छाम्माक्छाल्लो ने इस बार काफी अरसे बाद फ़िर से फ़िल्म 'मुन्नाभाई एम् बी बी एस ' देखी। देखने के बाद यह उदगार सबसे पहले निकला-"अब 'लगे रहो मुन्ना भाई' देखना चाहिए।' दोनों ही फलमें मानवीयता के पक्ष को उकेरती है। मुन्ना डाक्टर नहीं बन पाता, मगर अपने मानवीय संवेदनशीलता से वह सबका दिल जीत लेता है। एक गुंडे के भी ह्रदय परिवर्तन की यह कहानी है कि प्रेम किसी को किसतरह से नकारात्मक से सकारात्मक में बदल देता है। 'मुन्नाभाई एम् बी बी एस' की एक और दिलफ़रेब बात है- जादू की झप्पी यानी चुम्बन- आलिंगन । यह चुम्बन -आलिंगन दोस्त का, माँ का, बेटे का, पिता का, प्रेमी का, प्रेमिका का - यानी किसी का भी हो सकता है। बात आलिंगन-चुम्बन की नहीं, इसके अहसास की है। भारतीय मूल्यों मेंभी बड़े के चरण स्पर्श कराने का मकसद एक और बड़े के प्रति अपना सम्मान ज़ाहिर करना है तो दूसरी और उस स्पर्श के एवज में मिले सर पर आशीष का परस। यह दिल और भाव से जुडा होता है। इसी को माँ अम्र्तिनान्दमयी सभी को बांटती हैं, इसी एक परस से लोग नया जीवन पा लेते हैं। यही परस का सुख आज के शब्दों में टच थेरेपी कहलाती है। किसी का परस जब अप्पको निराशा के गहरे गर्त से बाहर निकाल ले आए, आपमें जीने की नई उमंग व् हिम्मत, ताक़त पैदा करे, आपको अपने जीवन का रास्ता दिखने लगे, तो समझें, यह परस आपके जीवन में संजीवनी बनाकर आयी है।
छाम्माकछाल्लो आज भी बड़ी मायूस होती है, जब वह देखेआती है कि इतने पावन परस को लोग या तो समझते नहीं हैं, या उसका ग़लत अर्थ लगाते हैं या फ़िर उसे बुरी नज़र से देखते हैं। उसका पूरा विश्वास है कि परस की जादू की झप्पी तासीर अपने संग एक नया सुहावना मौसम लेकर आती है।
आप सही हैं ...बढ़िया आलेख..आभार.
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