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Wednesday, October 9, 2013

रेप नहीं, तंदूर नहीं, उम्र नहीं, कसूर नहीं।


छम्मकछल्लो को एक बार फिर प्यार आ गया, देश की कानून और न्याय व्यवस्था पर। उसकी समझ मे आ गया कि इस देश की औरते कैलेंडरों में देवी भले बन जाए, भले उनके बाल- स्वरूप का कन्या- पूजन कर दिया जाए, सच तो यह है कि वह हर हाल में ऐसी भेड़ है, जिसे हर हाल में भेड़िये का शिकार बनना है। वह चाहे नैना साहनी को तंदूर में जलानेवाला वयस्क सुशील शर्मा हो या निर्भया/दामिनी पर वहशियाना जुल्म ढानेवाला अवयस्क, रुचिका को अवयस्क उम्र में मौत को गले लगाने को मजबूर करनेवाला अधिकारी राठौड़ हो या चलती ट्रेन में मानसिक विकलांग के साथ बलात्कार करनेवाला तथाकथित मर्द! यह ताकत नहीं, हिमाकत का प्रदर्शन है, मातृ सत्ता से पितृ सत्ता में अधिकार के हस्तांतरण का प्रबल प्रदर्शन है! यह लड़कियों के सपने देखने की सजा है। पितृ सत्ता कहती है, हम दुर्दमनीय हैं। हमसे डरो वरना नैना बनो। हमें दस द्वार घूमने की आजादी है, कही भी, किसी भी जगह मुंह मारने का अधिकार है, मगर तुमने पलक भी उठाई तो हम और हमारा तंदूर तुम्हारे स्वागत के लिए तत्पर है।   
 
छम्मकछल्लो रेयरेस्ट ऑफ रेयर की परिभाषा समझने में मरी जा रही है। क्या हो सकती है आखिर इसकी परिभाषा? प्रियदर्शिनी मट्टू कांड में भी कहा गया था कि उसका रेप और रेप के बाद की गई उसकी हत्या रेयरेस्ट ऑफ रेयर नही है। नैना साहनी में भी यही कहा गया। यह भी कहा गया कि यह पारिवारिक और निजी मामला था।
 
मूढ़मति छम्मकछल्लो अब कोई सवाल नहीं करती- किसी से भी। वह समझ गई है कि पारिवारिक या निजी मामलों को इतनी छूट तो मिल ही जानी चाहिए कि कोई अपनी पत्नी को न केवल मार दे, बल्कि उसकी बोटी-बोटी काट-काट कर उसे तंदूर में जला डाले। हमारा समाज और कानून इसपर रजामंद है। अब वह निश्चिंत हो गई है और सभी से कह भी रही है कि अब कल को कोई अपनी बहू को जला डाले, मार डाले या उसे मरने पर मजबूर कर डाले तो भी ससुरालवाले को जेल व सजा नहीं होगी। कोई अपने घर के नौकर- नौकरानी को मारे- जलाए, काटे, उसे क्यों जेल व सजा हो? सभी तो घरेलू मामले ही होते हैं।
 
पागल लोग न्याय की आस में सेशन कोर्ट से चलते-चलते सुप्रीम कोर्ट तक पहुँच जाते हैं। भाई लोग! पहले रेयरेस्ट ऑफ रेयर की परिभाषा जान-बूझ-समझ लो। फिर उसकी तराजू पर अपने मामले को देख-तौल लो। फिर समझ लो कि जिसके खिलाफ लड़ने जा रहे हो, वह कितना रसूखदार है, फिर आगे की सोचो। नैना साहनी मामले पर अठारह साल बाद फैसला आया। अठारह साल बालिग होने की उम्र है। बालिगपन पर पहुंचे एक मामले का फिर से बलात्कार हो गया। जाहिर है कि यह रेयरेस्ट ऑफ रेयर तो कतई नहीं है। फिर काहे की चिंता। काहे का डर? तंदूर हो या लोहे की छड, उम्र हो या उम्र का बचपना अहसास, हमारी सांस की हर धड़कन में अब ना है कोई कसूर, ना कोई कसर।####

7 comments:

sonal said...

रे मूढ़ तू नारी है यही तेरा अपराध है और अपराध के साथ किया गया अपराध अपराध की श्रेणी में नहीं आता

Vibha Rani said...

सही कह रही हैं सोनल।

Unknown said...

मै आज से ही "rare of rarest " अपराध की श्रेणी भूल जाती हूँ ,यह भी कुछ होता है |नहीं बिलकुल नहीं पुरुष होना चाहूंगी मै स्त्री ही जन्मुंगी , यदि पुनर्जन्म है तो ? नीलम शंकर

Vibha Rani said...

धन्यवाद नीलम जी. हर बार हम ठगी जाती हैं. किस किस तरह से, यह आप सबके सामने है.

विवेक रस्तोगी said...

रेयर की परिभाषा कहीं पर भी परिभाषित नहीं की गई है, इसी का फ़ायदा ऐसे वहशियों को मिल रहा है.. नारी को केवल मान देने की बात से कुछ नहीं होगा.. मान देना भी होगा..

Vibha Rani said...

यही तो दिक्कत है विवेक जी कि हम बस तस्वीरों में सम्मान देना जानते हैं. मनुष्य के रूप में भी नहीं देखना चाहते उन्हें.

प्यार की कहानियाँ said...

Bahut Hi Achhi Kahani Jo Ki Mujhe Achhi Lagi, Aage Bhi Likhte Rahe. Love Poems, प्यार की कहानियाँ aur Bhi Bahut Kuch.

Thank You.