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Wednesday, December 5, 2007

यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते

यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवा:। यानी जहाँ स्त्रियों की पूजा होती है, वहा देवता निवास करते हैं। मगर देवताओं के घरों, यानी मंदिरों में ही नारियों का कोई सम्मान नहीं। यह अनुभव पिछले कई सालों से खूब हो रहा है। कई साल पहले औरंगाबाद गई। पता चला, वहाँ लेटे हुए हनुमान की बहुत बड़ी मूर्ति स्थापित है। जब वहा गई, तब एक निश्चित सीमा के बाद स्त्रियों का प्रवेश वर्जित। इसके बाद शिरडी गई । वहां भी हनुमान का मंदिर है। वहाँ भी वही निषेध। अभी-अभी मुम्बई के दादर स्थित लक्ष्मी नारायण या स्वामीनारायण मंदिर गई। वहाँ भी यही हाल। ऐसे में यह कहना कहाँ तक सच रह जाता है कि जहाँ स्त्रियों की पूजा होती है, वहा देवता निवास करते हैं। हनुमान मंदिर में यह दलील दी जाती है कि वे ब्रह्मचारी हैं, इसलिए स्र्तियों का प्रवेश वर्जित है। छाम्मकछाल्लो का कहना है कि क्या स्त्रियाँ हनुमान मंदिर में उनसे इश्क लड़ाने जाती हैं, पूजा के बदले? क्या स्त्रियों के मन में हनुमान या किसी अन्य देवता को देख कर काम की भावना जागती है? आज क्या, सदियों से घर-घर में धर्म-कर्म की व्यावहारिक ठेकेदार स्त्रियाँ ही हैं। पूजा-पाठ से लेकर व्रत उपवास तक सभी जगह औरतें यह जिम्मेदारी बड़ी ख़ुशी से निभाती हैं। वह भी किसके लिए? अपने पति, बच्चों, घर के लिए। कभी किसी स्त्री ने कहा है कि वह अपने लिए पूजा करती है कि केवल वह सुखी रहे, घर के अन्य लोग भाड़ में जाएँ। अगर ऐसा नहीं है तो मंदिरों में स्त्रियों को उस हद तक जाने की इजाज़त क्यों नहीं है, जिस सीमा तक पुरुष पूजा करने जाते हैं। छाम्माक्छाल्लो आजतक इस चाल को समझ नहीं पाई हैं। पुरुषों की रासलोलुपता का इलजाम स्त्रियों पर क्यों? आपके जवाब से छाम्माक्छाल्लो को शायद कुछ रास्ता मिले।

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