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Thursday, April 16, 2020

खिस्सा कहे खिसनी

"खिस्सा कहे खिसनी"- माने कथा वाचिका- The She Storyteller! 

"खिस्सा कहे खिसनी" मिथिला की एक सुदीर्घ परंपरा है। बल्कि, यह पूरे विश्व की परंपरा है- किस्सागोई। सभी के पास किस्से होते हैं। लेकिन, दादी-नानी की पोटली से निकले किस्सों का कोई जवाब नहीं। वे हमारे बचपन की स्मृतयोन की धरोहर होते हैं। इन किस्सों से हमें अपनी कल्पना लोके के विस्तार का अनुभव मिलता है। बल्कि, आप जानते ही हैं और अनुभव किया भी होगा अकि इन किस्सों को सुनते -सुनते हम सो जाया कराते थे।

इन किस्सों का असली तत्व  क्या है? कथ्य के अलावा इसके प्रस्तुतीकरण का तरीका। दादी-नानी अपनी स्वाभाविक त्वरा में इन किस्सों को सुनाती थीं। पढ़ भी सकते हैं। क्योंकि अभी भी ढेर सारे किस्से मौखिक स्तर पर ही हैं। लेकिन देखने का जो आनंद है, वह अलग ही है।

मैं मिथिला की लोक कथाएँ संग्रहित करने का काम 1995 से ही कर रही हूँ। इस क्रम में लगभग तीस कहानियों का संग्रह "मिथिला की लोक कथाएँ" शीर्षक से प्रकाशित हुई हैं। यह संग्रह अब ऑन लिने रूप में notnul.com से भी प्रकाशित है।

आज देखिये और सुनिए उसी संग्रह से एक खिस्सा- "साध रोये के"- बोले विभा-30 में। अच्छा लगे (वो तो लगेगा ही। यह मेरा आप पर सहज विश्वास है) तो लाइक, subscribe, शेयर व कमेन्ट जरूर करें।