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Thursday, February 19, 2009

साथी बंदियों के प्रति राजेन्द्र बाबू का व्यवहार

सन १९४३ की बात है। जेल में आनेवाले नए कैदियों से पुराने कैदियों को बाहर के समाचार मिल जाया करते थे। बाद में राजेन्द्र बाबू को एक-दो अखबार भी मिलाने लगे थे। नाना प्रतिबंधों के कारण अखबार में सबकुछ छपता नहीं था। जो छपता भी था, उसमें बहुत कुछ साफ़ -साफ़ नहीं लिखा होता था। नए कैदियों से वे जानकारी मिलाती थी, जो कहीं छपनेवाली नहीं होती थी। यह जानकारी ख़ास-ख़ास लोगों के बारे में होतीं।
एक दिन राजेन्द्र बाबू ने मुलाक़ात के समय अपने पुत्र मृत्युंजय प्रसाद से कहा की अमुक अमुक के परिवार बहुत ही आर्थिक संकट में हैं। उन्हें मासिक रूप से नियमित सहायता मिलनी चाहिए। बेटे के सामने विकत समस्या। एक तो राजेन्द्र बाबू की बात ताली कैसे जाय और दूसरे अपना परिवार बड़ा होने के कारण अपना ही वेतन कम पङता था। वे कुछ जवाब नहीं दे पाए। अगले महीने राजेन्द्र बाबू ने फ़िर से इस बात की चर्चा की। वे बोले-" तुम मेरे नाम पर ऋण ले कर इन लोगों की सहायता करो। मैं यदि जिंदा जेल से निकला तो यह करजा चुकाउंगा। मर गया तो यह भार तुम पर छोड़ जाउंगा।" मृत्युंजय प्रसाद ने कुछ प्रयत्न किया, मगर सफलता नहीं मिली। तब एक माह बाद फ़िर राजेन्द्र बाबू ने कहा की "मुझसे यह बर्दाशत नहीं होता की मेरा परिवार तो सुखी रहे, मगर जेल में साद रहे मेरे सहकर्नी के परिवार भूखों मारें। बहुत सम्भव है की एक दिन तुम्हें सुनाने को मिले की इसी के प्रायश्चित में मैंने आमरण अनशन करना आरम्भ कर दिया है। मृत्युंजय प्रसाद की घबराहट की सीमा न रही। राजेन्द्र बाबू के पुराने मित्र बनारसी प्रसाद झुनझुनवाला राजेन्द्र बाबू का समाचार लेने घर आए। मृत्युंजय प्रसाद ne unhen सब कुछ बताया। उनहोंने ३०० रुपयों की व्यवस्था कर दी। उधर सरदार पटेल के पुत्र, जो ओरिएण्टल इंश्योरेंस में उच्च पड़ पर थे, वे भी बंबई से कुछ राशि भेज दिया करते थे। दो-एक बार सुदूर उत्कल से दो-तीन उच्च पदस्थ अफसर, जो बिहार से थे, वे भी कुछ राशि भेजते रहे। इअप्रकार, जब तक राजेन्द्र बाबू जेल से छूटकर न आ गए, तबतक दो-तीन परिवारों को ७५ रूपए मासिक तथा कई अन्यों को १०-१५ रुपये मासिक की सहायता मिलाती रही।

2 comments:

निर्मला कपिला said...

bahut badiyaa jaan karee hai unko mera naman hai

हर्ष प्रसाद said...

श्री वाल्मीकि चौधरी (जो लंबे अरसे तक राजेंद्र बाबू के निजी सचिव रहे) के बाद डा राजेंद्र प्रसाद के व्यक्तित्व और योगदान की जानकारी देने का प्रयास अब होता दिखाई दे रहा है. शुभकामनाएँ और धन्यवाद.