http://www.janatantra.com/news/2010/05/19/a-comment-on-hinduism-of-hindus/#comments
छम्मकछल्लो की समझ में नहीं आता कि वह अपने ही धर्म के भाई लोगों को क्या कहे? भाई लोग कहते हैं कि वे सच्चे हिंदू हैं, नारे भी देते हैं कि “गर्व से कहो, हम हिंदू हैं” और अपने इसी गौरवांवित धर्म की ऐसी की तैसी कर देते हैं।
हिंदू धर्म कहता है, “कर्मण्येवाधिकारस्ते…” और हिंदू भाई लोग अपने ही इस मंत्र के विरुद्ध चले जाते हैं। धर्मकहता है, ‘कर्म किये जाओ, फल की चिंता मत करो’ और मानने की बात पर हिंदू भाई लोग अपने जन्म पर आधारित धर्म और जाति की बात करने लगते हैं। यह इन पढे-लिखे, उच्च विचार वाले हिंदुओं से कैसे कहा जाए कि हिंदू होना अपने कर्म के ऊपर नहीं है। जिस तरह से अपने मां बाप को चुनना किसी के बस में नहीं है, उसी तरह किसी धर्म विशेष में जन्म लेना भी। हमने-आपने जिस मां-बाप के यहां जन्म ले लिया, ले लिया, इसी तरह जिस धर्म या देश के परिवार में पैदा हो गए, हो गए। उस लिहाज़ से छम्मकछल्लो भी एक हिंदू घर में पैदा हो गई, इसलिए वह भी हिंदू हो गई। और छम्मकछल्लो को अपने हिंदू होने पर गर्व है, जब वह अपने ही धार्मिक ग्रंथों में इतनी इतनी प्रगतिशील बातें पाती हैं।
लेकिन, हिंदू भाई लोग धर्म की बात आने पर राधा-कृष्ण को पूजेंगे और अपने बच्चों के प्रेम की बात आने पर उसे धमकी देंगे और निरुपमा पाठक की तरह उसे जान से भी मार देंगे।
देखिए न, सभी धर्म-परायण हिंदू भाई लोग अपने यहां की स्त्रियों से साल में एक दिन हरतालिका व्रत करने की बात करते हैं। जो इस व्रत को जानते हैं, उन्हें पता है कि हिमराज ने जब अपने पुत्री पार्वती का ब्याह विष्णु के साथ तय कर दिया तो शिव को चाहनेवाली पार्वती तुरंत घर छोडकर चली जाती है। देवी-देवताओं की उम्र शायद हज़ारों-लाखों साल की होती है, इसलिए पार्वती हज़ारों–हज़ारो साल तपस्या करके शिव को प्राप्त करती है- पति रूप में। छम्मकछल्लो अपनी मां से पूछती थी कि अगर आज कोई लडकी ऐसे अपने पति या प्यार को पाने के लिए घर छोडकर चली जाए तो? मां तो मुस्कुरा कर रह जाती थी, मगर आज छम्मकछल्लो के सामने जवाब के रूप में है- निरुपमा पाठक जैसी कई-कई लडकियां। छम्मकछल्लो ने भी अपने शिव को पाने के लिए क्या-क्या नहीं झेला. शुक्र था कि वह निरुपमा बनने से बच गई.
आज लडकियां बिन ब्याहे मां बन जाए तो भूचाल आ जाता है। मगर हिंदू धर्मवाले जानते हैं कुंती को, वेदव्यास की माता सत्यवती को। सत्यवती ने बाद में अपनी ही बहुओं को वेदव्यास के पास भेजा, संतान प्राप्ति के लिए। बहुओं से बात नहीं बनने पर दासी को भेज दिया। बहुओं ने धृतराष्ट्र और पांडु दिए तो दासी ने विदुर। अब कोई बताए कि जाति या पद से ओछा होने से क्या संतान निर्बुद्धि पैदा होता है, क्या विदुर बेवकूफ थे? लोग कहते हैं दूसरी जाति में ब्याह करने पर संतान वर्ण संकर होता है। इस वर्ण संकर के भी बडे लफडे हैं भाई। इस पर फिर कभी।
पांडु-पत्नी कुंती कुंवारी मां बनी और ब्याह के बाद भी अन्य पुरुषों के संसर्ग से संतान पैदा किए। यही नहीं, मन में कहीं कोई चोर बैठा होगा, इसलिए अपनी सौत माद्री को भी दूसरे पुरुषों के संसर्ग से संतान उत्पन्न करवाए और अपनी बहू द्रौपदी को भी अपने पांच बेटों में बांट दिया। द्रौपदी आजन्म कृष्ण को अपना सखा मानती रही। आज कोई ब्याहता किसी अन्य पुरुष के लिए ऐसा सोचे तो उसका अपना ही पति उसे सबसे पहले दुश्चरित्र ठहराएगा।
श्री राम रावण के मरने के बाद मंदोदरी का ब्याह विभीषण से और बाली के मरने के बाद उसकी पत्नी तारा का ब्याह उसके देवर सुग्रीव से करवा देते हैं और भाई लोग कहते हैं कि अपने हिन्दू धर्म में विधवा ब्याह वर्जित है। इंद्र द्वारा गौतम पत्नी अहिल्या से व्यभिचार करने के बाद श्रीराम अहिल्या को व्यभिचारिणी और दुश्चरित्रता के आरोप से मुक्त कराते हैं। यहां किसी की हिम्मत नहीं कि वह ऐसा कर ले? उल्टा उस लडकी को माल समझ कर उसे भद्दे प्रस्ताव देंगे. हिन्दू धर्म के किसी भी बडे चरित्र ने याद नहीं कि कभी ऐसा किया हो.
इन सबसे यह तो पता चलता है कि समाज जिसे स्वीकार कर ले, उसपर कोई आंच नहीं उठाता। आज के हिंदू दावा तो करते हैं बडे हिंदू होने का, मगर कैसा दावा और किसका दावा यार! सच्चे हिंदू हो तो अपनी ही परम्परा का पालन करो ना। अपनी बेटियों को कुंती, अहिल्या, द्रौपदी, तारा, मंदोदरी जैसी पन्चकन्या या पार्वती जैसी प्रेम की पक्की होने तो दो। बिना ब्याह के भी वेदव्यास जैसा तपस्वी पैदा तो करने दो। अगर नहीं तो अपने हिंदूपने पर गर्व करना छोड दो। अपने इस तथाकथित हिंदुत्व को भी छोड दो। सनातन धर्म क्या कहता है, क्या पता। परंतु हिंदू ग्रंथ तो ये सब कहते ही हैं ना। अब या तो इन धर्म ग्रंथों को मिटा दो या अपनी विचारधारा में भर आए कूडे-कर्कट को साफ करके उसे स्वच्छ-शुद्ध कर लो। शास्त्रों में कुछ और, और अपनी करनी-कथनी में कुछ और! महान हिंदू धर्म यह तो कतई नहीं कहता। हिंदू धर्म की बातों को ही गलत ठहरानेवाले और उसी हिंदू धर्म पर गर्व से सर को हिमालय से भी अधिक ऊंचा करनेवाले हे तथाकथित हिंदुओ! तुम्हारी जय (?) हो!
विभा जी ...!!!
ReplyDeleteआप की बात और आप के दिये गये तर्को का मै सम्मान करता हू पर क्या अब सभी बहू बेटिया द्रौपदी या कुंती के दिखाये मार्ग पर ही चलना शुरु कर दे ...???
___ राकेश वर्मा
v.nice
ReplyDeleteविभा जी आपने जो कहना चाहा है उसके हिसाब से बिलकुल सही और तार्किक साक्ष्य प्रस्तुत किये है!
ReplyDeleteआप बतायेंगी आपने कितनी बार द्रौपदी,कुन्ति आदि का अनुसरण करने की सोची है....हो सकता है आपने हिन्दू होने का ढिढोरा भी नहीं पीटा हो....तो क्या वो ही सही था जबकि कोई आपके dharm ke baare जो marji likh-bol raha हो.....
और श्री कृष्ण का स्तर कोई सखा पा सकता है क्या...?
मै क्षमा चाहूँगा,जो ऐसा कह दिया पर "कहा गया,अब आप जवाब दे"
कुंवर जी,
bilkul nahi sahab akhran da vanzara ji, kyon chale bahu betiyan us marg par ? unka marg wo kyon tay karein...unko padhya likhaya is liye thodi jata hai ki ve apne zindagi ke fasile khud lene lage...aisa karne pe ham unka gala nahi ret denge.
ReplyDeletepahli baar aaya ynha, vicharotejak aalekh..., meri samjh bahut kam he..tark-vitark ke is khel ka agyaani hu.. so tippani de nahi sakta. aapki baat vistarit ho yah kamna kartaa hu../
ReplyDeleteठीक कह रही हो छ्म्मक छल्लो
ReplyDeleteakharan da vanjara साब, सभी बहू -बेटियों को खुद ही तय करने दें ना कि वे कौन सा मार्ग अपनाना चाहती हैं? एक वयस्क को क्या अपने तरीके से जीने नहीं दें हमलोग? @कुंवर जी, मैने या किसी और ने कुंती की तरह जीना चाहा य नहीं, यह अलग प्रश्न है. सवाल यह है कि जो कुछ हमारे धर्म में है, उसे ही हम नकारते हैं और गर्व से अपने आपको हिन्दू भी कहते हैं. श्रीकृष्ण जैसा सखा आप भी बन सकते हैं. कृष्ण ने मानव देह धारण किया था. और आप, हम सब मनुष्य ही हैं. देवता ना बनें, ना बनाएं.
ReplyDeleteयही प्रश्न जब अनवर साहब अपने www.vedquran.blogspot.com पर कर रहे थे तो वहाँ पर कमेँट करने वाले यही लोग उन्हे उल्टे सीधे उपदेश दे रहे थे और आपकी बातो को सराह रहे है आखिर इसकी क्या वजह है?
ReplyDeletevibhaa ji aadaaab aapne khulepn se khule dimaag se apne vichaar prkt kiye hen lekin yeh aek kdvaa kepsul he jo mere bhaai brdaasht nhin krenge kher is schchaai ujaagr krne ke liyen bdhaai shi baat he ke agr aap apne smaaj or en mere smaaj ki kmiyaan btaa kr unhen sudhaarenge to inshaa allah desh fi se sone ki chidiyaa bn jaayega or yhaan raa raajy sthaapit ho jaayegaa. mera hind blog akhtarkhanakela.blkogspot.com
ReplyDeleteसच बताइयेगा आप हिन्दू ही हो न । आप ने सारे के सारे ग्रन्थ जिन पर आरोप किया है, ठीक से पढा है न, तो आपको ये लिखा दिख गया कि कुंती, माद्री, अहल्या, अंजना, पांचाली सबने क्या-किया,
ReplyDeleteआपने इन सारी बातों को बहुत ही मार्मिक तरीके से पेश कर भी दिया और हमारे अयाज अहमद साहब ने आपकी हां में हां मिला भी दी, खैर उनका तो कुछ कहना ही नहीं कि वो अपने धर्म के बारे में भी निश्चित् है या नहीं, हां तो मैं कह रहा था कि सारी उपरोक्त कमियां आपको दिख गईं आगे जो लिखा था उसको देखते समय आपकी आंख में कुछ पड गया रहा होगा ।
पहले ठीक से ग्रन्थों को पढ लिया कीजिये फिर अपन दिमाग चलाया कीजिये ।
अपने दिमाग का खोखलापन और अपनी कुंठा को किसी पवित्र ग्रन्थ पर नहीं थोपना चाहिये । मुझे कहते हुए दुख हो रहा है कि आप भी हम में से एक हैं , पर बडी साधारण सी बात है अगर आपको सनातन हिन्दू धर्म से आपत्ति है तो धर्मपरिवर्तन करा लीजिये ।
ये मेरी बडी सभ्य भाषा है जो मैं कम से कम सनातन धर्म के विरोधियों के लिये प्रयोग नहीं ही करता हूं ।
@आनन्द पांडे जी, अगर हिन्दू परिवार में जन्म ले लेने से हम हिन्दू कहलाते हैं तो हां, मैं हिन्दू हूं. लेकिन उससे पहले मैं एक इंसान हूं और स्त्री-पुरुष को समान धरातल पर देखना पसन्द करती हूं. अपने धर्म की खूबियां मुझे पता है, इसलिए, जब उन क्ल्हूबियों पर अमल ना करते हुए लोग फतवे देने लगते हैं के वे हिन्दू हैं, तब तकलीफ कोती है. हमारे शास्त्रों में उल्लेखनीय सभी स्त्रियों को बडे ही पवित्र रूप में रखा गया है. सभी सामाजिक सुध्हर वहां पर हैं. इनका आंख मूंद कर और बिना दिमाग चलाए भी इस्तेमाल किया जाए ना, तो हम सगर्व कह सकेंगे कि जी हीं, हम हिन्दू हैं.
ReplyDeleteare Baap re.....! yahaan to kuchh kahna sunnna hi mushkil hai. bhaai log turant naaraaz ho jate hain .PanDey ji ko HINDU hone ki lakh-lakh badhaayeeya. bas ek baat conform karni thi ki kya unka insaniyat aur samajhdari se bhi koi nata hai ya nahee. Waise sach ye bhi hai ki Vibha Ji ki lekhani ki dhar jhel pana sabke bas ki baat nahee....., khaas taur par kam-akl aur band dimaag walon ke liye chetawani------ " Is blog se door hi rahen. "
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ReplyDelete@ आदरणीय बहन विभा रानी जी कहती हैं -
ReplyDeleteबेशक मां-बाप अपने बच्चों की भलाई चाहते हैं, मगर जब मां-बाप अपने झूठे
मान-प्रतिष्ठा को अपना ज़ाती सवाल बता कर बच्चों की इच्छाओं को ताक पर रखने लग जाएं,
तब ऐसे मां बाप के इन विचारों का विरोध होना ही चाहिये. ताज़ातरीन उदाहरण निरुपमा
पाठक का है, जो सनातन धर्म के नाम पर बेटी की इच्छा का अनादर करते हैं. निरुपमा की
मौत को हम अगर मां बाप की पूजा के बर अक्स रखें तो माफ करें, मुझे ऐसे मां बाप और
ऐसी पूजा इबादत से सख्त ऐतराज़ है.
पवित्र कुरआन अपने पाठकों से खुद बात करता है और उन्हें उनकी समस्याओं का सच्चा और स्थायी समाधान देता है, जैसा कि आपने देखा कि बहन विभा के मन में सूरह ए लुक़मान की 14वीं आयत को पढ़ते समय जो प्रश्न पैदा हुआ उसका उत्तर ठीक वहीं यानि 15वीं आयत में मौजूद है।
http://blogvani.com/blogs/blog/15882
@आदरणीय आनंद पांडे जी आप सवालो का जवाब देने के बजाए सवालो को गोल कर जाते है कहने को आप संस्कृत का ब्लाग चलाते हो मगर जवाब देने के नाम पर आप के पास कुछ नही होता अगर आपके पास इन सवालो के बारे मे कुछ है तो उसे हमे भी बताओ
ReplyDelete@डॉ. अनवर जमाल जी, मैने अपने विचार लिखे हैं. मैंने पाक कोरान को पढा नहीं है, इसलिए वह क्या कहता है, मुझे इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है. इसलिए मेहरबानी से मेरी अदना सी बात को पाक कोरान से जोडकर या उसकी बातों के हवाले से साबित करने की कोशिश ना करें. मैं केवल इतना जानती हूं कि हर धर्म या मज़हब इंसानी प्रेम मुहब्बत, भाईचारे, अमन की बात कहता है और अपने बन्दों से उसी की तामील करने को कहता है. हर धर्म और मज़हब के लोग अपने ही धर्म की बातों को मानने लगें तो यह दुनिया हंसता खेलता जहान हो जाएगा. आमेन!
ReplyDeleteबहन विभा जी! मैंने आपके विचारों को कुरआन के सन्दर्भ में देखा तो उसमें वही लिखा मिला जो आत्मा कह रही है । आपकी ही क्या हरेक इन्साफ़पसन्द आदमी की आत्मा यही कहेगी। आपका यह कहना कि हरेक धर्म में अच्छी बातें बताईं बताईं गई हैं, इस संबंध में मेरा कहना यह है कि आप धर्म का पालन करके देखिये तो आपको सच पता चल जाएगा। आप एक हिन्दू हैं आप या दूसरा कोई भी किसी हिन्दू देवता या अवतार या ऋषि का अनुसरण करके दिखाए तो सही तब आपको पता चलेगा कि आप उनका अनुसरण ही नहीं कर सकते और न ही लोगों के साथ उन नियमों को बरत सकते हैं जिनकी तालीम हिन्दू स्मृतियां और विधि पुस्तकें देती हैं ।
ReplyDeleteआपसे विनती है कि एक बार आप अपने प्रभु की वाणी ज़रूर पढ़ें ताकि आप अपनी आत्मा को संतुष्ट करने वाले वचन सुनें और फलप्रद नियमों का आपको ज्ञान हो। इस्लाम दुनिया का एकमात्र व्यवहारिक धर्म है। बाक़ी मत हैं जिनमें लोग श्रद्धा तो रख सकते हैं लेकिन उनके अनुसार चलने में मजबूर हैं। न वे 3 समय संध्या कर सकते हैं और न ही सोलह संस्कार पूरे कर सकते हैं और न ही चारों आश्रमों का पालन ही कर सकते हैं इसीलिए आज हरेक हिन्दू अपनी मर्ज़ी के मुताबिक़ चल रहा है।
http://quranhindi.com/
@डॉ. अनवर जमाल साब, मेहरबानी से अपने मन की बात किसी पर थोपें नहीं. "इस्लाम दुनिया का एकमात्र व्यवहारिक धर्म है। बाक़ी मत हैं जिनमें लोग श्रद्धा तो रख सकते हैं लेकिन उनके अनुसार चलने में मजबूर हैं।" किसी को भी इस बात पर गहरी आपत्ति हो सकती है. मैं बस इतना जानती हूं कि किस्से से इज़्ज़त पाने के लिए उसकी इज़्ज़त करनी होती है. एक को धर्म और दूसरे को मत कहने का कोई मतलब नहीं है. यह अकारण विवाद को पैदा करता है. न आप हज़रत मोहम्मद साब हैं और ना मैं कोई संत या ऋषि. मैं अपने विचार व्यक्त करती हूं, किसी पर थोपती नहीं. पूजा या उबादत का मतलब 5 वक़्त की नमाज़ या 3 समय की आरती नहीं है. पूजा का मतलब है, अपने को हमेशा नेक कामों के लिए प्रस्तुत करके रखना. बेबात का तर्क दे कर मेरा वक़्त बर्बाद न करें.
ReplyDeleteDuniya me 300 dharm hain !
ReplyDelete300 faansiyaan !!
Jise jo suit karti hai
Wo us par chadh jaata hai
jis laayak hai
Usi maut mar jaata hai !
Kuchh aise bhi hain jo
Har fande se nikal jaate hain
aur
Bheed ke bhondu nazaaron par
Chupke se thahaaka lagaate hain
Khush raho, mast raho !
maan gaye aapko OSHIYA A NEW WOMAN
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