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Sunday, March 16, 2008

इस जिजीविषा को सलाम!

एक समय था, जब साठ की उम्र तक पहुँचने पर इंसान बूढ़ा मान लिया जाता था। शुक्र है लोगों की सोच का, अब इसमें तब्दीली आई है, आ रही है। अब हमारे सामने aपाने ही आस-पास के ७०-८० साल व इससे ज़्यादा की उम्र के लोग हैं, जो न केवल दिल से जवान हैं, बल्कि अपने को इस कदर सक्रीय बनाए रहते हैं, जैसे उम्र का कोई मसला है ही नहीं। वर्ल्ड आइकन के रूप में देवानंद, एम् ऍफ़ हुसैन, आबिद सुरती, ऐ के हंगल, सितारा देवी, पं बिरजू महाराज, पं रवि शंकर आदि हैं, तो अपने आस-पास देखिए, आपको बहुत सारे मिल जाएंग।
बाउजी, यानी छाम्माक्छाल्लोके ससुर हैं, सुखदेव नारायण। उनका भी ब्लाग है- sukhdeosahitya.blogspot.कॉम। ८७ साल के हो गए हैं, मगर लिखने की ललक से लबरेज़ है, और इस एक प्रेरणा से वे इतने स्वत: स्फूर्त बने रहते हैं कि देख कर जी को बहुत सुकून महसूस होता है। अभी अभी उनकी एक और किताब का पटना में विमोचन हुआ। इससे मिले प्रतिसाद से खूब उत्साहित हैं। अम्मा भी लगभग ८० की हैं, मगर अभी भी घर के सारे काम कर लेती हैं, अपने समकालीनों से अलग इनकी सक्रियता, सोच जीवन को एक नया आयाम देती है।
एक और मोहतरमा हैं- शबनम जी। ७५-८० के आस-पास की। ठेठ रूढिवादी बंगाली परिवार की थीं। शादी के बाद अपने प्रयासों से उर्दू- हिन्दी सीखी, शायरी सीखी। अपने युवा संघर्षमय समय में ये शायरी उनके मानसिक, आर्थिक संबल बने। इसले अलावी स्कूल टीचर रहीं। भारतीय शास्त्रीय संगीत सीखा है। अब सेवा निवृत्ति के बाद भी काम करने की ललक नहीं गई है। छाम्माक्छाल्लो से कहने लगीं कि हालांकि बच्चे सभी अपनी अपनी जगह सेटल हैं, और बहुत अच्छे से सेटल हैं, इतनकी आप भी चौंक जाएं। मगर उनका आग्रह है की अब्च्चूं के बारे में बताकर उन पर अतिरिक्त बोझ न डाला जे की बच्ची जब ऐसे हैं तो इन्हें काम करने की क्या ज़रूरत है? अति प्रसिद्ध बच्चे हों या माँ-बाप, माँ-बाप या बच्चे नहीं चाहते की उन्हें उनके रिश्तेदारों के नाम के कारण जाना जाए। इससे उनका अपना व्यक्तित्व चला जाता है। नसीरूद्दीन शाह के बेटे ने अपना एक प्रोग्राम देते हुए अपना कोई भी परिचय देने दिलाने से मना कर दिया था। अच्छा लगा था उसका यह आत्म विश्वास की टैब वह केवल नसीर और रत्ना के बेटे के रूप में ही देखा जान लगता। उसकी कला उनके व्यक्तित्व के आगे ढँक जाती। शबनम जी भी उन पर बोझ नहीं बनाना चाहतीं और काम करते रहना चाहती हैं। छाम्माक्छाल्लो आज जब लोगों को 60साल के बाद सेवा निवृत्त होते देखती हैं तो हैरत में पड़ जाती है, क्योंकि वह व्यक्ति किसी भी कोने से 60का नहीं दीखता या दिखतीं।
अपने प्रति इनके विश्वास, खान-पान पर ध्यान, कुछ करते रहने, सक्रीय बने रहने की ललक, और उम्र और उसकी सीमा को धता बताती ये शख्सियतें - वल्लाह! कौन ना कुर्बान जाए इन सब पर।

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