारे बाप-भाई। हम सब तो तुम्हारे ही बाग की चिड़िया हैं। मार दो, काट दो। तनिको न कुछ बोलेंगे। बेटी जनम मुफ़त में थोड़े न लिए हैं।
लबरघोघवा सब जीभ लपलपाता कहता है- लड़की है रे! छम्मकछल्लो हुआं भी कहती है- हाँ रे, हैं ना। अब जो करना है, कर लो। इज्ज़त लूट लो, नंगा नचा दो, कसम धरा लो जो हम कुच्छो बोले तो! हम कुच्छो बोले न तो चाहे जलती चिता में से, चाहे गाड़े गए कबर में से हमरी लाश निकाल कर उसका फिर से इज्ज़त लूट लेना। कमाल है भाई। ऊ सब बड़का लोग सब होता है। हम लड़की सबका औकाते कौन जो कुछो बोलें? ऊ लोग का लूटने का काम- ऊ लोग करे। हमारा लुटने का धंधा- हम करें। मामिला एकदम फरीच्छ! बूझे कि नहीं? धुर रे बुड़बक। लगता है तू भी किसी का इज्ज़त उतारिए के आवेगा अभागा नहितन!  
एगो बोलता है- साजिश है। छम्मकछल्लो कहती है, जी माई-बाप, एकदम है। एगो बोलता है, राजा को गद्दी से उतार दो। छम्मकछल्लो कहती है, ना माई-बाप। क्या फायदा? आप गेरन्टी दोगे कि आप राजा बनकर आओगे तो हमारी इज्ज़त हिफाजत से रहेगी। अपने लिए तो तुलसी बाबा कहिए गए हैं- कोऊ नृप होही, हमें का हानी, चेरी छांड़ि की होयब रानी?
लेकिन, ई इज्ज़त का भी ग्रेडेसन होता है, छम्मकछल्लो को पता चलता है। इसलिए, जब –जब इज्ज़त लूटने का बात आता है वो लड़की का बिशेषन लगाना नाही भूलता- मुसलमान लड़की, दलित लड़की। छम्मकछल्लो को अककिल तो है नहीं। उसको लगता है, ज़रूर इज्ज़त उतारने का तरीका या इज्ज़त जाने का तरीका ई सब बिशेषन लगाने से बदल जाता है। औरत का इज्ज़त तो आइयसे जाता है सो तो जाता अही है, ई सब बिशेषन लगा के और क्या मिलता है, छम्मकछल्लो यही पूछना चाहती है- इज्ज़त उतारनेवाले से भी और उस इज्ज़त का चीर-फाड़ करवाले से भी।   

Wednesday, July 22, 2009

आइये, हम बलात्कार के लिए प्रस्तुत हैं.

आइये, हम बलात्कार के लिए प्रस्तुत हैं. छाम्माक्छाल्लो फिर से बहुत प्रसन्न है. वह प्रसन्न है की माननीय उच्चतम न्यालालय ने एक मानसिक रूप से विकलांग लड़की के माँ बनाने के अधिकार को सुरक्षित रखा. वह लड़की माँ इसलिए नही बन रही है की उसकी शादी हुई है और विवाह बंधन में बंध कर वह माँ बनने जा रही है. जी नहीं, हमारा समाज इतना उदार नही है की वह किसी ऎसी लड़की से अपने होनहार, बीरावान के हाथ पीले कर दे, न ही हमारे ऐसे वीर-बाँकुरे हैं जो इस तरह की लड़कियों के हाथ थाम ले. गिने-चुने उदाहरण हो सकते हैं. मगर यह हमारा देश और इसके नागरिक जबरन कुछ भी लेने में अपनी वी़रता समझते हैं. चाहे वह किसी का कुमारी हो, किसी का मान हनन हो या कुछ और. अखबार में छपी खबर के मुताबिक वह लड़की चंडीगढ़ के नारी-निकेतन में रहती थी और वहा उसके साथ रैप किया गया. यह कितनी खुशी की बात है. रक्षण स्थाlii पर शिकार. शिकारी कितने वीर-भाव से वहा गया होगा औए उसने उस लड़की को अपना निशाना बनाया होगा. वह उतने ही उन्नत भाव से वहां गया होगा की वह लड़की तो मानसिक रूप से विकलांग है. अगर उसकी अपनी भाषा में कहें तो पागल. पागल लड़की को पत्नी नही बना सकते, मगर उसे भोग तो सकते ही हैं. उसने यह भी दया दिखाई होगी की उस बिचारी से कोई शादी तो करनेवाला है नही, तो बिचारी जन्म भर ऐसे ही इस एक सुख से वंचित रह जायेगी. तो क्यों न एक पंथ दो का किये जाएँ. उस लड़की की आत्मा की भी शान्ति और अपनी वासना की भी पूर्ती. अब यह दूसरी बात हो गई की उन महानुभाव के कृत्य के कारण लड़की बिचारी गर्भवती हो गई. लड़कियां भी बड़ी उर्वरक होती हैं. (सरकार कोकही तो रोक लगानी चाहिए). जहां रोक लगाने की बात है, सरकार इतने एड्स के दर दिखाती है, उससे बचने के किये कंडोम के इस्तेमाल की सलाह देती है. अप्रत्यक्ष रूप से वह यह भी कहती है की इससे अनचाहे गर्भ से बचाव हो सकता है. मगर लोग हैं की वह सभी के नेक इरादे पर पानी फेरते रहते हैं. छाम्माक्छाल्लो को उस भाई साहब पर बड़ा तरस आता है. अब रह गई बात उस लड़की की. मानसिक रूप से अपांग है, इसलिए लोगों ने सोचा की वह माँ बनाए लायक नहीं. उपभोग के लायक है. यह समाज का जाने कौन सा वर्ग है, लोग हैं, जो एक स्त्री की कुदरती पूर्ती को नकारते हैं. उसे रैप किया जा सकता है, मगर उसे माँ नहीं बनने दिया जा skataa. छाम्माक्छाल्लो को इस बात पर भी hairaanii होती है की आज कल लोग हर बात के लिए सुप्रीम कोर्ट की गुहार लगाने लगते हैं. माँ बनाना किसी भी लड़की का जन्म सिद्ध अधिकार है. प्रकृति ने यह तय नही किया है की वह माँ कैसे बनेगी? यह समाज के अपने नियम हैं और अपनी बंदिशें. हर बात की तरह इसे भी लड़की पर ही थोपा जाता है. बलात्कारी तो कहा होगा, मालूम नहीं, मगर गाज लड़की पर गिर रही है. छाम्माक्छाल्लो इस बात से भी प्रसन्न है की बलात्कार तो हमारे हिन्दू धर्म का एक हिस्सा है. उसे लगता है की बलात्कार करके उस महामानव ने हिन्दू धर्म की रक्षा ही की है. यह न कहियेगा की हिन्दू धर्म में ऐसा नही है. हम बचपन से यह कहानी पढ़ते आये हैं सटी वृंदा का शील भगवान विष्णु ने उसके पति का रूप धरकर भंग किया था. इसका पता चलने पर वृंदा ने उन्हें शाप दे दिया था और वे सालीग्राम बन गए थे. गौतम ऋषि की पत्नी अहल्या का शील भंग देवताओं के राजा इन्द्र ने ही किया था. (सोचिये एक राजा का कृत्य). इसका भी पता चलने पर गौतम ऋषि ने इन्द्र को सहस्त्र योनी का शाप दिया था, जिसे इन्द्र के अनुरोध पर सहस्त्राक्ष में बदल दिया गया था. इसमें भी इन्द्र ने गौतम ऋषि का ही रूप धारण किया था. इससे एक बात तो पता चलती है की स्त्रिया अपने पति के अलावा और किसी के बारे में नहीं सोचती थीं, इसलिए उनका शील भंग करने के लिए उनके पति का रूप धारण करना देवताओं की मज़बूरी होजाती थी. छाम्माक्छाल्लो इसलिए भी प्रसन्न है की हम अपने धर्म की रक्षा का पालन बड़ी निष्ठा से कर रहे हैं. लड़कियों का क्या है? वे तो होती ही हैं इन सबको झेलने के लिए. जभी तो प्रकृति ने भी उसकी संरचना ऎसी कर दी. अब प्रकृति से तो कोई नही लड़ सकता न. इसलिए, हे महानुभावो, आइये, हम सभी हम सभी लूली, लंगडी, कानी, अंधी, पागल, विक्षिप्त- आप सभी के लिए प्रस्तुत हैं. आप तोहम पर अहसान कर रहे हैं, हमें हमारी देह और उसकी ज़रुरत और उसकी पूर्ती से वाकिफ करा रहे हैं. हम सचमुच आपके आभारी हैं। आइये, बार-बार आइये।