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Saturday, July 25, 2009

सेक्स? माइंड इट प्लीज!

मोहल्ला लाइव पर पढ़ें छाम्माक्छाल्लो का यह आलेख। लिंक है-http://mohallalive.com/2009/07/25/sex-mind-it-please/

आजकल सेक्स पर इस देश में बहुत चर्चा चल रही है। एक वर्जित फल, खाएं कि न खाएं, एक छुपी-छुपी सी चीज़, दिखाएं कि ना दिखाएं। बहुत बहस चल रही है कि इस “सच का सामना” किया जाए या नहीं। लोग बाग इसे निजता पर चोट मान रहे हैं। कितनी अच्छी बात है। हम इतने खुले तो। पर यह तो देखें कि निजता है क्या? निजता तो अपने खाने, पहनने, रहने, फिल्म देखने, भोजन करने, बहस करने तक सभी में है। मगर इन सब पर बातों के चलने पर उसे निजता पर प्रहार नहीं माना जाता है। सेक्स पर बात कर दी तो निजता पर प्रहार हो गया।
कहावत है, बदनाम हुए तो क्या नाम न होगा? छम्मक्छल्लो भी इसे मानती है। सुना है कि एक चैनल द्वारा दिखाया जानेवाला रियैल्टी शो का मामला लोकसभा तक पहुंच गया है। जगह-जगह ब्लाग पर तो लोग चर्चा कर ही रहे हैं। चैनल को लानत-मलामत भेज ही रहे हैं।
आज सेक्स सबसे बडा सच है। सेक्स है तो दुनिया है, दुनिया की रीति-नीति है। सेक्स नहीं है तो जीवन में कुछ भी नही है। लेकिन सेक्स तो करो, उसे महसूस भी करो, उसका आनंद भी उठाओ, मगर उस पर किसी को बोलो नहीं, वरना वह अश्लील हो जाएगा। इस अश्लीलता की क्या सीमा है, किसी को नहीं पता। हमारी नज़र में तो भद्दे तरीके से खानेवाला, भद्दे तरीके से बोलने वाला, भद्दे तरीके से हरक़त करनेवाला भी अश्लील है। मगर जैसे पंकज का मतलब केवल कमल ही मान लिया जाता है, वैसे ही अश्लील का मतलब भी केवल यौनजनित प्रक्रिया ही मान ली जाती है।
यह यौनजनित प्रक्रिया भी कैसे अलग-अलग सांचे मे ढल कर निकलती है, वह देखिए। एक ही क्रिया-प्रक्रिया एक समय में जायज़ और दूसरे समय में नाजायज़ बन जाती है। अब देखिए न, हम सबकी पैदाइश इस सेक्स की ही बदौलत है। अगर किसी को इस पर कोई शक है तो बेशक वह विज्ञान का सहारा ले सकता है। लेकिन चूंकि हमारी–आपकी पैदाइश एक मान्य सीमा रेखा के तहत हुई है, इसलिए हम नाजायज़ नही हैं, हमारे आपके बच्चे भी नहीं हैं, मगर यही मान्यता जब किसी और के साथ नहीं होती तो उसकी संतान को अवैध मान लिया जाता है। उसकी इज़्ज़त, उसके खानदान की प्रतिष्ठा पर आंच आ जाती है। वह किसी को अपना मुंह दिखाने के काबिल नहीं रह जाता। देखिए न, कुंती ने अपने पति की सहमति या अनुमति से अन्य देवताओं के संयोग से पुत्र पैदा किये तो उसे सभी ने हाथोहाथ लिया, मगर वही कुंती कर्ण को अपना पुत्र नहीं कह सकी। द्रौपदी को पांच पतियों की पत्नी बना दिया गया, यह समाज की मर्यादा के साथ हुआ, मगर सीता को रावण के यहां से आने पर अग्नि परीक्षा के लिए कहा गया। किसी ने यह नहीं कहा कि 14 साल तक तो राम और लक्ष्मण भी जंगल में रहे, वे भी तो कहीं जा सके होंगे, मगर नहीं। यौन शुचिता की परीक्षा पुरुषों के लिए नहीं होती। जिस दिन यह सब होने लगे, यक़ीन मानिए, उस दिन यौन शुचिता की परिभाषा ही बदल दी जाएगी।
आज लोगों के लिए यौन संबंध ही सबसे बड़ा सच हो गया है। अब देखिए न, अगर घर की लक्ष्मी अपने पति के अलावा किसी और का ध्यान न करे तो वह देवी की तरह पूजनीया हो जाती है। मगर वही लक्ष्मी अपनी सारी ज़‍िम्मेदारियों को पूरा करते हुए भी अगर यौन इच्छा से प्रेरित हो कर कहीं किसी ओर मुड़ गयी तो उसके लिए लोगों के मनोभाव देख लीजिए। क्या यह संभव नहीं कि कोई स्त्री अपने पति से संतुष्ट न हो? पति से इस बाबत कहने पर भी इसका उस पर कोई असर ना पड़े, उल्टा पति उसे अपने अहम पर चोट मान ले और तब और भी ज्यादा अपने ही मन की करे? ऐसे में अगर वह किसी और जगह अपने मन की संतुष्टि की तलाश करे तो इसे ग़लत क्यों मान लिया जाना चाहिए? भले ही वह घर की तमाम ज़िम्मेदारियों को पूरे तन-मन से निबाहती आ रही हो? क्यों आज भी “भला है, बुरा है, मेरा पति मेरा देवता है” पर ही उसे टिके रहना चाहिए? और क्यों समाज की सारी शुचिता का ठीकरा औरतों, लड़कियों पर ही फूटना चाहिये? क्यों समाज में सेक्स ऐसा तत्व मान लिया जाना चाहिए कि उसके ही ऊपर घर का सारा शिराज़ा टिका दिया जाये? क्यों एक स्त्री अपने अन्य संबंधों की बात करे तो उसे निर्लज्ज, यहां तक कि वेश्या सरीखा मान लिया जाए? संबंधों की सबसे मज़बूत कड़ी सेक्स को ही क्यों मान लिया जाए?
इसका जवाब भी है। हम देख रहे हैं कि मन से तो हम अब पवित्र रहे नहीं। छल, कपट, धोखा, झूठ, बेईमानी हमारे चरित्र में रक्त की तरह घुल-मिल गये हैं। एक वाक़या याद आता है। पड़ोस में एक बार डकैती पड़ी थी। डाकू सभी कुछ ले गये थे। यहां तक कि महिलाओं की नाक की कील भी छीन कर ले गये थे। मगर उन लोगों ने उस घर की जवान बेटी-बहुओं पर निगाह नहीं डाली। बस जी, वे तो देवता की तरह पवित्र हो गये। उनके सारे अत्याचार छुप गये। सभी जगह उसके इसी सौदार्य की चर्चा होती रही। मतलब कि देह ही और देह की पवित्रता ही हमारे चरित्र का एकमात्र पैमाना हो गया है।
तो आइए साहबान, अगर यही है तो आज से हम यह कसम खाते हैं कि देह की इस शुचिता को बनाये रखने के लिए हम हरसंभव प्रयास जारी रखेंगे। आइए और सबसे पहले महामुनि वेदव्यास को अपने शास्त्र से निकाल फेंकें। सभी कोई मिल जुल कर खजुराहो, कोणार्क आदि की मूर्तियों को नष्ट कर दें। याद रखें, इसे किसी विधर्मियों ने नहीं, हमी लोगों ने बनाया है। संभोग, सेक्स आदि शब्द को अपने जीवन से ही निकाल दें। भूल जाएं कि यह हमारे जीवन का एक अनिवार्य तत्व भी है। मनोवैज्ञानिक चाहे लाख कहें कि यह लोगों को स्वस्थ रखता है, हम तो इसे अश्लील ही मानते हैं भई. आखिर अपने धर्म, अपनी मर्यादा की रक्षा का सवाल है।
हम यह कतई नहीं कहते कि आप सारे समय सेक्स और सेक्स ही करते और कहते रहें। लेकिन सेक्स को आप हौआ न बनाएं, उसे एक मर्यादित रूप में रहने दें। मर्यादित से मतलब, छुपी चीज़ नहीं। यह जीवन की अन्य क्रियाओं की तरह ही उतनी ही सामान्य प्रक्रिया हो कि जब भी आपकी ज़रूरत हो, आप उसे उजागर कर सकें। खराब मानेंगे तो खराब बात तो सडक पर थूक फेंकना और कचरा फेंकना भी है। मगर हममें से कितने लोग इसे अश्लील मानते हैं और दुबारा ऐसा न करने की सोचते हैं?

10 comments:

  1. Wonderful satire!! Yesterady I was reading an article on BBC Hindi blogs. You have the smilair fire and exictement.

    I was missing your blogs, when you did not post in the first 22 days of this month. Sorry for error in teh dates.. might be, you would be busy in enjoying Indian summer in villages....

    Sorry for writing in English, please paste Google Hindi transliteration page...

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  2. आपका अच्छा विश्लेषण और तर्क अपने कथ्य के समर्थन में। यह कौन नहीं जानता हे कि सेक्स की परिणति सृजन है। लेकिन स्वस्थ समाज की संरचना को ध्यान में रखकर शुरू से कुछ मान्यताएं तय की गयीं हैं, जिसका पालन बहुत हद तक हो भी रहा है। लेकिन आजकल जो परोसा जा रहा है उसका समर्थन नहीं किया जा सकता है। कहते भी हैं कि - "यद्यपि शुद्धम् लोक विरुद्धम् न चरणीयम् न चरणीयम्।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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  3. बिलकुल सही लिखा है…। सरकार को "सड़क पर सेक्स" की भी अनुमति देनी चाहिये, बगीचे में भी, और ऑफ़िस में भी… तभी माना जायेगा कि हमारा समाज "खुल" चुका हैं…।

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  4. जोरदार लिखा है -नो खुल्ला सेक्स प्लीज वी आर इन्डियन ! चोरी छिपे चलता है !

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  5. सेक्स बुरा नहीं है,बुरा होता तो आप हम क्यों करते? विवाह पूर्व और विवाहेतर संबंध भी बनते हैं मानते हैं.
    बात चल रही है "सच का सामना" की.इस प्रोग्राम में सच को जिस वीभत्स ढंग से उघाड़ा जा रहा है यह सच के बलात्कार के समान है.
    प्रत्येक व्यक्ति की निजता में अंतर होता है.आप चौराहे पर अपनी पतलून नहीं उतार सकते, अगर डाक्टर आवश्यकता होने पर निरीक्षण के निमित्त कहे तो आप बिना हिचकिचाहट के उतार देंगे.
    अंतर केवल स्थान,काल एवं परिस्थिति का होता है.इस अंतर को समझिये.
    तर्क-कुतर्क की सीमा नहीं है.सभी के जीवन में कुछ बातें कुछ सच्चाईयां ऐसी होती हैं जिनका छिपा रहना ही उचित है.अंत में सच का सामना जैसे स्तरहीन प्रोग्राम के लिये एक बात अग्रिम क्षमायाचना सहित-
    किसी के भूतकाल को कुरेद कर अप्रिय सत्य से सामना कराना और मल-द्वार में ऊंगली घुमा कर गंदगी निकालना दिखाना एक ही बात है.
    विजय प्रकाश

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  6. सेक्स पर आपने जो लिखा है,सही और सटीक लिखा है, हम आपका समर्थन करते हैं !

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  7. एक चेहरे पे कई चेहरे लगा लेते हैँ लोग ...


    हो सकता है कि आपकी बातों से कुछ लोग सहमत ना हों लेकिन उनकी सहमति और असहमति की चिंता छोड़ आप बेफिक्र और बेधड़क हो के लिखती रहें...

    आपकी तीखी शैली मुझे बहुत पसन्द है

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  8. ऐसा कुछ भी नहीं कहा है, जिस पर कुछ वर्ग तिलमिलाकर पत्थर फेंकने लगे, मर्यादित आचरण ही हमारी सभ्यता और संस्कृति में बताया गया है, लेकिन उसको लिंग के आधार पर जो सीमाओं में बाँधा गया है और लक्ष्मण रेखा भी निश्चित की गयी है. यह सबके लिए होनी चाहिए और मर्यादा में ऐसा कुछ भी नहीं है कि वह सिर्फ नारी के लिए बनी है और नर के लिए नहीं. अपनी सीमाओं को हमने निश्चित किया है और फिर हम क्यों दूसरे के लिए चिंता कर रहे हैं.
    अच्छे और बुरे की परिभाषाएं हमने ही रची है, और यह भी सिर्फ एक वर्ग विशेष है मध्यम वर्ग - जो इसको जीवित रख रहा है, अन्यथा मर्यादा और सीमाओं की धज्जियाँ तथाकथित उच्च वर्ग में किस तरह से उड़ाई जाती हैं , जहाँ सब पैसे से खरीद सकते हैं और सिर्फ एक सामाजिक मान्यता के लिए विवाह और परिवार जैसी संस्था का निर्वाह होता है नहीं तो..............

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  9. MS. vibha RANI

    here is nothing that worth in trite article. What I intend to say is the quintessential aspect of sex, and u still hover around old age remarks. Face the truth in the law of nature. Men an women are constitutionally so different, your zest would be bottle necked.

    I had been to ur blog occasionally and the commonest of all was, you intention to create conflict over masculine and feminine social stands. This wont work now..
    NAARIVAAD AUR DALITVAAD PURANA FASHION HO GAYA HAI< KUCHH NAYA LIKHO

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