Pages

Thursday, September 6, 2007

क्या करे vah

छाम्मक्छाल्लो को थिएटर से बहुत प्यार है.उसका मन करता है कि वह सारे दिन्बस थिएटर ही करती राहे।छाम्मक्छाल्लो जब पांचवी कक्षा में थी, तब अपने स्कूल में उसने एक नाटक में भाग लिया था। उस नाटक में उसका बस एक दृश्य था.वह सिपाही बना था और दूसरे पुलिस से स्वतंत्रता सेनानी को बचाने के लिए उसे कहा था कि वह भाग जाए.मगर आइन वक़्त पर वह इतनी घब्दायी कि अपना इकलौता संवाद ही भूल गयी। छाम्मक्छाल्लोkii माँ उस स्कूल की हेड मिस्ट्रेस थी। संभी छाम्मक्छाल्लो को भूल गाए और माँ को याद कराने लगे कि इन्हीं की बेटी नाटक में बोलना भूल गयी थी।छाम्मक्छाल्लो की माँ को इसतरह की दूसरी बातें भी सुननी पडती थीं, जैसे उनकी एक और बेटी मेरी गो राउंड में बैठाकर ऊपर से दर के मारे चिल्ला पडी थी। तब भी सभी ने उन्हें ही कहा। सभी उन्ही से पूछते- आपकी ही बेटी चिल्लाई थी?
छाम्मक्छाल्लो कहिस कि हमारी आदत है कि हम एकदम से अपने को अपने से मज़बूत के साथ जोड़ देते हैं.अब नाटक की ही बात करें तो छाम्मक्छाल्लो की माँ को उसकी वज़ह से सुनाना पडा था.तब छाम्मक्छाल्लो बरी लजाई थी कि उसके कारण उसकी माँ को सुनाना पडा.अब वह लजा रही है कि काश उस समय उसे बोलना आता तो वह कहती कि मुझे कहो, डायलाग मैं भूली थी.लेकिन इस बात से छाम्मक्छाल्लो ko itanaa फ़ायदा ज़रूर हुआ कि अब उसे बहुत सी बातें याद रहने लगी हैं और वह यह कहने भी लगी है कि भाई मेरे, जिसकी बात हो, उसे कहो, वरना चुप रहना ज़्यादा अच्छा है।छाम्मक्छाल्लो कहिस किअब उसका दूसरा नाटक तैयार है, जिसे याद करने में वह महीने भर से जुटी हुई है.इसके लिए उसे डांस भी सीखना है.इसके पहले वह एक नाटक और कर चुकी है और उसे इस बात का संतोष रहा कि वह अपने संवाद नहीं भूली.काश कि माँ होती और वे लोग भी.माँ को अच्छा लगता, बाकियों को ...पता नहीं।छाम्मक्छाल्लो कहिस कि बाकियों की परवाह करना हम कब भूलेंगे?

No comments:

Post a Comment