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Saturday, January 22, 2011

फकत बेनामी सी होती है बेटियाँ


आज "औरत होने की सज़ा पर अरविंद जैन की ये लाइनें देखीं, इसमें लक्ष्मी जी ने भी अपनी लाइन जोड दी हैं. अरविंद जी जाने माने एडवोकेट हैं और बहुत सही कानूनी सलाह देते हैं. बहुत कम लोग हैं इस तरह के प्रोफेशन में, जो हिंदी में भी उतनी ही सम्वेदनशीलता से सामने आते हैं. उनकी अनुमति से उनकी ये लाइनें दे रही हूं. ये लाइनें यहीं पर नहीं रुकेंगी. आप सब भी अपनी लाइनें यहां दे सकते हैं. 

कभी धरती कभी आसमान सी होती है बेटियाँ
कभी नामी, कभी सुनामी सी होती हैं बेटियाँ
देती है जन्म धरती आसमाँ के नाम को,
फिर भी फकत बेनामी सी होती है बेटियाँ
(
साभार लक्ष्मी जी)
कोख से कब्र तक, खामोश ओ तन्हा सफ़र
कभी फ़र्ज़ सी कभी क़र्ज़ सी होती हैं बेटियाँ
समय की रेत पर, ता-उम्र नंगे पाँव चलती
कभी धूप सी कभी छाँव सी होती हैं बेटियाँ
जब कभी माँ-बाप रोते हैं अकेले में
कभी सीता, कभी गीता सी होती हैं बेटियाँ
अपने हक ओ इन्साफ की लड़ाई में
कभी अम्बा, कभी चंबा सी होती हैं बेटियाँ
अरविंद जैन. 

5 comments:

  1. बेटियां पछुआ हवा हैं.
    बेटियां जैसे दुआ हैं
    फूल जैसी पांखुरीं हैं
    कुह कुहाती बांसुरीं है

    बेटियां फूलों का गहना है,
    बैटियों ने दर्द पहना हैं
    बेटियां खिल खिल हंसाती हैं
    बेटियां बेहिस रुलातीं हैं
    बेटिया हंसतीं हैं गातीं है.
    बेटिया घर छोड़ जातीं हैं.


    बेटियों का पर्स बाबुल कैसे भूले
    हाथ का स्पर्श बाबुल कैसे भूले
    आप तुम का फर्क बाबुल कैसे भूले
    पंचमी का हर्ष बाबुल कैसे भूले

    बेटियों से हीन घर में
    मेरे बेटों से ब्याह कर
    घर में आती बेटियां हैं

    जिसको गोदी में झुलाया
    जिसको आखों में बसाया
    जिसको ना इक पल भुलाया
    उसको अपने साथ लेकर

    दूर मुझसे,
    घर बसाती बेटियां हैं.

    मैं तो ससुरा हूं, मुझे मालूम है क्या
    बेटियों की पीर है क्या? पर पता है

    बेटियों के बाप जो सहते हैं पीड़ा
    मैं भी उसको सह रहा हूं
    बस यही मैं कह रहा हूं

    बेटियां बेहिस रुलातीं हैं
    बेटिया घर छोड़ जाती हैं

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  2. लल्लू जी, यह कविता भी लेना चाहूंगी.

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  3. एक बिटिया से यहां http://akaltara.blogspot.com/2010/10/blog-post.html भी मिल सकते हैं.

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  4. राहुल जी, देखी. अवश्य लूंगी.

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  5. अनजानी जिंदगी के सफरे बियाबान में
    कभी फूल,कभी शूल सी होती हैं बेटियां
    बहुत लाजिम हो जब,तूफानी दरिया पार करना
    कभी नय्या सी,कभी खिवैया सी होती हैं बेटियाँ

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