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Wednesday, September 5, 2007

छाम्मक्छाल्लो कहिस

छाम्मक्छाल्लो कहने को तो छमकती फिरती है, मगर बिना मतलब नहीं.वह यहाँ वहां की चीजें देख परख रही है। समय समय पर वह आपको अपनी देखी परखी चीजों, बातों, घटनाओं से अवगत कराती रहेगी.इसमें समय है, साहित्य है, दीं है, दुनिया है, मतलब इस जहाँ की हर वह चीज़ है, जिससे उसका वास्ता पङता रहता है और उसे यकीं है कि आप भी इन सबसे दो-चार तो होते ही होंगे.आपकी सहमति- असहमति दोनों ही उसे एक जैसी खुशी देगी.उसे दुख अगर पहुंचेगा तो सिर्फ इस बात से कि आपकी टिप्पणी उस तक नहीं पहुची.

2 comments:

  1. हिन्दी चिट्ठासंसार में आपका स्वागत है. नियमित ब्लॉग लेखन की शुभकामनाएँ.

    यदि आप वही विभा रानी हैं जिनकी रचनाएँ हम पत्र-पत्रिकाओं में पढ़ते आ रहे हैं, तो यहाँ आपको इंटरनेट पर देख कर अच्छा लगा.

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  2. ji han, main vahi vibha rani hoon. lekin ye batayen ki isame hindi kame kaise likha jay. mera ek blog aur bhi hai-basyunhinahin.blogspot.comdekhe. aapke vicharo ki pratiksha rahegii.

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