मां तुम काम करो
खेत में, खलिहान में
स्कूल में, मैदान में,
दफ्तर में , दुकान में,
तुम्हारा काम, हमारा विश्वास
पढने का, आगे बढने का
अच्छा सीखने का, अच्छा कमाने का
तुम काम करो मां!
रोती तो पक ही जाएगी,
भात भी सिंझ ही जाएगा,
फर्श भी साफ हो ही जाएगा
जाले- धूल भी निकल ही जाएंगे
राधा मौसी, रम्भा काकी
सरला दीदी, शांति मौसी बनने से बचने के लिए
तुम काम करो मां!
होते रहेंगे विधवाघर आबाद
बनती रहेंगी यातना घर की जीवंत दास्तान
छेदते रहेंगे लोग आंखों से घर के दरवाज़े, खिडकियां
गढते रहेंगे किस्से कहानियों की झालरें, बंदनवार
हम एक समोसे, एक जामुन, एक अमरूद के लिए
ताकते रहेंगे चचेरे –ममेरे भाई-बहनों को
पडोस के चाचाओं, ताउओं को
डिवोर्सी होना इतना आसान नहीं होता मां
मेरे कल के कॉल लेटर के लिए
तुम आज काम करो मां!
किसी के सामने हाथ न फैलाने के लिए
किसी को दान देने के लिए
किसी के इलाज के लिए
किसी की मदद के लिए
किसी बच्चे को पढाने के लिए
किसी बिटिया को सजाने के लिए
किसी का घर बसाने के लिए
किसी का वर सजाने के लिए
तुम काम करो मां!
अपनी आज़ादी के लिए
चार पैसे बिना पूछे खर्चने के लिए
मनपसंद कपडे या चप्पल खरीदने के लिए
होटल बिल खुद से चुकाने के लिए
सबकुछ ठीक रहने पर भी
अपने ज़िंदा रहने के लिए
अपने होने के अहसास के लिए
तुम काम करो मां!
7 comments:
माँ तुम काम करो....
माँ तो हमेशा काम करती ही है..पर आप यहाँ उनको धन उपार्जन के लिए प्रेरित कर रही हैं ...समाज में अपनी पहचान बनाने की प्रेरणा दे रही हैं ...ऐसा ही
मुझे एहसास हुआ...
बहुत संवेदनशील रचना ..
जी संगीता जी, मैं ऐसा ही कह रही हूं. अपनी आर्थिक आज़ादी के लिए, अपनी पहचान के ले, अपने मन से बिना किसी पर निर्भर हुए बिना.
माँ तुम काम करो :)
अधिकतर एक बिटिया अपनी माँ के नक़्शे कदम पर चलती है ,और ऐसे में अगर माँ निखरी हो, स्वाभिमानी हो ..तो लड़की में इन गुणों का संचार आपही होता है .
मंगलवार 10 अगस्त को आपकी रचना ... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है .कृपया वहाँ आ कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ....आपकी अभिव्यक्ति ही हमारी प्रेरणा है ... आभार
http://charchamanch.blogspot.com/
संगीता जी, खुशी हुई. परंतु इस मंच पर कैसे आया जा सकता है, इसकी जानकारी दें. आप मुझे पर सम्पर्क कर सकती हैं.
सही बयां किया है, हर हाल में कमाना है चाहे वो जिन्दगी किसी भी जद्दोजहद से लड़ कर जूझ कर कमाना पड़े. खुद मजबूत खड़े होकर ही तो अपने बच्चों को एक मजबूत दीवार बन कर खड़ा होने की प्रेरणा और सहस दे पायेंगे. बहुत सुन्दर लिखा है
http://charchamanch.blogspot.com/2010/08/241.html
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