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Monday, October 6, 2008

अनोखी स्मरण शक्ति- राजेन्द्र बाबू की

बट १९३९-४० की है। नेता जी के कांग्रेस से त्यागपत्र देने के बाद राजेन्द्र बाबू सभापति चुने गए थे। कई कारणों से उन्हें यह पद स्वीकार्य न था। फ़िर भी, इस पद पर उन्हें काम करना पडा। तब वे पटना के सदाकत आश्रम में थे। एक दिन दोपहर के भोजन के बाद आधा घंटा के विश्राम के बाद वे अपाने तत्कालीन सचिव श्री चक्रधर शरण के छोटे से कमरे में गए और आलमारी खोल कर कुछ खोजने लगे। पूछने पर पाता चला कि जिन्ना का पत्र किसी फाइअल में होना चाहिए। आज के समाचार पत्रों में उनका एक बयान आया है, जिसका उत्तर देना आवश्यक है। चक्रधर जी के लौटने तक नही रुका जा सकता। इसलिए राजेन्द्र बाबू ने अपनी स्मृति पर भरोसा करते हुए पत्र देखे बिना ही उत्तर लिखने का निरणय किया।
उन दिनों सदाकत आश्रम में बिजली नहीं थी। लहभग १ घंटे में दैनिक समाचार पत्र के डेढ़-दो कॉलम के आकार का उत्तर तैयार हुआ। पटना के पत्रकार- संवाददाता बुलाए गए और उन्हें प्रेस की प्रतिलिपि दी गई। jinnaa
साब के यहाँ दफ्तर बहुत ही कुशलता से काम करता था। सभी कागजात बहुत संभालकर रखे जाते थे। इसलिए जिस पात्र की ज़रूरत परती, मानत क्या, सेकेंड में हाज़िर हो जता। ऐसे व्यक्ति को उत्तर देने में सबसे बड़ा काम होता है पिछले पत्रों को बार बार पढ़ लेना, ताकि उत्तर देने में कोई छिद्र न निकल सके। परन्तु राजेन्द्र बाबू ने अपनी स्मरण शक्ति के भरोसे जिन्ना साब को जवाब दिया था। पर उस पात्र को पढ़ने के बाद जिन्ना साब को ऐसा कुछ भी कहने का मौका न मिला की उस पात्र में अमुक विषय को छोर दिया गया है या अपने मन से कुछ जोर दिया गया है।

1 comment:

Udan Tashtari said...

बहुत अच्छा लगा पढ़कर.