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Wednesday, February 18, 2009

जेल में वकालत -- राजेन्द्र बाबू की.

२२ सालों की छोडी हुई राजेन्द्र बाबू की वकालत जेल में फ़िर से चमक उठी। हुआ यूँ की उन दिनों छोटे-मोटी झगडों को भी राजनीतिक रंग दे दिया जाता था और कम या कच्चे सबूतों पर भी लम्बी-लम्बी सजाएं सूना दी जाती थीं। कोई- कोई तो आजीवन कैद की सज़ा तक सूना देते थे। बाहुत बार तो गरीब कैदी के पास साधन ही नहीं होते थे की वह आगे की अदालत में अपील कर सके। या फ़िर अपील हो भी गई तो अच्छे वकील कर ही लें। अब जो मुकदमे चल रहे होते, खासकर राजनीतिक कैदियों के, उनमें राजेन्द्र बाबू को बहुत प्रकार की अर्जियां लिखना, सफाई के प्रमाणों का विश्लेषण करना, अपील की दरख्वास्तें लिखना आदि शामिल थे। बाद में तो कई जेलर भी ऐसे मामले सामने लाकर उनकी सलाह सफाई- पक्ष के वकीलों के पास भिजवा देते। दुखी कैदियों तथा उनके घरवालों की सेवा करके राजेन्द्र बाबू को बड़ा संतोष मिलता।
एक मनोरंजक केस था। एक ६० साल के बूढे पर आरोप था की वह दो-ढाई मन भारी बोरी पीठ पर लादकर, बरसात में खेत की मंदों पर भाग खडा हुआ था। एक मील तक पीछा कराने के बाद ही पुलिस उसे पकड़ सकी थी। वह बूढा बमुश्किल लानागादाकर चल पाटा था। उसके हाथों की उंगलियाँ मुड़ती नहीं थीं, मुट्ठियाँ बंधती नहीं थीं, फ़िर भी इस आरोप पर उसे लम्बी सज़ा हो गई थी। राजेन्द्र बाबू के बताये उपाय से अपील कराने पर हाई कोर्ट ने मान लिया की कैदी के लिए असंभव था की वह बोरी पीठ पर उठा सके और पीठ पर लादकर भागना तो एकदम असंभव था।
लगभा ३ वर्षों के जेल-जीवन में दया की अपीलें लिखने, खून के मामलों की असली बातें अभियुक्तों के मुख से सुनाने तथा उनके कागजात से यह जानने के बहुत से अवसर मिले की किस प्रकार अदालत में सच को झूठ और झूठ को सच साबित किया जाता है। संभवत: यही कारण रहा होगा की राष्ट्रपति बनने के बाद दया की अपीलों, फँसी को आजीवन कारावास में बदलने के फैसलों पर वे बहुत गौर देते थे तथा उन सबकी बड़ी बारीकी से निरीक्षण कराने के बाद ही वे कोई निर्णय लेते थे। दो-एक केस में उनहोंने अभियुक्त के बचाव पक्ष में उन्हीं कागजों में से वे बातें खोज निकाली थीं, जिन्हें सफाई के वकील तथा जज सभी नज़र- अंदाज़ कर गए थे और इस प्रकार से उन दण्डित अभियुक्तों के प्राण बचे थे।
जेल की अपीलों से जिनके प्राण बचे थे, उनमें से एक थे फतुहा के सिराजुद्दीन दर्जी। इन पर दो गोरों के क़त्ल का जुर्म लगाया गया था। अदालत की और से उसे फांसी की सज़ा सुनाई गई थी।

2 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

राजेन्द्र जी के बारे में अच्छी जानकारी दी है।आभार।

अनुनाद सिंह said...

भारत को राजेन्द्र बाबू पर गर्व है!