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Monday, February 9, 2009

आओ तनिक बढायें अन्धकार के बीज को

यह अंधेरे में समाने का पलायन नहीं, एक स्थित है, जिसके बार अक्स चीजों, हालत को देखा जा सकता है। छाम्माक्छाल्लो कभी-कभी जब उजाले से घबरा जाती है तो उसे यह अँधेरा बहुत याद आता है।

आओ तनिक बढायें अन्धकार के बीज को,
ताकि दिखे नहीं भाई-भाई के बीच की तनातनी,
ओझल हो जाएँ नज़रों से
चमकते भाले, बरछे, बल्लम
छुप जाएँ अन्धकार की कालिमा में
बच्चा वह दुधमुंहा,
जिसके किलकते पोपले मुंह में'पिस्तौल की नाली घुसा कर खेला जाता रहा,
जिससे खेल
रमता बच्चा और उसकी माँ उस खेल में, उसके पहले ही
दाग दिया गया ट्रिगर ,
आओ, आओ तनिक बढायें अन्धकार के बीज को,
ताकि छुप जाएँ सारे मनुष्य,
जिनके कारण शेष है अस्तित्व उस तथाकथित धर्म का,
जिसने बढ़ा दी है दूरी मनुष्य-मनुष्य के बीच की,
बना डाला है जिसने इंसान को इंसान के बदले राम बहादुर, अल्लारखा
सैमसन या जोगिन्दर बाश्शा
आओ तनिक बढायें अन्धकार के बीज को,
ताकि खो जाए माँ और दीदी की विगलित श्रद्धा,
ख़राब तबीयत के बावजूद जो रखती
भीषण उपवास, बरस दर बरस, मॉस दर मॉस
आओ तनिक बढायें अन्धकार के बीज को,
ताकि मेरे तन और मन का रेशा रेशा हो जाए
अन्धकार के लबादे में गम

न रह जाए चाहत किसी को देखने की
पाने की ,छूने की, किसी में मिल जाने की,

किसी में समा जाने की,

आओ, फैलाएं विश्व में अन्धकार का जाल॥

3 comments:

निर्मला कपिला said...

bahut sunder vibhaji bilkul aapki tarah

Vinay said...

सुन्दरतम कृति

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चाँद, बादल और शाम

हें प्रभु यह तेरापंथ said...

बहुत अच्छे! लिखते रहे! और हिन्दि ब्लोग जगत को रोज दस टीपणीया देकर सहयोग करे।