chhammakchhallokahis

रफ़्तार

Total Pageviews

छम्मकछल्लो की दुनिया में आप भी आइए.

Pages

www.hamarivani.com
|

Friday, November 19, 2010

छठ में जली बीडी और भभका “आई लव यू”

छठ पर्व अभी अभी बीता है. छठ पर्व की बडी महत्ता है. सभी धर्म और सभी पर्व की बडी महत्ता है. आजकल पर्व की महत्ता की जगह महत्वाकांक्षा की महत्ता समाने लगी है. महत्ता हो और महत्ता की राजनीति ना हो, ऐसा कभी भी, किसी भी काल या देश में नहीं होता है.
लोग पर्व की महत्ता गाते हैं और अपनी महत्ता जताते हैं. महत्ता फिर आगे बढ कर ताकत और ताकत प्रदर्शन से जुड जाता है. फिर वह बाहुबली का खेल हो जाता है. जो जितना बडा बलवान, उसकी महत्ता उतनी ही महान. महान की महत्ता में पर्व की महत्ता दम तोड देती है. इससे किसी का कुछ नुकसान नहीं होता. नुकसान भौतिक चीज़ों का होता है तो वह दीखता है. हाथ-पैर टूटने फूटने का नुकसान देखता है. मन के टूटने फूटने का?
बिहार के लोग पहले भी सभी देश, राज्य में बसे हुए हैं. जो जहां रहता है, वहीं अपना पर्व मनाता है. सभी के लिए सम्भव नहीं होता, हर साल गांव घर का रुख करना. पहले बिहारी किसी अन्य प्रवासी की तरह ही जहां हैं, वहीं अपना पर्व मनाते थे, बगैर किसी शोर शराबे के, पूरे आस्था और विश्वास के साथ. फिर अचानक से इसमें महत्ता का बल जुड गया. फिर व्रत को जन साधारण से जोडने की मुहिम चल पडी. मुंबई में जुहू तट भर गया.
अब भीड जमा हुई, तो भीड का मनोरंजन भी चाहिये. श्रद्धा और आस्था गई भाड में. मनोरंजन का स्तर धीरे धीरे कैसे नीचे सरकता है, इसे साल दर साल के प्रोग्राम से समझा जा सकता है. इस बार मुंबई के छठ घाट पर बने बडे स्टेज पर कोई गीत गानेवाली कमर लचका लचकाकर गा रही थी- “बीडी जलाए ले जिगर से पिया, जिगर मां बडी आग है.” वह इशारे भी कर रही थी कि आओ भाई, इस जिगर की आग को बुझाओ, तनिक बीडी जलाओ.
दिल्ली में छठ घाट पर लेजर शो था. उसमें आलिंगनबद्ध युवा थे और उसके बाद सस्ते और फूहड तरीके से दिल में चला हुआ तीर और फिर अंग्रेजी में “I Love You!”
छठ पर्व पर गाए जानेवाले सभी पारम्परिक गीत गुम हो गए. छठ घाट पर मनोरंजन चाहिए या श्रद्धा? छम्मकछल्लो नहीं समझ पा रही. कल को इन घटिया मनोरंजन के कारण छठ जैसे पर्व में भी हल्कापन आयेगा और टिहकारियों-पिहकारियों पर छठ न मनानेवाले लोग नाखुशी ज़ाहिर करेंगे तब मामला सीधा सीधा श्रद्धा से जुड जाएगा. फिर नारे छूटेंगे, गालियां फूटेंगी, बाहुबल के प्रदर्शन होंगे, अखाडेबाज़ी के अड्डे बनेंगे. सबकुछ होगा, केवल श्रद्धा और आस्था नहीं रहेगी. तब श्रद्धा और आस्था यकीन मानिए, भाव से व्यक्ति हो जाएंगी और लोग पूछ बैठेंगे, “ये श्रद्धा और आस्था कौन है? कहां रहती हैं? दोनों बहने हैं? क्या इनका इस छठ पर्व से कोई सम्बंध है? क्या ये सूर्य की पत्नियां हैं या कुछ और लगतीहैं?” उत्तर दीजिए. छम्मकछल्लो को तो नहीं सूझ रहा कुछ भी!

2 comments:

समयचक्र said...

ओह हो ....बीडी जलाय लें ....रोचक प्रस्तुति ...... आभार

समयचक्र said...

रोचक प्रस्तुति ... आभार