Tensions in life leap our peace. Chhammakchhallo gives a comic relief through its satire, stories, poems and other relevance. Leave your pain somewhere aside and be happy with me, via chhammakchhallokahis.
Pages
▼
Tuesday, February 10, 2009
सरकारी मेहमान- राजेन्द्र बाबू
सन १९४२ से पहले कभी किसी समय हजारीबाग के कांग्रेसियों ने राजेन्द्र बाबू से शिकायत की की वे बिहार के सभी जिलों का दौरा करते हैं, और हमारे जिले को बहुत कम समय देते हैं। वे सब यह चाहते थे की वे यहाँ आयें और दो-तीन दिन ठहरें, ताकि वे सब अपना सुख-दुःख उनसे बतिया सकें। पहले तो राजेन्द्र बाबू ने उन सबको खूब समझाया की सब अपने आप में इतने सक्षम हैं की उनकी ज़रूरत ही किसी को नहीं है। मगर लोग माने नहीं। एक -दो लोगों ने फ़िर भी अपनी शिकायेतें दर्ज कीं। तब राजेन्द्र बाबू ने हंसते हुए कहा की आप सब मानें या न मानें, मगर सच तो यह है की एक साथ जमकर बैठने के जितने भी अवसर आए हैं, उन सबमें सबसे अधिक तो मैं हजारीबाग में ही रहा हूँ। कुछ समझ गए, कुछ नहीं समझे। उन्हें राजेन्द्र बाबू का ऐसा कोई प्रोग्राम याद नही आता था, जिसमें वे अधिक समय तक यहाँ रहे हों। उन सबने इसे स्पष्ट कराने का अनुरोध किया। राजेन्द्र बाबू ने हंसते हुए कहा की बचओपन के बाद तो कभी ऐसा मौका नहीं लगा की किसी एक जगह जमकर रहूँ, मगर सरकारी मेहमान बनाकर सबसे अधिक तो मैं यहीं रहा हूँ, राजेन्द्र बाबू का आशय था की वे हजारीबाग जेल में सबसे ज़्यादा रहे। सुनकर हँसी का फव्वारा फ़ुट पडा। बाद में सन १९४२ से १९४५ तक लगभग पौने तीन साल तक राजेन्द्र बाबू को पटना जेल के एक ही कमरे में रहना पडा था।
निर्मल आनन्ददायक संस्मरण।
ReplyDelete