छाम्माक्छाल्लो एक थिएटर वर्कशाप में भाग ले रही थी। इसका संचालन जाने-माने रंगकर्मी श्री आर एस विकल कर रहे थे। मन की ३ अवस्थाये- चेतन, अवचेतन, अचेतन के बीच मन यात्रा करता है और इनले परस्पर संयोजन से अभिनेता और पात्र अपना -अपना काम करते हैं। अभिनेता की अपनी ऊर्जा होती है, जिसे पात्र के अनुसार ढालना अभिनेता का कार्य होता है। अभिनेता व् पात्र की ऊर्जा का परस्पर संयोग अभिनय में निखार लाता है। - ये सब कुछ मूल बातें हूँ रही थीं। वर्कशाप अपनी गति से आगे की और जा रहा था। विकल जी ने अचानक पूछा की अभिनय करते समय एक्टर को पूरी तरह से इन्वाल्व हो जाना चाहिए या कुछ कम इन्वाल्व होना चाहिए। वे यह प्रश्न पहले भी पूछ चुके थे। नए आए सहभागी ने छूटते ही कहा की पूरी तरह से डूब जाना चाहिए। विकल जी ने इस पर चर्चा को आगे बढाते हुए कहा की यह सही नही है। पूरे इन्वाल्वमेंट से बहुत सी गलतियाँ होने की संभावनाए रहती हैं। पिछले ग्रुप में उनहोंने इसका उदाहरण दिया था, जब थिएटर एक्सरसाइज करते समय एक ग्रुप वहा रखे प्रापर्टी से टकरा गया था। इस ग्रुप के भी नए सदस्य को उनहोंने बोला कर बताया । पूरी कार्यशाला में अभ्यास के लिए उनहोंने छाम्माक्छाल्लो के लिखे मोनोलाग "बलाचंदा" को आधार बनाया। उस दिन सभी ने उसके एक अंश को पढा। फ़िर सभी ने उसे अभिनय करते हुए पढा।
दूसरे दिन थिएटर गेम्स के लिए हम दूसरी जगह गए जो बहुत बड़ी थी। वह एक पार्क था। वहाँ पर कल की बातों पर चर्चा हुई और इसके बाद अभ्यास शुरू हो गए। पहला गेम था वजन उठाने का। लकडी के एक बड़े कुंड को पूरे समूह द्वारा उठाना था। साथ में बलाचंदा नाटक के पढ़े हुए अंश को ही इस वजन को उठाते हुए और चलते हुए बोलना था। यहाँ हम आपको बता दें की वजन, लकडी का कुंदा सभी कालपनिक था। हम सब इसे कर रहे थे। तीन-चार बार के टेक-रीटेक के बाद यह कुछ सुधारे हुए रूप में सामने आया।
अब दूसरा गेम था - फुटबाल खेलना। सभी को कहा गया की किक मारे बगेर ही फुटबाल को उनके पास लाना है। जो सबसे पहले उसे ले कर आयेगा, वह विजेता होगा। पहली बार में छाम्माकछाल्लो जीत गई। पर इसमें कुछ सहभागी देर हो गए। इसलिए गेम फ़िर शुरू हुआ। और जो सबसे नया सहभागी था, उसने १०० % इन्वाल्वमेंट के साथ खेलना शुरू किया। और जी बस, दौड़ते-भागते उसने अपना हाथ इस तरह से फेका की उसकी पूरी वजनदार मुट्ठी पूरे वेग से छाम्माक्छाल्लो की नाक पर पडी। नाक के दो तुकडे हो गए। दाहिनी तरफ़ से नाक तिरछी हो गई, बाई तरफ़ की हड्डी अलग हो गई। अभी वह इलाज करा रही है और फिलहाल टूटी नाक के साथ घूम रही है।
इसके अगले दिन जाने माने एक्टर राजेश विवेक आए थे। अपने अनुभव में वे सूना रहे थे १००% इन्वाल्वमेंट से क्या-क्या खतरे होते हैं। वे और मनोहर सिंह एक दृश्य में तलवारबाजी कर रहे थे। जीतना मनोहर सिंग को था। परन्तु राजेश विवेक ने पूरे इन्वाल्वमेंट के साथ सीन किया और इतने जोर से तलवार मारी की मनोहर सिंह की तलवार ही टूट गई। वह तो इन सबकी अपनी बुद्धि का कमाल की तुंरत वे बोले- "मैं निहाथ्ठे पर वार नहीं करता। इन्हें दूसरी तलवार दी जाए।" एक अभिनेता भागकर अन्दर से दूसरी तलवार ले कर आया और तब नाटक आगे चला।
यह १००% का इन्वाल्वमेंट केवल नाटक या अभिनय करते समय ही नहीं, हर जगहइससे सावधान रहने की ज़रूरत है। उस दिन मनोहर सिंह की तलवार टूटी। आज छाम्माक्छाल्लो की नाक टूट गई है। तलवार तो नाटक में टूटी। नाक वास्तव में टूट गई। कब तक यह ठीक होगी, होगी भी की नहींं, पाता नहीं। पर, यह सबक जीवन भर का हैआप इससे सहमत हैं या नहीं, हमें ज़रूर बताये।
किस्सा तो मज़ेदार है।
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