छाम्माक्छाल्लो को अपने देश के धर्म, जाती, वर्ग, वर्ण आदि पर पूरी श्रद्घा है और वह इसे पूजती है. वह यह मानती है कि देश के कण- कण का, इसके अनु-अनु का विकास हो. यह तभी संभव है, जब देश के कण- कण का, इसके अनु-अनु का अलग-अलग विवेचन हो. यह क्या बात हुई कि आप कहेंगे कि देश में एका हो जाय और सभी एक हो कर रहें. रहेंगे तो अपना अस्तित्व कहाँ जाएगा. और जब अस्तित्व ही नही रहा तो दुनिया में क्या भाड़ झोंकने आये हैं? देखिये, देश जबतक अलग-अलग रहेगा, देश का विकास होगा। धर्म के नाम पर विकास होगा, जाति के नाम पर विकास होगा, वर्ण के नाम पर विकास होगा, स्त्री के नाम पर विकास होगा, दलित के नाम पर विकास होगा। और तो और, गोत्र के नाम पर विकास होगा. यह सब समाज को मजबूत बनाने के लिए किया गया था. देखिये, हम कहते हैं कि लोग भाई-भाई की तरह रहें, सभी स्त्री, लड़की को माँ-बहन की तरह देखें. गोत्र की स्थापना इसीलिए तो की गई कि शुचिता बनी रहे. कितना अच्छा है, किसी तरह की गंदगी नहीं फ़ैल सकती. देश का सनातन सपना भी इसके झंडे तले सच होता है. अरे भाई, प्रेम का, एका का. लेकिन कूढ़ मगज, आज के लोग इसमें पलीता लगाने की सोचते रहते हैं. सोचते हैं, देश में टीवी आ गया, सिनेमा आ गया, देश चाँद पर पहुँच गया तो अपने सनातन व्यवस्था को आग के हवाले कर देंगे? इतना कमजोर समझ रखा है? नहीं, इसलिए छाम्माक्छाल्लो सभी के प्रति भक्ति भावः से नत मस्तक है. धर्म, गोत्र, जाती सभी व्यवस्था की पूजा करती है. अब इस पूजा की आंच में कोई जल जाता है तो जले. धर्म के नाम पर दंगे फूटते हैं तो फूटे. जाती न मिलाने पर या दूसरी जाती में शादी कर लेने पर जाती से बाहर कर दिए गए तो किये गए. जोडों की जान ले ली गई तो ले ली गई. सामान गोत्र में शादी करने पर दूल्हे को मार डाला गया तो मार डाला गया। जाती, गोत्र, धर्म के नाम पर इतनी बलि तो होती ही रहती है, होनी ही चाहिए. आख़िर इताना पुराना समाज है। यह सब तो हवं कुंद है, जिसमें किसी न किसी को समिधा तो बनाना ही पङता है. समान गोत्र में सभी भाई- बहन तो किसी के प्रति किसी के मन में मलिन भाव नहीं आयेंगे। अब आए और शादी भी कर ली तो सज़ा तो मिलनी ही चाहिए ना। सो मिली। अब इस पर इतनी चीख पुकार मचाने की क्या ज़रूरत? औअर मचाने से ही क्या हमें न्याय मिल जाएगा? क्या रूप कुनार को न्याय मिल गया? खैरलांजी को मिल गया? अभी-अभी सविता नाम की टीचर को निर्वस्त्र कर के घुमाया गया, उसको न्याय मिल गया? कितनी दलित महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया, कितनों को मौत के घाट उतार दिया गया, सभी को न्याय मिल गया? रहने देन। हमारी यद् दाश्त वैसे भी बहुत कमजोर है। लोगों के सामने भी बहुत सी प्राथमिकताएं हैं। अभी कल कोई नया, ज़्यादा सनसनीखेज़ समाचार मिलेगा, सब उस तरफ़ को लपक लेंगे। गोत्र-वोटर चला जाएगा चूल्हे में।
इसलिए छाम्माक्छाल्लो बहुत खुश है. हे धर्म, जाती, वर्ण, गोत्र के रक्षकों, आपसे छाम्माक्छाल्लो की गुजारिश है कि अनंत -अनंत काल तक ऐसा करते रहें, चाहे दुनिया कही से कही तरक्की कर ले, चाहे विज्ञान कितना भी आगे बढ़ जाए, चाहे तकनीक के बल पर हम इंटरनेट और बेतार के तार से संचार करने लगें, आप सब अपनी मान्यताओं के संग बने रहे, प्लीज. आखिर देश के अनु-अनु के विकास का सवाल है. इस विकास के रास्ते में जो भी आये, उसे चीर कर रख दें. हमें आपकी व्यवस्था पर बड़ा भरोसा है- सचमुच.
वैसे स्वगोत्र में शादी करना विज्ञान के दृष्टिकोण से भी उचित नहीं है. परन्तु दिल का क्या करें. इसकेलिए भी एक उपाय है. चाँद मियां स्टाइल का. कन्या या वर हो मामा आदि को गोद दे दें. गोत्र बदल जाएगा. फिर शादी में कोई अड़चन नहीं है.
ReplyDeleteव्यंग्य की तीक्ष्ण धार --
ReplyDeleteवाकई तालिबानियो पर चिल्लाने वाली इस कौम के तालिबानो से कौन नज़र मिलाये.
ReplyDeleteपर... सवाल तो यह है कि, इस मुद्दे को वैज्ञानिक आधार पर नहीं, बल्कि हास्यापद तर्कों पर लिया गया है
तीखा व्यंग्य....करारे प्रहार
ReplyDeletesja dene ka treeka jahil jroor hai, ktai sport nhi kiya ja skta.lekin gotra shastra sbko tilanjli dena hi prem hai kya. sgotra vivah ki izazat to hindu marrige act mein bhi hai.phir ek hi gotra mein shadi ke medical disorder kya sabit krte hain.khap bhi galt hai aur thakthit prem vivah bhi sgotr mein krna bhi.aadhuniktavadiyon ka kya, ve kal sge bhai bhno ka vivah krane ki mang bhi kar skte hai. gamy marrige ke smarthan me bhi abhiyan chal rhe hain. janvron ki tarah nar mada sambandho ki bhi perokari wale is duniya me ho skte hain. haan kanoon ka paln sbko krna chahiye fir vo khap ho ya panchyat. sbse behter hai sgotr vivah krne walon ka bhiskar kar diya jaye. lekin jo jivan de nhi skta use lene ka koi haq nhi.
ReplyDeletemere comment mein bhul sudhar
ReplyDeletekrpya sgotra vivah ki izazat to hindu merrage act me bhi nhi hai pdein
सभी ने सगोत्र को ही क्यों आधार मान लिया , विषय के सभी पक्षों को भी देखिये. हम संकीर्ण हैं तो सिर्फ जाति और धर्म के मामले में , बाकी समय और ज़माने के साथ चलने कि हामी भरते हैं , लेकिन जब अपने घर में आग लगाती है तो पानी पानी चिल्लाते हैं. दूसरों के घर कि आग को हवा देने या घी डालने में पीछे नहीं रहते हैं, न सामने सही पीठ पीछे जरूर अपने विचार व्यक्त कर लेते हैं. एक जागरूक नागरिक और समाज के ठेकेदारों के लिए कुछ तो विषय चाहिए न.
ReplyDelete