"निर्मल आनन्द सेतु" कार्यक्रम के तहत अवितोको की थिएटर कार्यशाला 7 नवम्बर, 2009 को थाणे सेंट्रल जेल के बन्दियों के लिए आयोजित की गई. इस कार्यक्रम का उद्देश्य बन्दियों के साथ लगातार काम करके उनके जीवन में सकारात्मक विचारधारा लाना है. इसमें मुख्य रूप से उन्हीं बन्दियों को लिया गया, जो पिछले माह आयोजित इस "निर्मल आनन्द सेतु" कार्यक्रम में सम्मिलित हुए थे.
कभी विचार तो कभी एक्शन के द्वारा एक अनुभवजन्य सीख इस कार्यक्रम की खासियत है. पिछली कार्यशाला में व्याख्यान पर बल दिया गया था, इस बार इसे ऐक्शन यानी गतिविधियों पर आधारित बनाया गया. कार्यक्रम की शुरुआत ही विध्वंस के अभ्यास से हुई. सहभागियों को ढेर सारे कागज फाडने को कहा गया. तुरंत ही एक मोड आया जब एक सहभागी ने और अधिक कागज फाडने से यह कहते हुए मना कर दिया कि इससे कागज का नुकसान तो है ही, इसमें जो बातें लिखी हुई हैं, उन्हें हम पढ सकते हैं, ज्ञान बटोर सकते हैं, जबकि कागज को फाड देने से हमें कुछ भी हासिल नहीं होगा. दूसरे सहभागी ने तुरंत कहा कि इस प्रक्रिया से उसके मन के क्रोध व उत्तेजना को शांत होने में मदद मिली है और वह अपने आपको बहुत शांत और आरामदायक महसूस कर रहा है. सहभागियों से जब उन फटे कागजों को जोडने को कहा गया, तब अचानक से उनके हिइ दिमाग में यह बात आई कि हम नाश तो कर सकते हैं, मगर संज्न या विकास नहीं. यह उनके लिए क्या, सबके लिए असम्भव है. मगर इन्हीं कागज के टुकडों से जब निर्माण की बात बताई गई, तब किसी ने पेड, किसी ने मोर, किसी ने दिल तो किसी ने मछली तो किसी ने दवा की बोतल बनाई. बनाने के क्रम में यह साफ साफ बता दिया गया था कि इनसे अच्छी या बुरी कोई भी चीज़ बनाई जा सकती है, मगर सहभागियों की अपनी सकारात्मकता ने उनसे किसी भी असामाजिक तत्व या वस्तुएं नहीं बनवाईं. कागज फाडने से इंकार करनेवाले सहभागी ने बडे ही कलात्मक तरीके से अपना नाम इन टुकडों से लिखा. इन्हीं टुकडों से फूलों और बर्फ की सेज बनाई गई और सहभागी अपने रूमानीपन के शिखर पर पहुंच गए. नाना कल्पनाओं, गीतों और अनुभूतियों से उन्होंने इन टुकडों को एक ऐसे कोमल भाव में बदल दिया उअर उसमें गहरे तक डूब भी गए. एक सहभागी ने ही इस पूरे अभ्यास का नाम दिया "विनाश से विकास".
दूसरे चरण में स्फूर्ति, गति पर अभ्यास कराया गया. और इसके बाद उन्हें एक बडी चुनौती दी गई, जिसमें उन्हें बगैर अपने पैर का इस्तेमाल किए अपनी निर्धारित सीमा तक जाना था. काफी सोच विचार के बाद सहभागियों ने ही इसका समाधान निकाला और मानव श्रृंखला बना कर और उस पर सहभागी को चला कर इस चुनौती का सामना किया और सफल रहे. यह उन्होंने ही बताया कि यह अभ्यास एकता की मिसाल है और संगठित हो कर काम करने का बल प्रदान करता है. आपसी सहज विश्वास के साथ साथ तनिक भय भी इस अभ्यास के मूल में था. चाणक्य ने कहा है कि अन्ध विश्वास कभी भी किसी पर नही करें और इस नीति को सहभागियों ने इस अभ्यास के द्वारा समझा.
अवितोको की कार्यशालाओं की खासियत होती है कि वह सहभागियों को अपनी बातें कहने का पूरा अवसर देती है. चन्द पलों के बाद ही सहभागी इस आरामदायक स्थिति में आ जाते हैं कि वे अपनी बातें बडे ही आराम से कहने और करने लगते हैं. अवितोको के कर्यक्रमों में कोई भी भाषण या उपदेशात्मक तरीका नहीं अपनाया जाता, बल्कि शारीरिक और मानसिक अभ्यास और अनुभव जनित सीख के द्वारा उन्हें सोच के सकारात्मक स्तर तक ले जाया जाता है. इसका नतीज़ा रहा कि अपने मुकदमे से लौटे अपने अपने बैरकों में जा रहे कई बन्दी इस कार्यक्रम को होता देख बैरक में न जा कर इसमें भाग लेने के लिए आ गए और अंत तक पूरे उत्साह से इसमें बने रहे.
अच्छा लगा पढ़कर.
ReplyDeleteरचनात्मक कार्य में आपकी संलग्नता के लिए आपका ( आप सभी का ) अभिनन्दन !
ReplyDeleteबहुत अच्छा कार्य है विभाजी. निर्माण कठिन अवश्य है पर संतोषजनक भी.
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