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Friday, April 24, 2020

हैलो- फोन पर आवाज सुनकर....

'बोले विभा' के तहत कल हमने बात की थी चिट्ठी पर। संवाद के सबसे पुराने चलन पर। आज हम आपको लेकर चल रहे हैं, संवाद के आधुनिक चलन पर। तकनीकी सम्प्रेषण- यानी टेलीफोन पर। असल में, संवाद खत के रूप में हो या फोन से-   हम हमेशा संवाद कायम करने में यकीन रखते हैं, ताकि हर कोई अपने-अपने स्तर से अपना अपेक्षित अचीव कर सके। संवाद यानी अभिव्यक्ति के न होने से व्यक्तिगत, सामाजिक, राजनीतिक- सभी स्तरों से दिक्कतें आती हैं, क्योंकि संवादहीनता की स्थिति में कोई भी काम आगे नहीं बढ़ पाता।
आज लॉक डाउन में भी निजी दूरी बनी रहे, शारीरिक दूरी। संवादहीनता ना हो। माने हम संवाद के किसी न किसी रूप से जुड़े रहें। इसीलिए तो हम इस ब्लॉग के माध्यम से आपके साथ जुड़े हुए हैं।
कहाँ से आया टेलीफोन? कैसे हम इससे हुए बावस्ता और आज तक क्या क्या यादें जुड़ी रहीं है टेलीफोन से।
आइये, देखिये और चलिए मेरे साथ- फोन की यात्रा पर। गीत तो याद होगा ही- 'मेरे पिया गए रंगून...'  आपको कौन कौन से गीत याद आ रहे हैं टेलीफोन पर?  इस एपिसोड को देखते हुए किसी ने याद दिलाया कि फिल्म 'सुजाता' में सुनील दत्त साहब ने एक पूरा गीत ही फोन पर गाया था- "जलते हैं, जिसके लिए, तेरी आँखों के दिये...."
लिंक है- https://www.youtube.com/watch?v=AV-90pG7k-k

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