chhammakchhallokahis

रफ़्तार

Total Pageviews

छम्मकछल्लो की दुनिया में आप भी आइए.

Pages

www.hamarivani.com
|

Monday, October 21, 2013

विधवा जीवन की विडम्‍बनाओं का ‘बिम्‍ब–प्रतिबिम्‍ब’

http://www.news.bhadas4media.com/index.php/dekhsunpadh/1877-2012-11-22-05-26-07
भडास फॉर मीदिया मैं लगभग एक साल पहले छपी एकल नाटक "बिम्ब-प्रतिबिम्ब" की समीक्षा. इस नाटक सहित अन्य एकल नाटको ‘मैं कृष्‍णा कष्‍ण की’ तथा ‘भिखारिन’ को आप यू -ट्यूब पर भी देख सकते हैं. लिंक है-

वर्धा : एकल अभिनय के क्षेत्र में चर्चित चेन्‍नई की सुश्री विभा रानी इलाहाबाद आई तो इलाहाबाद विश्‍वविद्यालय के नाट्य कला व सिनेमा संस्‍थान के सभागार में दर्शकों की भारी भीड़ जुट गई। विभा ने एक साथ कई पात्रों की भूमिका अदा कर सबको चौंका दिया। आयोजन था-महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय, वर्धा के इलाहाबाद क्षेत्रीय केंद्र द्वारा आयोजित ‘बिम्‍ब-प्रतिबिम्‍ब’ की प्रस्‍तुति। विभा रानी का अभिनय देख खूब तालियां बजी। ‘मैं कृष्‍णा कष्‍ण की’ ‘एक नई मेनिका’ ‘भिखारिन’, ‘बलचंदा’ जैसी प्रस्‍तुतियों के लिए जानी जाने वाली विभा रानी ने बहुचर्चित एकल नाटक ‘बिम्‍ब-प्रतिबिम्‍ब‘ पर भी खूब वाहवाही बटोरी। उन्‍होंने इस एकल नाट्य में एक विधवा स्‍त्री के जीवन की विडम्‍बनाओं के विविध रूपों को प्रस्‍तुत किया। बचपन में न तो शादी बस में थी और न ही पति की जिंदगी ही, फिर क्‍यों बुच्‍चीदाई को विधवा होने का दंश झेलना पड़ा। क्‍या बचपन में ही लड़के की शादी हो जाए और उसकी पत्‍नी का जल्‍दी निधन हो जाए तो क्‍या लड़के को समाज शादी नहीं करने देगा?

लड़की और लड़के के प्रति समाज का यह दोगला नजरिया क्‍यों? यह सवाल विभा रानी ने अपनी प्र‍स्‍तुति ‘बिम्‍ब-प्रतिबिम्‍ब‘ में किया। उन्‍होंने एकल अभिनय के जरिए एक विधवा की आकांक्षाएं और उसके प्रति समाज के नजरिए को भी दर्शाया। इलाहाबाद केंद्रीय विश्‍वविद्यालय के कला एवं सिनेमा संस्‍थान के प्रेक्षागृह में इस नाटक का मंचन हुआ। यह नाटक अलग-अलग परिस्थितियों में पली-बढ़ी दो महिलाओं की कहानी है। नाटक में पांच साल में ही शादी के बाद विधवा हो चुकी बुच्‍चीदाई की व्‍यथा और पारिवारिक संबल की बदौलत अपनी जिंदगी को नया रूप दे चुकी 23 वर्षीय वंदना झा की कहानी बयान की गई है। जहां बुच्‍चीदाई को दोबारा शादी करने की अनुमति नहीं मिली तो वहीं वंदना को पति की मौत के बाद अपनी जिंदगी संवारने के लिए पारिवारिक सहायता मिली। इन सबके बीच नैतिकता का लबादा ओढ़े संपादिका कविता प्रधान का भी चरित्र है। विभा रानी ने अपने एकल अभिनय से दर्शकों को बांधे रखा। कभी संवेदना तो कभी हास्‍य के बीच झूलते दर्शक नाटक का आनंद लेते रहे।

नाटक के अंत में इलाहाबाद केंद्र के प्रभारी एवं कार्यक्रम के संयोजक प्रो.संतोष भदौरिया ने विभा रानी को पुष्‍पगुछ भेंट कर उ.प्र. के प्रयाग नगर में पहली प्रस्तुति पर स्‍वागत किया। उक्‍त कार्यक्रम में प्रमुख रूप से ए.ए.फातमी, हरिश्‍चन्‍द्र अग्रवाल, रामजी राय, के. के.पाण्‍डेय, मीना राय, असरार गांधी, संजय श्रीवास्‍तव, अजय ब्रह्मात्‍मज, रश्मि मालवीय, अशरफ अली बेग, सीमा आजाद, नीलम शंकर, विश्‍वविजय, फखरूल करीम, सुषमा शर्मा, अनिल रंजन भौमिक, निशांत सक्‍सेना, पूर्णिमा, बृजेश शुक्‍ला, सहित तमाम नाट्य एवं संस्‍कृति प्रेमी उपस्थित रहे।

2 comments:

Nitish Tiwary said...

bilkul sahi likha h aapne.
mere blog par aapka swagat h
http://iwillrocknow.blogspot.in/

Vibha Rani said...

धन्यवाद नितीश. लिखते व बढते रहें.